Dinosaur डायनासोर देखना हो तो कानपुर आइए न!

सेराज, 2 सितंबर, 2019 

डायनासोर! आधुनिक काल में रखे गए इस नाम से जुड़ा जीव करोड़ों साल पुराना है, और इतने ही साल पहले ये धरती से पूरी तरह से विलुप्त भी हो चुका है। इसको लेकर कई कारणों को बताया गया है। कई सिद्धांत भी दिए गए हैं। लेकिन हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे। बल्कि कानपुर जू में मौजूद डायनासोर्स के बारे में बात करेंगे। डायनासोर और वो भी कानपुर के चिड़िया घर में। सुनने में अजीब लग रहा है न। लेकिन बात सच है। भले ही यह जीवित या असली न हों, लेकिन बहुत ही कम जगहों पर ऐसी चीजे देखने को मिलती हैं। 


असली को मात नहीं दे सकते, लेकिन इनकी बनावट व आसपास का परिवेश देखने लायक है। कभी कानपुर आइए तो वक्त निकालिए और यहां के जू का भ्रमण जरूर करिए। वैसे भी कानपुर में घूमने फिरने के लिए काफी कम स्पाॅट हैं। जो थोड़े बहुत हैं भी, उनमें मेरी नजरों में कानपुर का चिड़ियाघर सबसे बेहतर है। यहां जीव, जंतु, घने पेड़ पौधे और प्रकृति के बेहद शानदार नजारे हैं। और बड़ी ही बारीकी से बनाए गए पत्थर के डायनासोर तो हैं ही, जो कानुपर के अलावा आसापास कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे।


जू में वैसे तो लगभग सभी जंगली जीव देखने को मिल जाएंगे। लेकिन विशाल डायनासोर्स को देखने का मौका सिर्फ यहीं पर मिलता है। कंक्रीट और पत्थर से बनाए गए डायनासोर्स की प्रतिकृति जरूर नकली हैं, लेकिन बनाए बेहद शानदार ढंग हैं। एक नजर में बिलकुल ही असली की तरह दिखते हैं। और एक नहीं, बल्कि कई पत्थर के डायनार्सार्स यहां पर हैं। और वे भी छोटे-मोट नहीं बल्कि वास्तविक आकार में ही इन्हें बनाया गया है। 

इनके आसपास का परिवेश भी ठीक वैसा ही लगता है, जैसा की उनके समय में रहा होगा। घने जंगल, विशाल पेड़ और झाड़ियां। रही सही कसर कानपुर चिड़ियाघर की भौगोलिक आकार पूरा कर देता है। उंची नीची जमीन, छोटी मोटी खाइयां और टापू नुमा कई स्पाॅट। इन डायनासोर्स को भी बाड़े़ जैसे आकार के विशाल जगहों में जंगल के बीच में रखा गया है। जब घनी बदली हो तो जंगल (जू)  में घने पेड़ों के बीच इन्हें देखना अविस्मरणीय होता है।  

यहां शाकाहारी और मांसाहारी डानासोर्स की दोनों प्रजातियां देखने को मिल जाएंगे। एक जगह शाकाहारी डायनासोर घास खाने की मुद्रा में है। इसका आकार काफी विशाल है। और मांसाहारी डायनासोर से कई गुना बड़ा भी है, लेकिन ये खतरनाक नहीं है। इसी के बगल में थोड़ी दूरी पर एक दूसरे बाड़ेनुमा जगह पर घनी झाड़ियों और पेड़ों के बीच मांसाहारी डायनासोर्स की पत्थर की प्रतिकृति हैं। ये शिकार की मुद्रा में हैं। 

हमला करता डायनासोर दूसरे डायनासोर को अपने घातक जबड़ेे से घायल कर जमीन पर पटक देता है, जिसे वह अपना भोजन बनाएगा। ऐसा वहां बनाई गई प्रतिकृति को देखने के बाद सहज ही ख्याल आने लगता है। दृश्य रोमांच पैदा करते हैं। हां, बस देखने का नजरिया थोड़ा अच्छा हो। बाकी प्रकृति आपको काफी रोचक लगेगी। तो कानपुर आइए तो यहां के डायनार्सार्स को देखना भूलिएगा नहीं। वैसे भी अक्सर कानपुर में प्रदूषण रूपी विशालकाय डायनासोर दुनिया भर में शोर मचा देता है। 

कानपुर उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों में से एक है। कानुपर अभी भी वैसा ही है, जैसा कि 10 साल पहले था। हां, धूल थोड़ा कम हुआ है। लेकिन सड़कों पर भीड़ बढ़ गई है। कोई खास नई चीज नहीं आई है। कुछ माॅल्स जरूर खुल गए हैं। फेक्ट्रियां है। लेकिन अब पहले जितनी नहीं। छोटी-मोटी ही हैं। बड़े कल कारखाने लगभग बंद हो चुके हैं, जो कभी कानपुर को मैनचेस्टर कहलाने का मौका देती थीं। अब वैसा नहीं है। 

हां, नए कारीडोर बनाने का प्रस्ताव है। महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए हैं। लेकिन कबतक इनपर अमल होता है और यह जमीन पर कब नजर आता है। फिलहाल कह नहीं सकते। फेक्ट्रियां तो बंद हुईं, लेकिन एक चीज में फिर भी कानुपर नबर वन बन जाता है। प्रदूषण में। अखबार पढ़ते होंगे तो इस बात का तो पता ही होगा। बहरहाल, जल्द ही कानुपर स्वच्छता के लिए उदाहरण बने। ऐसी आशा करते हैं। इन सब के बीच कानपुर की एक महत्वपूर्ण खासियत यहां का मशहूर चिड़िया घर है।  

पिछले दिनों में बचपन के कई मित्र कानपुर पहुंचे। फिर क्या था। घूमने फिरने और बचपन की बातों से मूड को थोड़ा रिफ्रेश करने के लिए घूमने की सोची। ज्यादातर ने तो नहीं, लेकिन कुछ ने चिड़ियाघर चलना ही बेहतर समझा। मेरी भी राय यही थी कि यहां कोई घूमने फिरने की जगह है तो वह है चिड़िया घर। वहां जाना अच्छा लगता है। फिर प्लान बन गया और हम सभी वहां के लिए रवाना हो गए। टिकट कटाई और जू में प्रवेश किया। बहुत सालों में बाद चिड़िया घर में बचपन के मित्रों के साथ पहुंचे थे। 






कई तो दस-दस साल बाद यहां पहुंचे। बचपन में स्कूल के दिनों में हम लोग अक्सर चिड़िया घर घूमने जाया करते थे। उसके बाद से ये बाहर से आए दोस्तों के लिए यह पहला मौका था। सो उत्साह भी था। कंक्रीट के जंगल की जगह जब यहां की हरियाली और सुंदरता पर नजर पड़ी तो सभी को काफी सुकून मिला। यहां झाील का मनोरम नजारा देखते ही बन रहा था। और जीव जंतुओं और पक्षियों की आवाजें लगातार खुशी दे रही थीं। 

हां। कानुपर का चिड़िया घर घूमने आए तो एक बात का जरूर ध्यान रखें कि यह देश के बड़े जूलोजिकल पार्काें में से एक है। इसलिए पूरा जू घूमने के लिए काफी चलना फिरना पड़ेगा। मेरे ख्याल से तो यहीं जू घूमने का असली मजा है। बस प्रकृति के बीच घूमते जाओ। मैं तो कभी ऐसी जगहों पर थकता ही नहीं, लेकिन कुछ दोस्त ऐसे थे कि उन्हें थकान जरूर महूसस होने लगी। शायद उनका वजन अब सामान्य से से थोड़ा ज्यादा हो चुका था।

थकने को लेकर जगह-जगह बैठते और फिर आगे बढ़ते। हंसी मजाक के साथ चिड़ियाघर घूमने का आनंद लेने लगे। कुछ दोस्तों ने पूरा जू घूमने के बजाए आधे से ही वापस लौटने प्लान बनाया। लेकिन ऐसा होने नहीं दिया गया और उनका प्लान फेल हो गया। इसपर वे थोड़े खीझे जरूर लेकिन पुराने दोस्तों के बीच ऐसा कहां चलता है। बस थोड़ा सा और बचा है, ये जानवर देखने के बाद लौटने का बहाना बनाकर खीझने वाले दोस्त पूरा जू घूमने को विवश कर दिए गए।   

वैसे कानुपर जू में बैट्री से चलने वाले टूरिस्ट कार, मिनी ट्रेन की भी व्यवस्था है, जो आपको पूरा जू घुमा देंगे। कुछ किराया जरूर लगता है। लेकिन चिड़िया घर घूमने का असली मजा पैदल ही चलने में है। बहरहाल प्रदेश में जंगल बुहत ही कम हैं। देश भर के कुल जंगल से तुलना की जाए तो इसकी गिनती अंतिम कुछ राज्यों में शुमार किया जाता है। यकीन मानिए इस क्षेत्र में जगल का अहसास करना हो या जंगल में कैसा लगता है या जंगल की शांति या खामोश शोर कैसा होता है।

इसका अनुभव करना हो तो यह स्थान सर्वाेत्तम है। बारिश का मौसम हो और आप प्रकृति प्रेमी हैं तो यहां पर आपका आना सफल हो जाएगा। घने जंगल और शेर बाघ जैसे जानवर आपको रोमांचित कर देंगे। बारिश की बूंदे जब यहां मौजूद विशाल पेड़ों की पत्तियों पर पड़ती हैं तो उसकी आवाज अलग ही अनुभव कराती हैं। यहां मौजूद कई छोटे-छोटे नाले नालियां आपको वास्तविक जंगल में होने का अहसास कराते हैं। 

वैसे, पूरा चिड़िया घर घूमने के बाद हम थोड़ा थक जरूर गए थे। लेकिन बहुत खुश थे। बहुत दिनों के बाद ऐसी थकान हुई थी। रात में बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ गई। वरना देर रात तक जागना और मोबाइल पर स्ट्रीमिंग और शोशल मीडिया में उलझे रहते है। शोशल साइट्स और इंटरनेट ने कई सहूलियतों के साथ कई समस्याएं और खराबियों को भी जन्म दिया है। कई आदतों की जगह इसकी आदत लग चुकी है। खासकुर युवा वर्ग में। बहरहाल इसके बार में किसी और ब्लाॅग में चर्चा करेंगे। प्राकृतिक नजारों से भरे दृश्यों और खूबसूरत जानवरों को देखने के बाद जो खुशी और संतोष मिलता है।

शायद मोबाइल, टीवी या माॅल्स में कभी नहीं मिलता। भले ही आप कितने आधुनिक क्यों न हो जाएं। प्रकृति हमेशा आपको असलियत बताती रहती है कि वह ही हकीकत है। और उसका ही राज इस धरती पर चलता है। वो है तो धरती है, वो नहीं है तो धरती भी नहीं है। तो प्रकृति को बचाइए। पेड़ लगाइए। पर्यावरण को संजोकर रखिए। इसे बर्बाद होने से बचाने में मदद करिए और आसपास हरियाली को बढ़ावा दीजिए। और हां कभी कानुपर आइए तो चिड़िया घर जरूर जाइए। क्या है कि आपके जाने से वहां के पशु पक्षियों को भी खुशी मिलती है। समझें...। 


क्या आपको पता है, कि कानपुर चिड़िया घर में आया पहला जानवर कौन था। चलिए बता देते हैं कि वह जानवर था ओटर (Otter, ऊदबिलाव)। इसी प्रकार एक खास बात ये भी है कि चिड़ियाघर का उद्घाटन 4 फरवरी 1974 को एक बच्चे के हाथों किया गया था। आपको बता दें कि, कानपुर जू का क्षेत्र 76.56 हेक्टेयर में है। यह एलन-वन का हिस्सा है। इसका निर्माण वर्ष 1971 में शुरू हुआ था और 4 फरवरी 1974 को जनता के लिए खोला गया। एलन वन का विकास 1913-1918 के बीच ब्रिटिश उद्योगपति जॉर्ज बर्नी एलन ने किया था। 

यहां की झील 18 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैली हुई है। बढ़ती आबादी एलन फॉरेस्ट के लिए एक खतरा थी। जंगल के विनाश की आशंका थी। साल 1975-1976 तक 10 बाड़े थे। आरएस भदुरिया वर्ष 1971 में यहां के पहले निदेशक नियुक्त हुए। यहां टाइगर के बाड़े को ऐसे डिजाइन किया गया है कि बाघ के खेलने के लिए पर्याप्त पानी और स्थान है। हालांकि जू में बाड़े, इमारतें और सड़कें बनाई गई हैं, लेकिन यहां बहुत बड़ा अछूता इलाका है। जो इसे घने जंगल का रूप देता है। जो यहां आने वालों को मंत्र मुग्ध करती हैं।

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