सिंगल यूज प्लास्टिक के बजाए अपनाएं ये विकल्प

बाजार जाने से पहले झोला जो प्लास्टिक का न हो तैयार करके रख लें। ऐसा झोला तो घर में ही आसानी से बन सकता है। और अब तो काफी मजबूत भी बनेगा। क्योंकि पहले तो कपड़े से बनाए जाने वाले ज्यादातर झोले पतले होते थे लेकिन, अब तो जींस का जमाना है। झोला भी काफी मजबूत बनेगा। क्योंकि दो अक्टबूर से पूरी तरह से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन किए जाने की तैयारी है। कोई समस्या न हो इसके लिए पहले ही झोला तैयार कर लें। साथ ही सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्पों या प्लास्टिक के इस्तमाल को कम करने के उपाए भी जानिए और लोगों को भी इस दिशा में जागरूक करिए। ताकि प्लास्टिक से फैलने वाले प्रदूषण पर जीत मिले।

दो अक्टूबर से सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगने की तैयारी है। ताकि पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके। बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण से पर्यावण पर खतरा बढ़ता जा रहा है। चाहे बात भूमि की हो या समुद्र की। हर जगह इसके प्रतिकूल प्रभाव सामने आ चुके हैं। प्लास्टिक को बनाना आसान है, लेकिन इसे नष्ट करना उतना ही मुश्किल है। नष्ट करने पर कई हानिकारक गैस वातावरण को और प्रदूषित करते हैं। साथ ही यह स्वयं अपने आप नष्ट होने में बहुत लंबा समय लेता है। लगभग 500 साल। इसके बाद भी माक्रो प्लास्टिक (बहुत ही सूक्ष्म कणों के रूप में प्लास्टिक के अवशेष) तो बचे ही रहते हैं। आपको ये भी पता होगा कि एक साल में जितना भी प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है, उसका 50 प्रतिशत सिर्फ सिंगल यूज प्लास्टिक होता है। जैसे पानी का बाॅटल, पैकेजिंग प्लास्टिक, पन्नी आदि। 

प्लास्टिक की वजह से जानवरों, पक्षियों, समुद्री जीवों पर काफी खराब असर पड़ रहा है। इसके चलते उनकी जान भी जा रही है। क्योंकि वे इन प्लास्टिक का सेवन कर लेते हैं, जिसके चलते उन्हें जान गवानी पड़ती है। साथ ही प्लास्टिक से पानी भी प्रदूषित होता जा रहा है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महासागरों पर पड़ा है। इससे उसमें रहने वाली समुद्री मछलियों एवं भोज्य पदार्थ के रूप में उपयोग किए जाने वाले अन्य समुद्री जीवों में भी प्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है। इसका सीधा असर हम पर पड़ता है। महासागरों में कुछ क्षेत्रों में कई कई वर्ग किलोमीटर में सिर्फ प्लास्टिक कचरा ही पसरा पड़ा है। इस कचरे को साफ करने के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन इसकी मात्रा में अगले वर्षाें के दौरान और बढ़ोत्तरी होने की ही आशंका है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक  महासागरों में मछलियों के वजन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा होगा। यह एक सोचनीय और गंभीर विषय है। 


सिंगल यूज प्लास्टिक के बिना रोजमर्रा के कार्याें को पूरा करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अधिकतर कार्याें में अब प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। बाजार से कोई भी सामान लाना हो। उसके साथ प्लास्टिक खुद ब खुद साथ चला आता है। आटा से लेकर तेल तक अब पन्नियों में आसानी से मिलता है। ऐसे में सिंगल यूज प्लास्टिक की मात्रा हर दिन बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। इसको लेकर कुछ साल पहले से लोगों के बीच जागरुकता लाई जा रही है। कुछ बड़े शहरों में पन्नियों पर प्रतिबंध पहले से ही लग चुका है। जिनमें आटा, सब्जी वगैरह के साथ अन्य कोई भी किराना आदि का सामान या कपड़े वगैरह लाया जाता था। लेकिन इसपर पूरी तरह से नियंत्रण नहीं है। चोरी छिपे तो हर जगह ही इसका उपयोग किया जा रहा है। लेकिन अब इसको लेकर लोगों को स्वयं भी जागरूक होकर आगे आना होगा। 

तभी इस समस्या पर पूर्ण रूप से नियंत्रण लग सकता है। शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से परिचित कराना होगा। क्योंकि अकसर जागरुकता अभियान के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की उपेक्षा कर दी जाती है। ऐसे में उन तक सिर्फ जनसंचार के माध्यमों से ही सूचनाएं पहुंचती है। पोस्टर, बैनर या अन्य माध्यमों की भी जरूरत है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता है। अक्सर लोग गांव में मौजूद पुराने तालाबों या उसके आसपास ही कचरा डाल देते हैं। इससे तालाब का पानी प्रदूषित होता है। उसके अस्तित्व पर भी खतरा बढ़ जाता है। कई उदाहरण हमें अपने आसपास ही देखने को मिल जाते हैं। लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस उपाए नहीं किए गए हैं। इससे परेशानी बढ़ रही है।

बहरहाल, सिंगल यूज प्लास्टिक की ही बात करते हैं। एक तरफ सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह से रोक लगाने की बात तो हो रही है। लेकिन बाजार जाने वाले ग्राहकों को इसको लेकर नया अनुभव मिल रहा है। हो ये रहा है कि कुछ बड़े शहरों में जहां सिंगल यूज पन्नी पर प्रतिबंध है। वहां पर कुछ दुकानदार पैकेजिंग के लिए बैग देने जो प्लास्टिक के नहीं होते हैं, के नाम पर एक रुपए से लेकर पांच रुपए तक ग्राहकों से ही वसूल रहे हैं। इसमें खास बात ये है कि उन बैग्स पर संबंधित शाॅप का प्रचार भी रहता है। बैग के लिए रुपए ग्राहक दें और बैग पर प्रचार दुकान का। यह कैसा नियम है। बल्कि ऐसे में तो ग्राहकों को ही छूट मिलनी चाहिए कि वह उनका प्रचार भी कर रहा है। लेकिन हो इसका उलटा रहा है। कई जागरूक लोग तो इसका विरोध भी करते हैं। और रुपए देकर बैग लेने से इंकार कर देते हैं। 

लेकिन अन्य लोगों के पास दो चार रुपए के लिए बाजार में बहस करने की फुरसत नहीं होती और वे बैग्स ले लेते हैं। क्या ऐसा नहीं है कि दुकानदार अपने सामानों की कीमत में इसको ऐड नहीं करते। इसको लेकर कोई ठोस जवाब नहीं मिलता है। वहीं दूसरी तरफ कई लोगों का यह भी कहना होता है कि क्या सिर्फ ठेले वालों की पन्नियों पर ही प्रतिबंध लगना चाहिए। क्या बड़ी बड़ी कंपनियां चिप्स व अन्य खाद्य सामग्रियां नहीं बेच रही हैं। ठीक है। लेकिन अब इस पर रोक लगने के बाद यह देखा जाएगा कि इसके लिए क्या उपाए किए गए हैं। और उपाए तो किया ही जाना चाहिए। सिर्फ ठेले वालों की पन्नियों पर ही नहीं, चायपत्ति से लेकर चिप्स की पन्नियों पर भी। ऐसी ही उम्मीद है कि दो अक्टूबर से इसपर अमल भी होगा। 

अब जब सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्णतः रोक लगाने की तैयारी है तो अब हम इससे होने वाली समस्या से कैसे बच सकते हैं। इसका समाधान भी बेहद आसान है। चाहे पैकेज्ड पानी की बाॅटल हो या बाजार से आटा दाल या अन्य चीज लाने के लिए उपयोग की जाने वाली पन्नी, सभी के लिए विकल्प मौजूद है। वह भी घर पर ही। हम इसे बिल्कुल मुफ्त में बना सकते हैं। साथ ही कई अन्य उपाए करके भी इससे होने वाली दुविधा से बच सकते हैं। ऐसा करके स्वच्छता और बेहतर पर्यावरण को बढ़ावा दे सकते हैं। जिससे जीव जंतुओं सहित इंसानों को लाभ होगा। प्लास्टिक या पन्नी के विकल्पों के रूप में बहुत से उपाए हैं। यहां तक कि टूथ ब्रश से लेकर शेविंग ब्रश तक के लिए प्लास्टिक के विकल्प मौजूद हैं। ऐसे विकल्पों या उपायों को भी जान लेते हैं, जिनसे हम सिंगल यूज प्लास्टिक को बाय बाय करने के साथ साथ पर्यावरण अनुकूल कदम उठा सकते हैं। 






सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प या उनको कम करने के तरीके

अपने बनाए बैग्स का करें इस्तमाल 
हम सभी को प्लास्टिक बैग का उपयोग बंद करना चाहिए। इसके स्थान पर हमें कपड़े का बैग उपयोग करना चाहिए। पहले ऐसा ही होता था। लोग घरों पर बनाए गए कपड़ों के बैग लेकर ही बाजार जाया करते थ। इसको बनाने के लिए हम पुराने कपड़ों का उपयोग कर सकते हैं। जो बेहद आसान भी है। इसके अलावा आप बाजार से बेहतर बैग भी खरीद सकते हैं, जो कपड़े या जूट आदि से बने होते हैं। जो कि फैशनेबल भी होते हैं। साथ ही इस प्रकार के बैग तैयार करने में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कारीगरों का योगदान ज्यादा होता है। इससे उनके रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा। प्लास्टिक बैग से तो हर साल सैकड़ों जानवरों की मौत हो जाती है। प्रदूषण और फेलता है। जिसका असर हम पर किसी न किसी रूप में होता ही है।

स्टेनलेस स्टील बर्तनों का उपयोग बढ़ाएं
बदलते दौर में खाने पीने के बर्तनों में भी बहुत परिर्वतन हुआ है। पहले एल्यूमिननियम के बर्तन फैशन में थे। फिर स्टील के बर्तन आए और फैशन बन गए। फिर चीनी मिट्टी के बर्तनों ने अपना दबदबा बनाया। घरों में इनका ही उपयोग ज्यादा होता है। लेकिन क्या अब शादी ब्याह या अन्य समारोहों में भी इसका उपयोग उसी तरह करते हैं। जवाब है, नहीं। अधिकतर जगहों पर अब सिंगल यूज प्लास्टिक के बर्तनों का ही उपयोग होने लगा है। शादी ब्याह या अन्य फंक्शनों के बाद सड़क पर बिखरे रहने वाले प्लास्टिक के प्लेट ग्लास के नजारे स्वयं पोल खोल देते हैं। हमें इससे परहेज करना चाहिए। क्योंकि इन्हें स्वयं नष्ट होने में 500 साल से ज्यादा लग जाते हैं। और इसके बाद भी ये बहुत ही सूक्ष्म कणों के रूप में मौजूद ही रहते हैं, जो पानी या मिट्टी में मिलकर हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। शादी ब्याह या समारोह के अलावा सफर आदि में हमें ऐसे बर्तनों का उपयोग करना चाहिए। जो कई बार उपयोग किए जा सकें। और ऐसे बर्तन तो ही घर में मौजूद रहते हैं। 

पैकेजिंग में प्लास्टिक पन्नी को कहें ना
पैकेजिंग के लिए भी प्लास्टिक का बहुत बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। चाहे कोई गिफ्ट हो या खाद्य सामग्री। हम सभी ने कभी न कभी इसकी पैकेजिंग कराई होगी। इसके लिए विभिन्न रूपों में मौजूद प्लास्टिक पन्नी का ही उपयोग किया जाता है। इसके बाद प्लास्टिक को फेंक दिया जाता है। जो नुकसानदायक सिद्ध होता है। हमें प्लास्टिक या पन्नी से पैकेजिंग के बजाए किसी सामान या गिफ्ट को कागज या अन्य ऐसी चीजों से ही पैक कराना चाहिए जिसमें प्लास्टिक न हो। आनलाइन शाॅपिंग में भी आप रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि पन्नी के बजाए कागज या गैर प्लास्टिक सामग्री से होने वाली पैकिंग में ही सामान भेजें। रेस्टोरेंट आदि से भोजन मंगाने के दौरान भी ऐसा कर सकते हैं। या स्वयं रेस्टोरेंट जाएं तो टिफिन जो प्लास्टिक की न हो साथ ले जाएं। कोई मुश्किल काम तो है नहीं। साथ ही पैकेजिंग में आने वाला खर्च कम होने पर हो सकता है आपकों कुछ छूट भी मिल जाए। थोड़ी कोशिश तो करनी ही चाहिए। 

री यूजेबल पानी के बाॅटल का उपयोग
आज के दौर में बिना बाॅटल वाॅटर के कोई कार्य पूरा ही नहीं होता है। क्या शहर क्या गांव। हर जगह इसकी डिमांड में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रहा है। पैकेज्ड वाॅटर बाॅटल की पहुंच हर जगह हो गई है। कोई भी मीटिंग बिना पैकेज्ड वाॅटर के पूरी ही नहीं होती है। अब तो शादी ब्याह जैसे सामारोहों में भी इनका ही उपयोग किया जाना लगा है। इसका लाभ उठाते हुए कई छोटे-छोटे बाॅटल में पैकेज्ड वाॅटर उपलब्ध कराए जाने लगे हैं। यह जाने बिना कि क्या हमारे नलों या हैंडपंपों का या सब मर्सिबल का पानी पाने योग्य है कि नहीं हम पैकेज्ड या आरओ वाॅटर का उपयोग करने लगते हैं। बहरहाल, हमें प्लास्टिक के बाॅटल की जगह स्टेनलेस स्टील के थर्मस का उपयोग करना चाहिए। इसके दो लाभ हैं। इसमें चाहें तो आप शीतल जल भर लें या गर्म चाय तापमान में एकदम मेनटेन रहेगा। साथ ही इसका उपयोग कई बार किया जा सकता है। वह भी बिना पर्यावरण को काई नुकसान पहुंचाएं। 






उत्पाद खरीदें जो प्लास्टिक पैक न हों
बाजारों में आज रोजमर्रा के दिनों में काम आने वाले ज्यादातर उत्पाद प्लास्टिक में पैक ही मिलते हैं। चाय पत्ती से लेकर नमक तक। अब ऐसे में हम क्या कर सकते हैं। हमें ऐसे उत्पादों को खरीदने में प्राथकिमा देनी चाहिए, जिनकी पैकिंग प्लास्टिक में नहीं की गई है। ऐसे उत्पाद बाजार में मौजूद रहते हैं। बस मांगने की जरूरत है। चाय पत्ती के कई ब्रांड ऐसे हैं, जो कागज की पैकिंग में मिलते हैं। अब हो सकता है और भी कई उत्पाद कागज की पैकिंग में आने लगे हों। क्योंकि ज्यूस व कोल्ड ड्रिंक्स के कुछ ब्रांड अब कागज की पैक में मिलते हैं। साथ ही प्लास्टिक के स्ट्रा (प्लास्टिक की पतली पाइप जिसकी मदद से कोल्ड ड्रिंक्स आदि पीते हैं) का उपयोग भी बंद कर देना चाहिए। कहीं रेस्टोरेंट आदि में भी जाएं तो पहले ही मना कर दें कि हमें स्ट्रा नहीं चाहिए। फिर भी आप स्ट्रा की जरूरत समझते हैं, तो ऐसे स्ट्रा का उपयोग करें, जिसका दोबारा उपयोग हो सके। क्योंकि ज्यादातर प्लास्टिक स्ट्रा का रिसाइकिल नहीं हो पाता है।

किचेन में प्लास्टिक डब्बों को ना
हमारे किचने में प्लास्टिक के डब्बों से पूरा रेक ही भरा रहता है। इसपर काबू करना चाहिए। इनमें खानी पीने की चीजों सहित आटा, दाल, चावल आदि भरे रहते हैं। बड़े आकार से लेकर छोटे आकार तक के डब्बे हमारे किचने में दिख जाएंगे। इनके स्थान पर स्टील के बर्तन या डिब्बों का उपयोग किया जा सकता है। या पुराने समय में चलने वाले जार का भी उपयोग किया जा सकता है। इससे प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। साथ किचेन को भी प र्यावरण अनुकूल बनाया जा सकता है। प्लास्टिक के डब्बे सस्ते तो होते हैं, लेकिन हल्का खराब होने पर भी हम इन्हें किचने से हटाकर फेंक देते हैं। लेकिन स्टील के डब्बों के साथ ऐसा नहीं होता है। ना ही वह जल्द टूटते या खराब ही होते हैं। साथ ही खाने पीने की चीजों को रखने के लिए ये सुरक्षित भी होते हैं। 

सेफ्टी रेजर के उपयोग पर दें जोर
शेविंग आदि कार्याें के लिए आजकल युवा प्लास्टिक के रेजर का उपयोग करते हैं। जो महंगे होने के साथ साथ एक बार ब्लेड खराब होने पर फेंकना पड़ता है। ऐसे में हमें सेफ्टी रेजर का उपयोग करने पर जोर देना चाहिए। ये सस्ते भी होते हैं और लंबे समय तक सुरक्षित भी रहते हैं। ये भी स्टेनलेस स्टील के आते हैं। इसी प्रकार हर दिन उपयोग में आने वाले ब्रश से भी प्लास्टिक को बढ़ावा मिलता है। हालांकि अभी इसको लेकर कोई खास विकल्प नजर नहीं आता है। हालांकि बाजारों में कई लकड़ी के बने ब्रश भी आने लगे हैं। ये बांस आदि से बनाए जाते हैं। जो कि सामान्य ब्रशों की तरह ही होता है बस प्लास्टिक के स्थान पर लकड़ी होता है। 

रिफिल किए जाने वाले प्रोडक्ट खरीदें
घरों में हम अक्सर डेटाॅल जैसे हैंडवाॅश या अन्य साबुन का उपयोग हाथ धोने के लिए करते हैं। जो कि प्लास्टिक के बाॅटल में आते हैं। अब एक बार उपयोग करने के बाद जब बाॅटल में साबुन समाप्त हो जाए तो उसे फेंकने के बजाए उसे रिफिल करें। बाजारों में ऐसे उत्पाद आसानी से मिलते हैं। अब तो कई क्लीनिंग प्रोडक्ट के लिए री यूजेबल बाॅटल मिलने लगे हैं। साथ ही उसे रीफिल करने के लिए उत्पाद भी आसानी मिल रहे हैं। पूर्व में प्रचलित शीशे के ऐस बाॅटल भी मिलने लगे हैं, जिसमें हम क्लीनिंग प्रोडक्ट को रीफिल कर सकते हैं, जैसे साबुल, शैंपू, तेल आदि। साथ ही इन बाॅटल्स में कई ऐसे भी हैं, जो यूवी रे से भी सामग्री को सुरक्षा प्रदान करते हैं। 

ऐसे बहुत से तरीके हैं, जिन्हें हम जानते हैं। लेकिन उपयोग में नहीं लाते हैं। अब पर्यावरण की स्थिति उस दहलीज पर पहुंच चुकी है कि प्रदूषण पर नियंत्रण जरूरी हो गया है। खासकर प्लास्टिक से फैलने वाले प्रदूषण पर। उम्मीद है कि आगामी दो अक्टूबर से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगने के दौरान इसके विकल्पों पर भी विचार किया जाएगा। ताकि किसी को कोई दिक्कत न हो। साथ ही प्लास्टिक से पूरी तरह निजात मिलने का रास्ता खुल सके। जब प्लास्टिक का आविष्कार हुआ था तो इसे एक क्रांतिकारी उपलब्धि माना गया। लेकिन धीरे-धीरे यह समस्या बन गया। जो लगातार विकराल होता जा रहा है। जिसे हमें और आपको ही रोकना है। ...अगली पीढ़ी के लिए।

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