कहानी तेरी और मेरी (शहनाई-भाग-दो)

'शहनाई'
भाग-दो
'और वो एक बरस'

इतने दिनों के बाद रमेश और नीलिमा की मुलाकात हुई थी। रमेश थोड़ा-थोड़ा बदला-बदला सा लग रहा था। उसके मित्र भी इस बदलाव को करीब-करीब भांप रहे थे। पर रमेश ने हमेशा उनकी बातों को अनदेखी कर खुद को हंसी या तफरीह से महफूज रखा। आज सुबह रमेश थोड़ा पहले उठ गया था। बाहर खूब शोर हल्ला हो रहा था। रमेश भी इस शोर को पहचानने के मकसद से खिड़की की तरफ बढ़ा। बाहर सड़क पर लोगों का मजमा लगा था। रमेश को अचानक याद आया कि आज रंगों का पर्व है। लोग बाहर होली खेल रहे थे। इसी दौरान रमेश के मित्र भी उसके घर पहुंच चुके थे। स्वागत सत्कार के बाद रमेश ने भी दोस्तों संग कुछ देर तक होली का आनन्द लिया। फिर दोस्तों को विदा करते हुए रमेश घर लौट आया।

अब दोपहर हो चली थी। रमेश भी थोड़ा आराम करने के मूड में था। पर नींद और चैन कहीं गायब ही नजर आ रही थी। यकीनन रमेश नीलिमा के बारे में ही सोच रहा था। रमेश जिन बातों को जेहन से निकालना चाहता था। वही बातें उसे खूब याद आ रही थीं। इन्ही बातों में रमेश की शहनाई से डर वाली बातों का राज भी छिपा था। रमेश अपने उस एक वर्ष के बारे में सोच रहा था, जिस दौरान उसने नीलिमा से बिछड़ने सहित, कई गम भी सहे थे। रमेश इन बातों से अब पूरी तरह से उबर चुका था। पर, यादें इतनी आसानी से मिटती थोड़े ही न हैं। तो फिर चलतें हैं उस एक वर्ष में जो रमेश के जीवन में सात साल पहले बीत चुका है। जिसने रमेश को बहुत हद तक बदल डाला था।तो आइए चलें, रमेश के उस एक वर्ष में। जिसकी पहली कड़ी है, ...तेरे बिछड़ने से पहले


'तेरे बिछड़ने से पहले'

'बिखरी-बिखरी जुल्फे तेरी पसीना माथे पर है
सच तो ये है तुम गुस्से में और भी प्यारे लगते हो'
'राहें तकना तारे गिनना सादिक काम हमारा है
आज मगर क्या बात है तुम भी जागे-जागे लगते हो'

वर्ष-2009...
मार्च का महीना चल रहा था। सर्दी भी लगभग खत्म हो चुकी थी। दिन और रात बड़े सुहावने हो रहे थे। रमेश भी खुश था। हर रोज की तरह आज भी रमेश ने नीलिमा के कई बार दीदार किए। दोनों एक-दूसरे को देखे बिना रह नहीं पाते थे। फोन पर भी दिन में जब भी मौका मिलता घण्टों बातें किया करते थे। पर सबकुछ चोरी छिपे ही चला करता था। प्यार के दुश्मन भी तो मौके ढूंढा ही करते हैं। रमेश और नीलिमा के बीच सब कुछ ठीक चल रहा था। एक दिन रमेश की फोन पर रिंग बजता है। रमेश मोबाइल को देखकर चहक उठता है। नीलिमा का ही फोन था। रमेश फोन काटकर और सबसे नजरें चुराकर दोबारा नीलिमा का नम्बर डायल करता है।

हैलो..! नीलिमा ने फोन उठाकर कहा। रमेश ने नीलिमा की आवाज पहचानकर जवाब दिया ...हां नीलिमा...। फिर नीलिमा ने कहा ...और क्या चल रहा है, दिनभर बस घुमाई ही हो रही है... पढ़ाई लिखाई भूल गए हो क्या...?

रमेश से इस तरह से नीलिमा ही बात कर सकती थी। वरना रमेश को टोका-टाकी कम ही पसंद थी। और कोई टोकता भी नहीं था। रमेश भी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझता ही था। इसलिए घर वाले भी पढ़ने लिखने को लेकर ज्यादा कुछ नहीं बोला करते थे। पर प्रेम की दुनिया में तो ज्यादातर प्रेमिका की ही चलती है। और बेवजह डरने की एक्टिंग और बहानेबाजी तो प्यार में अक्सर चला ही करती हैं। जो थोड़ा सच में भी होता था और थोड़ा झूठ में भी।

...नहीं-नहीं मैं तो बस तुम्हे देखने के लिए ही बाहर निकला था... रमेश ने फोन पर नीलिमा को जवाब दिया। ...झूठ तो मत ही बोलिए, ....कब से मैं भी देख ही रही हूं, ...एक घण्टे से बाहर खड़े होकर बातें की जा रही है, ...खूब पढ़ाई चल रही है... नीलिमा ने झूठमूठ की नाराजगी भरे लहजे में जवाब दिया। लेकिन रमेश ने भी हमेशा की तरह अपने एक ख़ास दोस्त को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की। ...अरे यार वो सिद्धार्थ है न, उसकी वजह से बाहर आना पड़ा... रमेश ने इस जवाब से खुद को पाक साफ साबित करने का प्रयास किया। नीलिमा भी रमेश की इस जवाब को समझती ही थी। और वो भी रमेश के साथ तफरीह ही कर रही थी। ...अच्छा रमेश कल कॉलेज जाउंगी, होली की छुट्टियां खत्म हो गईं हैं, ...थोड़ी देर के लिए तुम जरा रास्ते में मिलना, ...ठीक है न, ...और थोड़ा ध्यान से आना, ...कोई देखे नहीं... नीलिमा ने रमेश से थोड़ी गम्भीरता से कहा। 

इसपर रमेश खुश होते हुए नीलिमा से कहता है, ...ओके! ...इससे अच्छा है कि हम कल मिल ही लेते हैं ना... रमेश ने बड़ी चापलूसी भरे लहजे में कहा था। ...नहीं मिलने की कोई जरूरत नहीं है, ...बस आप आ जाना, ...ठीक है... नीलिमा ने रमेश से कहा। रमेश ने भी जवाब दिया ...ठीक है जी.., ...आपकी जो आज्ञा... मैडम..। ...और हां... अब जाकर पढ़ाई करिए.., शाम को बाहर आइएगा... नीलिमा ने कहा। ...नहीं आऊंगा... रमेश ने कहा। ...क्या? जरा फिर से बोलिए तो... नीलिमा ने पूछा। ...नहीं-नहीं कुछ नहीं, बस मैं कह रहा था कि ...आई लव यू...। जवाब सुनकर नीलिमा ने भी हंसते हुए कहा ... बट आई हेट यू...। रमेश को आई हेट यू का मतलब अच्छे से पता था, जो उसे आई लव यू वाक्य से कहीं प्यारा था। ...ओके-ओके आई लव यू टू... अपना ख्याल रखना... बाय... नीलिमा ने कहा। फिर नीलिमा फोन रख देती है।

अगले दिन नीलिमा कॉलेज जाती है। उसके साथ उसकी एक सहेली भी होती थी। रमेश भी दोपहर का बेसब्री से इन्तजार करता है। आखिरकार दोपहर के ढाई बजे रमेश भी घर रवाना हो जाता है। रमेश की नजरें रस्ते भर नीलिमा को ढूंढती हुईं आगे बढ़ रही थी। अचानक दूर नीलिमा और उसकी सहेली आती हुईं दिखाई पड़ी। थोड़ी शर्म, थोड़ी हिचकिचाहट बढ़ने लगी थी। जो दोनों ओर एक जैसी ही थी। जैसे-जैसे दोनों के बीच फासला घटता जा रहा था धड़कनें बढ़ती जा रही थी। फिर दोनों काफी करीब आ चुके थे। नीलिमा ने अपने पर्स से एक गिफ्टनुमा डब्बा रमेश के हाथों में थमा दिया, और आगे बढ़ गई। रमेश और नीलिमा के चेहरों पे मुस्कान छाई रही। रमेश भी गिफ्ट जैसी कोई चीज लेकर वहां से ओझल हो गया। गिफ्ट को लेकर जिज्ञासा भी खूब बढ़ गई थी। लेकिन रमेश ने इत्मीनान से घर पहुंचकर ही इसे देखने की सोची। फिर नीलिमा के जाने के कुछ देर बाद रमेश भी घर की ओर लौट गया। रमेश और नीलिमा एक ही कॉलोनी में रहते थे। उनके घर भी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ही थे।

घर पहुंचकर रमेश ने बड़ी जिज्ञासा के साथ उस डब्बे को खोला। जिसमे कुछ ख़ास चीज तो नहीं थी, लेकिन प्यार खूब भरा था। रमेश भी मुस्कुरा उठा। मन ही मन रमेश सोचता है कि ...नीलिमा उससे बेइंतहां प्यार करती है..। डब्बे में खाने की चीजें थी, जो अक्सर होली जैसे पर्वों पर ज्यादातर घरों में बनते हैं। मेहमानों को भी परोसे जाते हैं। हां, डब्बे में घर में बनी गुजिया, मिठाई, नमकीन और अन्य पारंपरिक व्यंजन थे। जिसे नीलिमा ने रमेश के लिए अलग से बना लिए थे। रमेश को वैसे तो मीठा कुछ ख़ास पसंद नहीं था, लेकिन नीलिमा ने बड़े अरमानों और प्यार से बनाए थे। सो रमेश को इन चीजों का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था। रमेश भी इतनी चीजें अकेले नहीं खा पा रहा था। फिर क्या था सिद्धार्थ किस दिन काम आता। रमेश सिद्धार्थ के यहां पहुंच गया। दोनों पड़ोसी ही थे। रमेश और सिद्धार्थ हंसी मजाक करते हुए। व्यंजनो को चट कर गए। शाम होने को आ गई। रमेश भी नीलिमा की झलक देखने को बेकरार था।

शाम के पांच बज रहे होंगे। तभी रमेश की इच्छा पूरी हो जाती है। अचानक नीलिमा अपने घर के दरवाजे से एक दो कदम आगे बढ़ती है। इसलिए की रमेश उसे देख सके। रमेश और नीलिमा की नजरें टकराती हैं। दोनों के चेहरे किसी गुलाब की तरह खिल जाते हैं। लबों पर मुस्कान अपने आप बिखर जाती है। फिर नीलिमा घर में चली जाती है। रमेश भी नीलिमा के दीदार के बाद ख़ुशी महसूस कर रहा था। नीलिमा थी भी बेहद खूबसूरत। बला की खूबसूरती के साथ-साथ मासूमियत भी उसमे कूट-कूट कर भरी थी। जिसपर रमेश हर वक्त फिदा रहता था। शाम भी धीरे-धीरे ढल गया। रमेश भी अब डिनर के बाद पढ़ाई में मशगूल हो गया। 

रात के करीब 11 बज रहे होंगे। रमेश का ध्यान अब किताबों में कम और मोबाइल पर ज्यादा था। कुछ इतने बजे ही अक्सर नीलिमा का फोन आया करता था। रमेश बीच-बीच में मोबाइल उठाकर भी चेक कर रहा था। रात 12 बजने को हो चला था। रमेश भी अब ये सोच रहा था कि ...शायद कुछ काम होगा या नींद आ गई होगी, ...इसलिए नीलिमा ने फोन नहीं किया होगा...। तभी रमेश का फोन बज उठता है। नीलिमा का ही फोन था। रमेश की मायूसी ख़ुशी में बदल जाती है। चेहरा खिल जाता है। लबों पर मन्द-मन्द मुस्कुराहट सी छा जाती है। रमेश भी किताबों को बन्द कर नीलिमा से बातें करने लगता है।

...रमेश, कैसा लगा उपहार... नीलिमा ने पूछा। ...उपहार! तो बड़ा प्यारा था, ठीक तुम्हारी ही तरह... रमेश ने जवाब दिया। ...बस भी करो, मुझे घमंड हो जाएगा... नीलिमा ने कहा। ....वेसे कैसा लगा, गिफ्ट, ...कुछ खाया भी कि नहीं, या दोस्तों को ही बांट दिए..., होली थी, ...और जबतक आपको कुछ खिला नहीं लेती, ...मेरी होली तो अधूरी ही रहती है न... नीलिमा ने कहा। ...खाया, और बहुत अच्छा लगा नीलिमा... आई लव यू... रमेश प्यार दर्शाते हुए बोला। ...सब तुमने बनाए थे नीलिमा... रमेश ने पूछा। ...जी जनाब, ...नहीं तो और कौन बनाएगा... और हां, आई लव यू टू... नीलिमा ने खुश होते हुए जवाब दिया। ...इस प्यारे से गिफ्ट के लिए थैंक्स नीलिमा...। ...रहने भी दीजिए... इतना भी प्यारा नहीं था... नीलिमा बोली। ...खैर और बताइए क्या चल रहा था... अबतक... नीलिमा ने रमेश से बात आगे बढ़ाते हुए पूछा। रमेश ने कहा, ...बस कुछ नहीं, ...आपने मेरा टाइम टेबल जो तय कर रखा है... उस हिसाब से तो मैं पढ़ ही रहा था...। 

रमेश नीलिमा की इज्जत करता था और लगभग उसकी हर बात पर अमल भी करता था। नीलिमा भी रमेश की इन बातों और खूबियों से बहुत खुश रहती थी। ...अच्छा नीलिमा, एक बात कहूं...। ... बोलिए जी... नीलिमा ने कहा। ...मुझसे शादी कब करोगी..? रमेश ने ये सवाल किया। ...जब आप चाहें... तब कर लूंगी... नीलिमा ने जवाब दिया। ...पक्का... रमेश बोला। ...हां-हां बिलकुल पक्का... रमेश नीलिमा के इस जवाब से आत्म विश्वास और ख़ुशी से भर उठा। अक्सर रमेश ये बात नीलिमा से पूछता ही रहता था। दोनों ने देर रात तक अपनी बातें जारी रखी। ...अच्छा रमेश, अब फोन रखती हूं, सुबह मुझे जल्दी उठना भी है...। ...ठीक है जी, ...बाय, लव यू... रमेश ने कहा। ...लव यू टू... रमेश... गुड नाईट... बोलकर नीलिमा फोन रख देती है। भोर पहर होने वाला था, सो रमेश भी अब नीलिमा के बारे में सोचते हुए नींद में चला गया।






रमेश और नीलिमा का प्यार यूं ही परवान चढ़ता गया। रोज नीलिमा और रमेश फोन पर मन की बातें किया करते। फुर्सत में सबसे लुक छिपकर किसी पार्क, रेस्टोरेंट या मॉल में मिल भी लिया करते थे। ख़ूब साथ जीने की कसमें खाते। आलम ये था कि दोनों इक दूजे के बिना रह भी नहीं पाते थे। दोनों के बीच हद से ज्यादा मोहब्बत थी। साथ ही दोनों ने कभी भी मर्यादा की दहलीज को नहीं लांघा था। इसी तरह रमेश और नीलिमा के प्यार भरे दिन बीत रहे थे। मार्च भी गुजर चुका था। धीरे-धीरे अप्रैल भी बीतने को आया। हर साल की तरह गर्मी की छुट्टियों के दौरान नीलिमा इस बार भी घर वालों के साथ अपने गांव जाने वाली थी। रमेश भी पहले खूब अपने गांव जाया करता था। लेकिन, जबसे नीलिमा उसके जीवन में आई थी, तबसे रमेश कम ही गांव जाता था। बहरहाल, नीलिमा गांव जाने से एक दिन पहले रमेश को फोन करती है।

...रमेश, कल शाम को हमारी ट्रेन है..., ट्रेन आने से कुछ देर पहले घर से निकलेंगे... प्लीज... आप बाहर रहना..., आपको को जाते-जाते देख लूंगी, ...नहीं तो फिर जुलाई में ही लौटेंगे...। नीलिमा की बात सुनकर रमेश ने कहा ...हां, जरूर आ जाऊंगा, कितने बजे निकलना है... अभी बता दो..., मैं भी तो तुम्हे देख सकूंगा...। ...वैसे गांव जाना जरूरी था क्या..? रमेश ने हल्का उदास होकर पूछा। ...क्या कर सकते हैं, सभी लोग जा रहे हैं, मैं किस बहाने से यहां रुक सकती हूं... नीलिमा ने रमेश से उदास होते हुए कहा। ...ठीक है... ज्यादा उदास मत होइए, ...गांव से रोज फोन करूंगी... खूब बातें करूंगी... नीलिमा ने रमेश को समझाते हुए कहा। ...ठीक है, मैं इन्तजार करूंगा, और...गांव पहुंचने के बाद मुझे एक बार फोन कर लीजिएगा... रमेश ने ये बातें कहते हुए नीलिमा से घर से निकलने का वक्त दोबारा पूछा।

नीलिमा ने रमेश को अंदाजन एक वक्त बता दिया। अगले दिन रमेश तय वक्त पर नीलिमा के घर से निकलने का इन्तजार करने लगा। रमेश सिद्धार्थ के पास किसी बहाने से खड़ा हो गया था। सिद्धार्थ का घर सड़क के किनारे ही था। इसी सड़क से नीलिमा गुजरने वाली थी। कुछ देर इन्तजार के बाद नीलिमा घर वालों के साथ रेलवे स्टेशन के लिए निकलती है। स्टेशन भी वहां से बस कुछ ही दूरी पर था। इसलिए कॉलोनी के लोग अक्सर पैदल ही स्टेशन जाया आया करते थे। सड़क से गुजरती नीलिमा और रमेश के बीच चंद कदम की ही दूरी रही होगी। रमेश की निगाहें नीलिमा के चेहरे पर ही टिकी थीं। नीलिमा ने सबसे बचाकर अपनी नजरें उठाईं। रमेश और नीलिमा की बेसब्र नजरें कुछ पल के लिए ही मिलीं। फिर नीलिमा ने नजरें झुका ली। रमेश ने आंखों ही आंखों में नीलिमा को गांव के लिए विदा किया। नीलिमा रमेश के पास से गुजर चुकी थी। रमेश भी नीलिमा को जाते हुए तबतक देखता रहा, जबतक नीलिमा उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती।

रमेश भी अब अपने काम में व्यस्त हो गया। कुछ समय मित्रों संग तो ज्यादातर वक्त पढ़ने लिखने में ही व्यतीत करता। इस दौरान नीलिमा भी गांव से लगभग रोज ही रमेश से बातें किया करती थी। अब तो दोनों शादी को लेकर भी खूब बातें करते और भविष्य के अनगिनत ख्वाब बुना करते थे। एक दूसरे से दूर हुए अभी कुछ दिन ही गुजरे होंगे कि रमेश और नीलिमा को कभी-कभी खूब याद सताती थी। नीलिमा तो कई बार भावुक भी हो जाती। तब रमेश उसे फोन पर ही समझाया करता था। शायद नीलिमा कभी-कभी भविष्य की अनिश्चत्ताओं से भयभीत हो जाती। रमेश से बिछड़ने की बात जेहन में आते ही वो घबरा सी जाती थी। रमेश का भी हाल कुछ ऐसा ही था। रमेश भी उसे हमेशा दिलासा देता था, कि वह जल्द कोई न कोई सर्विस ढूंढ लेगा। नीलिमा भी हमेशा रमेश से कहती थी कि उसे इस बात का पूरा भरोसा है। लेकिन, वह स्वयं कभी हिम्मत न हार जाए। आखिर नीलिमा के घर वाले भी अब उसके लिए रिश्ता देख रहे थे।

वक्त यूं ही बीतता चला गया। मई का महीना भी शुरु हो चुका था। नीलिमा और रमेश अब दोनों समझ गए थे कि, उनके पास अब ज्यादा वक्त नहीं है। रमेश भी अब पढ़ाई लिखाई कम करके किसी सर्विस की तलाश में जुट गया था। बिछड़ने की आहट भर से ही दोनों के बीच प्यार और बढ़ गया था। मई का महीना भी अब गुजरने ही वाला था। इसी बीच एक दिन नीलिमा रमेश को गांव से फोन करती है।


...हेलो! रमेश जी कैसे हैं...। ...ठीक हैं, अपना बताइए... बड़ी खुश लग रही हैं... आज तो, ...क्या बात है... रमेश ने कहा। ...बात तो खुशी वाली ही है... आज घर वाले रिश्ता देखने गए थे... मगर, ....किसी को लड़का पसंद ही नहीं आया...। रमेश नीलिमा की इस बात को सुनकर खुश होते हुए बोला ...तुम्हे लड़का पसंद था क्या...। ...जी नहीं... मुझे सिर्फ आप पसंद हो... नीलिमा ने रमेश से बड़े प्यार से कहा। रमेश भी नीलिमा के इन लफ्जों को सुनकर मन ही मन प्रफुल्लित हो चला था। ...थैंक गॉड... सब सही है, ... हमें कुछ मौका और मिल गया... नीलिमा ने रमेश से कहा। ...मौका नहीं भी मिलता तो मैं तुम्हें बिछड़ने नहीं देता... नीलिमा... तुम मेरी जीवन हो... रमेश ने कहा। ...आप मुझे इतना कीमती न बनाया करिए.., रमेश जी... बाकी कुछ भी कह लीजिए... मैं नहीं रही तो..., फिर...। ...मैं ऐसा नहीं होने दूंगा... आपको बिछड़ने नहीं दूंगा..., हम हमेशा साथ रहेंगे... समझीं न... रमेश ने गम्भीरता से जवाब दिया। ...अब बताओ तुम मेरी जीवन हो... न... रमेश ने फिर से पूछा। ...ठीक है... पर मुझे अच्छा नहीं लगता... आपसे ज्यादा कीमती मैं नहीं हूं... बस इतना ही जानती हूं... नीलिमा ने बड़े ही करुण स्वर में ये बात रमेश से कही। काफी देर बात करने के बाद नीलिमा ने कहा ...अच्छा रमेश जी, ... अब मुझे जाने दीजिए... नहीं तो सब शक करेंगे कि इतनी देर किस्से गुफ्तुगू की जा रही है... वो भी छत पर जाकर...। ... ओके, नीलिमा, ...अपना ख्याल रखना, ...फिर फोन करना... रमेश ने कहा। इसके बाद दोनों ने थोड़ी सी औपचारिकताओं से भरी बातें करने के बाद फोन रख दिए।

रमेश और नीलिमा दूर होकर भी हमेशा करीब ही रहते थे। कभी भी दोनों ने एक दूसरे को दूर होने का अहसास नहीं होने दिया। नीलिमा भी रोज रमेश के लिए कुछ वक्त निकाल ही लेती थी। पर रमेश बीते कुछ दिनों में जो भी हुआ था, उसे लेकर थोड़ा सतर्क और नर्वस रहने लगा था। वह जल्द से जल्द अब कोई नौकरी ढूंढने को ही तवज्जो देने लगा था। इसी बीच मई का महीना भी निकल चुका था। जून की झुलसा देने वाली गर्मी भी शुरू हो चुकी थी। सबके लिए ये थोड़ी परेशानी वाली बात थी, पर रमेश और नीलिमा के लिए ये किसी ख़ास मौके की तरह ही थे। जो उन्हें कुछ पल एक दूसरे से बात करने के अवसर प्रदान किया करते थे, जब जेठ के लंबे दिन काटने के लिए लोग अक्सर दोपहर होते-होते कुछ देर के लिए सो जाया करते थे। गांव देहात में अक्सर ऐसा होता भी है। रमेश और नीलिमा के बीच सबकुछ ठीक चल रहा था। रमेश को तो जून बीतने का इन्तजार था। लंबे दिन नीलिमा की यादों में ही गुजर रहे थे। फिर जुलाई भी आ ही गया। अब रमेश को नीलिमा के गांव से जल्द लौटने की बेसब्री थी। नीलिमा ने भी रमेश को आने की खुश खबर दे दी थी।

जुलाई के पहले सप्ताह का अंतिम दिन था। रमेश आज बहुत खुश था। नीलिमा आज गांव से लौटने वाली थी। रमेश ख़ुशी के मारे पिछली रात ठीक से सो भी नहीं पाया था। सुबह से ही उसकी नजरें नीलिमा के दीदार के लिए बेसब्र थीं। दोपहर होने वाला था। रमेश भी सिद्धार्थ के साथ किसी बहाने से घर से बाहर सड़क की तरफ ही निकल आया था। रमेश की नजरें बार-बार सड़क को तकती थीं। नीलिमा के आने का वक्त जैसे-जैसे करीब आता, रमेश की व्याकुलता बढ़ती ही जाती। फिर एकदम से रमेश ने सिद्धार्थ से बातें करनी बन्द कर दी। नीलिमा को देखकर रमेश अक्सर ही ऐसा किया करता था। सिद्धार्थ भी समझ गया था। नीलिमा सड़क पर दूर से अब काफी करीब आ चुकी थी। नीलिमा और रमेश की नजरों ने कई दिनों बाद एक-दूसरे को देखकर ठंडक महसूस की थी। दोनों के चेहरों पर खुशी साफ झलक रही थी।






गांव से लौटकर नीलिमा अपने घर के काम में व्यस्त हो जाती है। धीरे-धीरे शाम भी ढल जाती है और रात हो जाती है। रात लगभग 8 बजे होंगे कि निलिमा रमेश को फोन करती है। रमेश भी जैसे फोन का इन्तजार ही कर रहा था। लेकिन रमेश ने फोन काट दिया। क्योंकि वह अपने घर पर ही था। फिर किसी बहाने से रमेश अपने घर से बाहर निकल आया। और बड़ी उत्सुकता से उसने नीलिमा को दुबारा फोन किया।

...हैलो... नीलिमा की इस आवाज को पहचानकर रमेश ने कहा ... जी निलिमा जी... आज तो आप बड़ी खूबसूरत लग रहीं थीं...। ...बस शुरू हो गए... ये छोड़िए.. बताइए कैसे हैं... ठीक हैं न... निलिमा ने ये बात रमेश से किसी काम में व्यस्त होते हुए कहा। शायद वह डिनर बना रही थी। रमेश को भी इसका अंदाजा था। ...मेरी बातें तो तुम्हारी तारीफ से ही शुरू होती हैं, ...मेरी निलिमा... सिर्फ मेरी नीलिमा... तुम सिर्फ मेरी हो... आई लव यू... नीलिमा... रमेश ने कहा। ...अच्छी तरह से जानती हूं... और मैं सिर्फ आपकी हूं... ...अब खुश... मेरे रमेश बाबू... ...और आई लव यू टू... आप खुश हैं तो मैं भी खुश हूं... ...रमेश...। ....अच्छा बात करने के लिए वक्त कैसे मिल गया... अभी तो सभी लोग घर पर ही होंगे... जग भी रहे होंगे... रमेश ने पूछा...। ...अरे अपनी सहेली के बहाने से आपसे बात कर रही हूं... और किचेन में हूं, यहां पर कोई भी नहीं है... समझे...। ...अच्छा जी... समझ गए..., ये बताइए गांव में हमारी याद भी आती थी कि नहीं... रमेश ने थोड़ा हंसते हुए नीलिमा से कहा। ...याद नहीं आती तो, जनाब से सुबह और शाम फोन पर बात कौन करती थी... आपको बहुत मिस करती थी... नीलिमा ने रमेश से कहा। ...जानता हूं, ...और सुबह और शाम के अलावा... दोपहर और रात ...तो भूल ही गईं... रमेश ने कहा। ...आपको याद है न, बस ठीक है... और अभी ज्यादा बात नहीं कर सकती, ...रात में टाइम मिलेगा तो फोन करूंगी... ठीक है..., और जरा सड़क की तरफ आइए... एक बार आपको देख लूं... नीलिमा बोली। ...ठीक है, नीलिमा... लव यू... बाय...। ...लव यू टू... रमेश... बाय।

रमेश भी थोड़ी दूर से नीलिमा के घर से बाहर आने का इन्तजार करता है। नीलिमा की झलक मिलते ही उस तरफ बढ़ चलता है। दोनों जब भी करीब होते उनकी धड़कनें अपने आप ही तेज हो जाती। दोनों के लबों पर न चाहते हुए भी चाहत और हया से भरी एक मीठी मुस्कान छा जाती थी। बहरहाल, नीलिमा अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी। रमेश अपनी प्यारी सी नीलिमा को देखते हुए उसके सामने से कुछ फासले से ही गुजरा। जब भी रमेश नीलिमा को देखता मानो सारी दुनिया को ही भूल जाता। जैसे नीलिमा ही उसकी पूरी दुनिया हो। रमेश को नीलिमा की हर बात बहुत पसंद थी। तभी तो अब रमेश नीलिमा को अपने जीवन साथी के रूप में देखने लगा था। रमेश ने अनगिनत सपने और ख्वाहिशें बुन लिए थे।

जिसे वह नीलिमा को कभी कभी बताता भी था। नीलिमा भी रमेश की इन बातों को सुनकर यही कहती थी कि ...आपके सारे सपने पूरे हों मेरे रमेश...। रात को भी नीलिमा ने रमेश को फोन किया। दोनों ने ढेर सारी बातें की। इसी तरह रोज नीलिमा और रमेश की बातें होती। कॉलेज भी खुल चुके थे। रमेश और नीलिमा कभी-कभी कॉलेज टाइम पे किसी रेस्टोरेंट में मिल भी लेते थे। ज्यादातर दोनों एक ख़ास रेस्टोरेंट में ही मिलते थे। जहां उन्हें कोई देख न सके। अक्सर रमेश ही मिलने के लिए नीलिमा को मनाता था। पर जब वे मिलते तो दोनों की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता था। वे एक-दूसरे में इतने खो से जाते कि घण्टों का वक्त मिनटों की तरह बीत जाते। रमेश हमेशा कुछ देर ठहरने के लिए कहता, नीलिमा भी रमेश को मायूस नहीं करती थी। हमेशा कुछ देर और रुक जाती थी। इसी तरह जुलाई और फिर अगस्त भी बीत गया।

रमेश और नीलिमा की प्यार की कहानी भी वक्त के साथ आगे बढ़ती रही। फिर सितम्बर का वो महीना भी शुरू हो गया था। जिसमे वक्त अब रमेश का इम्तहान लेने वाला था। वो भी ऐसा जिसका रमेश ने कभी कल्पना भी न की थी। जल्द ही सब कुछ बदलने वाला था। रमेश का विश्वास, आत्मविश्वास और वक्त सब कुछ तिनके की तरह बिखरने के कगार पर पहुंचने वाले थे। यही नहीं खुद रमेश की नीलिमा भी बदलने वाली थी। जिसका ख्याल रमेश ने कभी अपने जेहन में भी नहीं लाया था। सारे वादे, कसमें, सपने सब टूटने वाले थे। इसकी शुरुआत कुछ इस तरह से होती है।

रात के लगभग सवा 11 बज रहे होंगे। रमेश अपने रूम में अन्य दिनों की तरह किताबों में ध्यानमग्न था। उस रात को भी रमेश नीलिमा के फोन का इन्तजार कर रहा था। आखिरकार नीलिमा ने हमेशा की तरह ही रमेश को फोन किया। आज उनके बीच जो बातें होने वाली थी अनजाने रमेश को बेचैन करने वाली थीं। रमेश हमेशा से ही नीलिमा का फोन काटकर दुबारा उसे फोन किया करता था। इस बार भी रमेश ने ऐसा ही किया।

...हैलो... रमेश..., मैं आपके बिना नहीं रह सकती... आई लव यू... टू मच... रमेश मुझे खुद से कभी अलग मत होने देना... मैं किसी और के साथ नहीं रह पाऊंगी... कौन समझेगा मुझे... कौन मुझे इतनी इज्जत देगा... कौन मुझे आप जितना प्यार करेगा... नीलिमा रमेश से ये बात कहते हुए भावुक सी हो जाती है।

उसकी आवाज वेदना से भरा हुआ था। अक्सर जब कभी भी नीलिमा भावुक होती या परेशान होती तो रमेश ही उसे समझाया करता था। रमेश नीलिमा को कभी भी परेशान हाल नहीं छोड़ता था। जबतक नीलिमा सभी बातें भूलकर हंसने नहीं लग जाती तबतक रमेश उसे मनाता या समझाता रहता था। और इस बार रमेश नीलिमा को समझाने के बजाय खुद ही भावुक होने लगा था। नीलिमा की बातों को सुनकर रमेश ने इतनी कल्पना तो कर ही ली थी कि मामला नीलिमा की शादी की बातों से ही जुड़ा हुआ है। रमेश के जीवन में अब बहुत कुछ घटने वाला था। कुछ अकल्पनीय होने वाला था...

@ सेराज खान...
(मार्च 21, 2017) (भाग दो समाप्त)

नोट- ये कहानी, जिसका शीर्षक 'एक कहानी तेरी और मेरी (शहनाई)' है, काॅपीराइट एक्ट के तहत पूर्णतः सुरक्षित है। इस कहानी के किसी भी भाग का बिना इजाजत किसी भी अखबार, पत्रिका, वेबसाइट या शोशल मीडिया पर प्रकाशन मना है।

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