दस लाख से ज्यादा नौकरियों पर लटकी छटनी की तलवार, बाकी सब ठीकठाक है

नोटबंदी और जीएसटी से अभी हम उबरे भी नहीं थे कि कई क्षेत्रों में छाई मंदी ने युवाओं के सपनों पर फिर से ग्रहण लगा दिया है। कई सेक्टर्स ऐसे हैं, जिनमें नई नौकरियों की कोई गुंजाइश फिलहाल दिखाई नहीं देती। यही नहीं कई कंपनियों ने तो साफ कह दिया है कि वो अपने कर्मचारियों की छटनी भी कर सकते हैं। क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा है। नई नौकरियों की तो बात ही छोड़िए। अब जो युवा डिग्री लेकर काॅलेजों से निकलेंगे उन्हें काम कैसे मिलेगा।

सवाल पूछने पर कह दिया जाएगा कि नौकरी करने वाला नहीं बल्कि नौकरी देने वाले बनो। यहां नौकरी करने वालों की नौकरी जा रही है, और देने वालों की नौकरी देने की स्थिति नहीं रही। खासकर वाहन सेक्टर इससे ज्यादा प्रभावित है। जहां 10 लाख से ज्यादा लोगों की नौकरी पर तलवार लटकी हुई है है। अबतक दो लाख से ज्यादा कर्मचारियों को छटनी के जरिए नौकरी से हटा भी दिया गया है, जो अब बेरोजगार हो चुके हैं। 

मौजूदा समय में सबकुछ ठीक है का डंका बज रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है। कई सेक्टर्स में रोजगार सृजन न के बराबर होने वाली है। वहीं, कुछ सेक्टर्स में लाखों की संख्या में नौकरियां जाने वाली हैं। आटोमोबाइल व आईटी सेक्टर्स इसमें सबसे बड़े भागीदार होंगे। जी हां, हाल ही में समाचार पत्रों में आई खबरों के मुताबिक अब नौकरियों का संकट खड़ा होने वाला है। आटोमोबाइल उत्पादों की बिक्री नहीं बढ़ रही है। लोग वाहन खरीदने से कतरा रहे हैं। चाहे बाइक हो या कार। सबकी बिक्री में मंदी छाई हुई है। 


एशियाई क्षेत्र की कुछ कंपनियां तो अब अपने खर्च में कटौती करने लगी हैं। इससे रोजगार के जाने की आशंका बनी हुई है। इसका खामियाजा ज्यादातर युवाओं का ही भुगतना पड़ेगा। पहले नोटबंदी से छोटे उद्योग धंधों पर मार पड़ी और लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए। फिर आई जीएसटी जिसने रही सही कसर भी पूरी कर दी। कितने भी दावे किए जाएं कि बेरोजगारी की स्थिति अब वैसी नहीं है। परिस्थितियां पटरी पर लौट चुकी हैं। लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। इसकी गवाही हाल ही में लगातार छप रही खबरे हैं। 


टीवी चैनल्स पर तो ये मुद्दे दिखाई नहीं देते। आप भी जानते हैं ऐसा क्यों है। वहां तो सिर्फ शोरगुल और चिल्लाहट ही मची हुई है। शोर इतना है कि आप लोगों को कई सेक्टर्स में आई इस महामंदी जैसे दौर का पता ही नहीं चला होगा। हालांकि कुछ अखबारों में इस तरह की खबरों को बड़ी प्रमुखता से छापा गया है। जिसके आधार पर लगभग 10 लाख से अधिक नौकरियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। 

इन दिनों खबरों में वाहन क्षेत्र छाया हुआ है। इस सेक्टर में नौकरियों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। ये जमकर बरस भी रहे हैं। गहरी मंदी की नौबत है। लोग वाहनों की खरीदारी कम रहे हैं। बिक्री अब बेहद कम हो चुकी है। नतीजा खुदरा विक्रताओं पर भी पड़ा है। पिछले तीन महीनों में ही देश भर से खुदरा वाहन विक्रेताओं ने लगभग दो लाख कर्मचारियों की छटनी की है। वहीं, निकट भविष्य में सुधार की कोई गुंजाइश भी नहीं नजर आ रही है। 

शो-रूम बंद होने के कगार पर पहुंचने लगे हैं। ऐसा उद्योग संगठन फैडरेशन आफ आटोमाबाइल डीलर्स एसोशिएशन फाडा ने भी माना है। संगठन की ओर से सरकार से स्थिति सुधारने की अपील की गई है। इसके तहत मंदी से जूझ रहे वाहन उद्योग को राहत देने की अपील की गई है। जीएसटी में कटौती जैसे उपाए भी सुझाए गए हैं। 


वाहन उद्योग में पिछले मई से ही मंदी का दौर तेज हो गया था। जून और जुलाई में भी ऐसी ही स्थिति रही। अधिकतर कर्मचारियों की छटनी फ्रंट एंड बिक्री में हुई है। जैसा कि आशंका जताई जा रही है कि आगे भी यही स्थिति रहने वाली है। तब और भी कर्मचारियों की छटनी की जा सकती है। वाहनों की बिक्री में गिरावट जारी रहती है तो बिक्री के अलावा तकनीक से जुड़ी नौकरियों पर भी संकट तेजी से बढ़ेगा। बिक्री में सुस्ती सेवा क्षेत्र को प्रभावित करेगा। इसमें कमी आएगी। 






बता दें, पूरे देश में 15 हजार डीलर्स की ओर से 26 हजार शोरूम का संचालन किया जा रहा है। इन शोरूमों में प्रत्यक्ष रूप से लगभग 25 लाख और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 25 लाख लोगों को नौकरी मिली हुई है। इनकी नौकरियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। गौर करने वाली बात है कि बीते अप्रैल तक लगभग 18 महीने के समय में ही देश भर के 271 शहरों में 286 शोरूम बंद हो चुके हैं। इसके चलते लगभग 32 हजार लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। मार्च तक डीलर्स ने श्रमबल में कटौती को नहीं अपनाया था। 

वाहनों की सभी श्रेणियों में बिक्री कम हो रही है। यह लगातार बनी हुई है। सियाम के मुताबिक अप्रैल जून की तिमाही में वाहन बिक्री में गिरावट हुई। सभी श्रेणियों में वाहन बिक्री 12.35 प्रतिशत कम हुई है। यह घटकर 6085406 इकाई रह गई। पिछले वित्त वष में यह आंकड़ा 6942742 इकाई था। फाडा के मुताबिक अप्रैल जून में वाहनों की घरेलू बिक्री में 6 प्रतिशत की गिरावट आई है। जो कम होकर 5116718 इकाई रह गई। 

इस साल मार्च तक स्थिति ठीक लगती रही। इसके चलते तबतक नौकरियों में कटौती भी नहीं की गई। क्योंकि तब ये महसूस किया जा रहा था कि वाहन क्षेत्र में आई यह सुस्ती अस्थाई है। लेकिन इसके बाद भी हालात में कोई बदलाव या सुधार नहीं हुए। इसके बाद विवश होकर डीलर्स ने नौकरियों में कटौती शुरू कर दी। 

आटो उद्योग की हालत खस्ता है। मंदी के चलते देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारूती सुजूकी इंडिया की घरेलू बिक्री लगभग 18 साल में सबसे कम स्तर पर पहुंच गई। ह्युंडई मोटर्स, महिंद्रा, बजाज सहित अन्य आटो कंपनियों में भी बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है। जुलाई में मारूती की कुल बिक्री में 33.5 प्रतिशत की कमी आई। बिक्री 109264 इकाई रही। पिछले साल इसी दौरान बिक्री 164369 थी। 


घरेलू बाजार में स्थिति और खराब है। यहां कंपनी की बिक्री स्तर 36.3 फीसदी कम हुई है। यह 98210 इकाई रह गई है। पिछले साल इसी दौरान यह 154150 इकाई थी। मुनाफा 27 प्रतिशत कम हुआ है। जो पिछले पांच साल में सबसे कम है। मारूति के निर्यात पर भी असर है, जो 9.4 प्रतिशत कम होकर 9258 इकाई रहा। यह पिछले साल 10219 इकाई था। छोटी गाड़ियों जैसे वैगन आर, आल्टो की बिक्री में भी बहुत गिरावट आई है। इनकी बिक्री में 69.3 प्रतिशत की कमी आई है। 

इधर, एशियाई कंपनियों की ओर से पूंजी खर्च में कटौती की गई है। इससे भी नौकरियों पर खतरा बढ़ा है। खबरों के अनुसार 65 हजार एशियाई कंपनियों की ओर से इस साल जनवरी से मार्च के खर्च में एक फीसदी की कटौती की गई है। इसका कारण वैश्विक मांग में कमी और व्यापार युद्ध को माना जा रहा है। इससे ऐशिया में पूंजी व्यय कम हुआ है। 

अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वाॅर के चलते आपूर्ति श्रृखला बाधित हुई है। इससे मांग घटने का खतरा ज्यादा हुआ है। इसका सबसे ज्यादा असर टैक्नोलाॅजी और उद्योग से जुड़ी कंपनियों पर हुआ है। इन दोनों सेक्टर्स में मार्च की तिमाही में सबसे ज्यादा पूंजी व्यय में गिरावट देखने को मिली है।   






समाचार पत्रों के अनुसार देश में बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी देने वाली जापान की प्रमुख आटो कंपनी निसान 17 सौ नौकरियों में कटौती की तैयारी कर रही है। चेन्नई स्थित रेनो निशान के संयुक्त प्लांट में 17 सौ कर्मचारियों की छटनी की तैयारी है। इस प्लांट से करीब 40 हजार लोगों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार जुड़ा हुआ है। इस प्लांट में एक साल में लगभग 4.8 लाख वाहन बनाए जाते हैं। 

वाहन क्षेत्र में मंदी की मार है। इसका असर वाहनों के लिए कल पुर्जे बनाने वाली कंपनियों पर भी पड़ रहा है। इनमें मंदी छाई हुई है। इससे आने वाले समय में लगभग 10 लाख लोगों की नौकरी जा सकती है। गौरतलब है कि, गाड़ियों के लिए कल पुर्जे बनाने वाली कंपनियां देश भर में लगभग 50 लाख लोगों को नौकरी देती हैं। वाहन उत्पादन में आई गिरावट से इनके लिए कल पुर्जे बनाने वाली कंपनियों के सामने मुसीबत की स्थिति है। 

70 प्रतिशत वाहल कल पुर्जाें पर 18 फीसदी और बाकी बचे 30 प्रतिशत कल पुर्जाें पर 28 फीसदी जीएसटी है। 28 फीसदी जीएसटी के साथ वाहनों की लंबाई, इंजन के आकार प्रकार के अनुसार गाड़ियों पर एक से 15 प्रतिशत तक उपकर भी देना पड़ रहा है। बीएस-4 से बीएस-6 उत्सर्जन मानकों के लिए हुए निवेश, ई वाहन नीति में अस्पष्टता से इस वाहन सेक्टर में अनिश्चितता का माहौल है। 

आईटी, ई काॅमर्स सेक्टर में भी रोजगार सृजन की स्थिति डवाडोल हो सकती है। खबरों के मुताबिक टीमलीज सर्विसेज की रिर्पोट में कहा गया है कि दो सेक्टर्स में आने वाले दिनों में नौकरियां मिलने की रफ्तार में बुहत कमी आ सकती है। ई कामर्स, बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं एवं बीमा और बीपीओ आईटी आधारित सेवा क्षेत्रों में 2018-22 के अनुमानों के मुकाबले 2019-23 के दौरान रोजगार श्रृजन में कमी आ सकती है। यह कमी 37 प्रतिशत तक हो सकती है। 

मार्केटिंग, विज्ञापन, कृषि एवं कृषि रसायन, केपीओ, सूचना प्रौद्योगिकी, मीडिया एवं एंटरटेंमेंट और हेल्थ केयर व फार्मा क्षेत्र में अपेक्षा से कम रोजगार का श्रृजन हो पा रहा है। टीमलीज के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस या रोबोट आधारित आटोमेशन के असर को कम करने के लिए कोई बेहतर कदम नहीं उठाया जाता है तो आगे चलकर रोजगार श्रृजन में कमी आएगी।  

हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अल्पावधी की बात की जाए तो अप्रैल से सितंबर माह तक नौकरियों के मिलने की रफ्तार ठीकठाक ही रहेगी। वहीं आईबीएम का कहना है कि नए जमाने की नौकरियों में कौशल का होना जरूरी है। भारतीयों में नए जमाने की नौकरियों के लिए जरूरी कौशल की कमी है। इसलिए नौकरी प्राप्त करने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जबकि नए जमाने के रोजगार ज्यादा हैं। बता दें, 180 अरब डालर के घरेलू साफ्टवेयर उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से ही 40 लाख लोगों को नौकरी मिली हुई है। 

और भी बहुत से सेक्टर्स हैं, जहां स्थिति ठीक नहीं है। लेकिन इसको लेकर टीवी वाले तो सवाल पूछ नहीं रहे हैं। हालांकि कुछ अखबरों में इसको प्रमुख से दर्शाया गया है। फिर भी सवालों की कमी इनमें भी बनी ही हुई है। हालात और मांग पर ही ज्यादा फोकस है। जबकि निराकरण के लिए हो रहे उपाए या क्या उपाए किए जाएंगे इसपर कोई खास तव्वज्जों नहीं है। 

फिर भी आप टीवी देखिए और फेसबुक पर पोस्ट डालिए और लाइक करिए। सो जाइए और सुबह उठकर फिर सो जाइए। क्यों कि इसकी आदत ही डालनी चाहिए। नौकरियां मिल नहीं रही हैं। जिन्हें नौकरियां मिली भी हैं, उन्हें इसे बचाने के लिए रोज मशक्कत करनी पड़ रही है। पर इससे क्या लेना देना है क्योंकि सबकुछ ठीक चल रहा है। और सबकुछ ठीक है का डंका भी जोर जोर से बज ही रहा है।

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