कहानी तेरी और मेरी (शहनाई-भाग-तीन)

'शहनाई'
भाग-तीन
'तेरा यूं दूर चले जाना'
'तेरा ऐसे मुकर जाना'

...नीलिमा... क्या हुआ... क्यों रो रही हो... क्या बात है, मैं हूं न, ...फिर... चलो मुझे बताओ क्या हुआ, क्या बात है... रमेश ने नीलिमा को चुप कराते हुए कहा। नीलिमा रोए जा रही थी। जिसे रमेश ने फिर से समजाया और रोने की वजह पूछी। ...नीलिमा अब बताओ... ऐसी कौन सी बात है, ....जो एक प्यारी सी लड़की को रुला रही है...। नीलिमा ने सिसकते हुए कहा ...कुछ नहीं, बस घबरा गई थी...। ...किस बात से घबरा गई थी मेरी स्वीट सी नीलिमा... जरा मैं भी तो सुनू ...अब बताइए... मैं यहीं पर हूं, फिर इतना क्यों घबरा गईं थीं आप... रमेश ने नीलिमा को आखिरकार चुप करा ही लिया था।

...आप मुझे हमेशा मना लेते हो ...बस इसी बात से डरती हूं... रमेश ...आपसे दूर होकर मैं कैसे रह पाऊंगी... कौन मुझे समझेगा...। ...ओह, नीलिमा मन में ऐसे ख्याल क्यों लाती हो... हम हमेशा साथ रहेंगे... अब जरा हंस दो तो... और क्या बात थी जिससे तुम्हारी आंखों में आंसू आ गए... रमेश ने बड़ा प्यार दर्शाते हुए नीलिमा से बोला था। नीलिमा ने कहा... रमेश... आप मुझे कभी बिछड़ने तो नहीं दोगे न...। ...नहीं नीलिमा... कभी भी आपको मुझसे बिछड़ने नहीं दूंगा। नीलिमा ने कहा ...इसीलिए तो आपसे प्यार करती हूं... रमेश... और रमेश कल घर वाले मेरे लिए, लड़का देखने जाएंगे... और मुझे भी साथ जाना होगा... ये बात मुझे बस अभी-अभी पता चली थी... इसलिए आपकी नीलिमा घबरा गई थी, ...लेकिन, मैं जानती थी कि आपसे बात करूंगी तो सब ठीक हो जाएगा... रमेश। ...नीलिमा... अगर रिश्ता तय हुआ तो तुम क्या करोगी... रमेश ने सीधे और साफ लहजे में पूछा। 

...मुझे इससे कोई मतलब नहीं... मैं सिर्फ आपके साथ रहना चाहती हूं... मुझे सिर्फ आप पसन्द हो... और मुझे उम्र भर आपके संग ही रहना है। जवाब सुनकर रमेश ने कहा ...पक्का...। ...हां-हां, ...बिलकुल पक्का... नीलिमा बोली। ...तो फिर सब ठीक है ...आय लव यू...। ...आय लव यू टू रमेश...। ...अच्छा कब जाना है, और कहां जाना है... रमेश ने पूछा। नीलिमा ने बताया कि ...कल रात में निकलेंगे, ...ट्रेन से जाना है...। नीलिमा ने रमेश को उस शहर का नाम भी बता दिया, जहां पर जाना था। बात करते-करते दोनों अब थोड़े सामान्य हो गए थे। ...अच्छा नीलिमा, लड़के का नाम क्या है, ...मुझे पता है तुम नहीं बताओगी ...फिर भी पूछ रहा हूं... रमेश ने थोड़ा चिढ़ाते हुए ये बात पूछी। 

...हां... नहीं बता पाऊंगी, क्योंकि... मुझे पता भी नहीं है... नीलिमा ने हल्की नाराजगी भरे लहजे में जवाब दिया था। हालांकि, नीलिमा ने एक-दो नाम अंदाजे से रमेश को बता दिए थे। ...ठीक है, ...वहां पर क्या हुआ... फोन पर बताइएगा... रमेश ने कहा। ...हां, मौका मिलेगा तो जरूर आपको फोन करूंगी... और आप भी निश्चिन्त रहिएगा... मैं सिर्फ आपकी हूं...। ...ठीक है... रमेश ने कहा। रमेश और नीलिमा ने सुबह होने तक बात की। ...अच्छा रमेश... अब सबके जगने का वक्त होने वाला है... मैं भी कुछ देर आराम कर लूं ...नहीं तो दिनभर इधर से उधर गिरती फिरूंगी...। ...ठीक है, नीलिमा... लव यू...। ...लव यू टू... रमेश...। ...अरे एक बार जरा ...आय हेट यू... तो बोल दीजिए... रमेश ने हंसते हुए कहा। ...अच्छा... आय हेट यू... सॉरी-सॉरी, ...आय लव यू टू मच... रमेश... नीलिमा ने ये बात कहते हुए रमेश को ...बाय... बोला और फोन रख दिया।


'तुमको शोहरत हो मुबारक, हमको रुस्वा न करो
खुद भी बिक जाओगे इक रोज, ये सौदा न करो'

शौक से पर्दा करो, पर्दा है वाजिब लेकिन
मेरे किस्मत के अंधेरों में और इजाफा न करो'

देर से सोने की वजह से की वजह से रमेश आज देर से उठा था। वैसे भी जगते हुए रमेश नीलिमा की शादी की बातों को लेकर लेकर चिंतित ही रहता। नीलिमा ने दोपहर के समय फोन किया और कुछ देर तक हमेशा की तरह बात की। लेकिन, रमेश के चेहरे से ख़ुशी थोड़ी गायब हो चुकी थी। क्योंकि नीलिमा रमेश नहीं थी और रमेश नीलिमा नहीं था। रमेश भावुक किस्म का था लेकिन, अपने फैसलों पर दृढ़ ही रहता था। और नीलिमा भी थोड़ी भावुक शैली की ही थी लेकिन, उसमे रमेश वाली दृढ़ता न थी।

खैर, शाम को रमेश और नीलिमा ने एक दूसरे का दीदार किया। फिर रात भी हो ही गई, जो रमेश के लिए न बीतने वाली थी। रमेश का मन किताबों में नहीं लग रहा था। नींद भी कहीं उड़ सी गई थी। रात करीब डेढ़ बजे रहे होंगे। शांत रात में बाहर सड़क पर किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी। हां, नीलिमा अपने घर वालों के साथ स्टेशन की तरफ जा रही थी। रमेश ने नीलिमा की आवाज पहचान ली थी। नीलिमा ने भी रमेश को घर से निकलने का वक्त दोपहर में ही बता दिया था। पर, नीलिमा को कहीं जाते हुए पहली बार रमेश नहीं देख पा रहा था। जो, रमेश को कुछ व्यथित भी कर रहा था।

नीलिमा के सड़क से गुजरने के बाद रमेश ने सोने की कई बार कोशिश की लेकिन, उस रात नींद नहीं आई। जागते हुए रमेश नीलिमा के बारे में ही सोचता रहा। उसी के ख्यालों में खोया रहा और अपनी कल्पनाओं में ही डूबा रहा। शादी की बातों को लेकर रमेश थोड़ा तनाव में भी था। ऐसे में सुबह की पहली किरण के साथ ही रमेश ये सोचकर जॉगिंग के लिए निकल पड़ा कि तनाव भरी बातों से कुछ तो निजात मिलेगी। पर, ऐसा नहीं हुआ। रमेश भी काफी देर तक स्टेडियम में ही बैठा रहा। शायद वह कॉलोनी नहीं लौटना चाहता था, क्योंकि उसकी नीलिमा आज वहां पर नहीं थी। लेकिन, घर तो लौटना ही था। सो, रमेश कुछ देर बाद ही स्टेडियम से घर के लिए रवाना हो गया।

घर पहुंचकर रमेश ने फिर सोने की कोशिश की, पर नींद नहीं आई। रमेश न जाने क्यों परेशान था। सब ठीक होने पर भी रमेश को अचानक डर लगने लगा था। रमेश भी नीलिमा को लेकर बढ़ रही व्याकुलता से छुटकारा पाना चाहता था। इसलिए वह सिद्धार्थ के साथ कहीं घूमने फिरने चला गया। नींद के अलावा भूख भी मर सी गई थी। दिन भर रमेश सिद्धार्थ के साथ व्यस्त रहने की कोशशि करता रहा। रमेश के लिए अकेले में रहना तो अब मुश्किल सा हो गया था। दो दिन किसी तरह बीत गए। इस दरम्यान रमेश नीलिमा का फोन का इंतजार भी करता रहा, बार बार अपने फोन को चेक करता, लेकिन नीलिमा का कोई कॉल नहीं आया। रमेश इसका मतलब समझ चुका था।

बहरहाल, तीसरे दिन नीलिमा भी अपने घर वालों के साथ लौट आई। उसके लौटते हुए शाम हो चुकी थी। रमेश को भी नीलिमा के लौट आने की बात मालूम थी, सो वह अब नीलिमा को देखने के लिए बैचैन था। उसके फोन का भी रमेश बेसब्री से इंतजार कर रहा था। नीलिमा ने घर लौटने के एक डेढ़ घंटे के अंदर ही रमेश को फोन किया। तबतक अंधेरा भी घिर चुका था। रमेश ने बड़ी व्याकुलता से नीलिमा को दोबारा फोन किया और सीधे लफ्जों में कहा।

...नीलिमा तुमने एक बार भी फोन नहीं किया... क्या तुम्हें वक्त नहीं मिला...। रमेश की बात को सुनकर नीलिमा बोली ...अरे, कई बार फोन करने की कोशिश की, लेकिन सभी लोग पास में ही थे... इसलिए फोन नहीं कर सकी... आप कैसे हैं...। नीमिला ने शादी की बात को लेकर कोई भी जिक्र नहीं किया। शायद वह रमेश को परेशान नहीं करना चाहती थी। रमेश ने भी नीलिमा से शादी की बात पूछने के बजाए सीधे कहा ...अब तुम्हें क्या बताएं... क्या कहें... कि कैसे हैं... तुम्हारी शादी तय हो गई है न... नीलिमा...। रमेश की बातों को सुनकर नीलिमा कुछ देर तक खामोश रही। रमेश ने फिर से पूछा ...जवाब दो नीलिमा ...हां या ना...। रमेश ने अब भी उम्मीद लगाई थी कि शायद जवाब ना में मिले लेकिन, ऐसा नहीं होने वाला था। नीलिमा ने जवाब दिया ...हां... रमेश मेरी शादी तय हो गई है...। 

रमेश जवाब सुनकर थोड़ा भावुक हो जाता है। रमेश के चेहरे के भाव बदल गए थे। इस वक्त रमेश न जाने किससे नाराज था, अपने आप से या नीलिमा से या किसी और से उसे स्वयं भी अहसास नहीं था। पर, उसकी बातों में नाराजगी झलक रही थी। ...नीलिमा अब तुम उसी से शादी कर लो... तुम्हारी शादी तय हो चुकी है... मुझे भूल जाओ... और क्या कहें...। रमेश की इन बातों को सुनकर नीलिमा ने कहा ...क्यों भूल जाऊं... रमेश... इसमें मेरी क्या गलती है... मेरी शादी तय हो गई तो इसमें मेरा क्या कसूर है... मुझे तो सिर्फ आपसे शादी करनी है न... फिर इन बातों से मुझे क्या लेना देना है... रमेश... खुद को संभालिए... मैं सिर्फ आपकी ही हूं... ऐसी बातें नहीं करिए... मैं सिर्फ आपकी हूं... और हमेशा रहूंगी...। 

नीलिमा की इन बातों को सुनकर रमेश ने कहा ...नीलिमा... अबतक तुम्हारी शादी नहीं लगी थी... अब लग चुकी है... आगे जो हालात बनेंगे उससे तुम नहीं जूझ सकोगी... बहुत कुछ सहना पड़ेगा... तुम नहीं कर पाओगी नीलिमा...। ...नहीं रमेश, मैं हर बात सह लूंगी... मैं सिर्फ आपसे प्यार करती हूं... और मैं अभी भी आपकी ही हूं... ...ऐसा मत सोचिए... ...क्या आपको मुझपर यकीन नहीं है...रमेश...। नीलिमा की बातों को सुनकर रमेश थोड़ा सामान्य हुआ। उसकी परेशानी और तनाव थोड़ा कम सा हो गया था। 






रमेश ने कहा ...ठीक है नीलिमा, ...लेकिन, अब तुम भी मुझसे शादी से इन्कार करोगी तो, मैं नहीं मानूंगा... हर हाल में तुम्हे शादी करनी होगी... चाहे तुम राजी हो या नहीं...। ...बस इतनी सी ही बात... हां... मैं मना करूं तब भी आप मुझसे शादी कर लीजिएगा... कुछ मत सुनिएगे... मुझे अपने साथ अपनी दुल्हन बनाकर ले जाइएगा... नीलिमा ने कहा। ...ठीक है, अब मैं तुम्हे नहीं छोड़ सकता... ना ही तुम्हारे बिना रह सकता हूं... नीलिमा... रमेश ने कहा। इतनी बातों के बाद रमेश कुछ संभल चुका था। ...नीलिमा... एक बात ध्यान रखना कि वहां पर क्या हुआ... भूलकर भी मुझे कभी बताना नहीं... मैं नहीं सुन सकता...। ...मैं बता भी नहीं सकती रमेश... जानती हूं आपको तकलीफ होगी... नीलिमा ने कहा। इसी तरह कुछ और बातें भी दोनों ने की।

रमेश नीलिमा की शादी की बात को लेकर अब भी परेशान था। नीलिमा ने रमेश से रात में भी फोन पर ढेर सारी बातें की। नीलिमा ने रमेश को करीब-करीब संभाल ही लिया था। लेकिन रमेश के जेहन में शादी की बात जैसे बैठ गई थी। शायद वह नीलिमा के जीवन में किसी दूसरे शख्स को सहन नहीं कर पा रहा था। रमेश भी अब जल्द से जल्द कोई सर्विस ढूंढ नीलिमा से शादी करने पर ध्यान देने लगा। रमेश का किताबों से मोह भंग हो चुका था। अब वह सर्विस ढूंढने लग गया था। रमेश को ज्यादा भागादौड़ी नहीं करनी पड़ी। कुछ दिनों में ही रमेश को इंटरव्यू का मौका मिल गया। रमेश ने नीलिमा को यह बात बताई थी, जिसपर नीलिमा भी बहुत खुश हुई थी और कहा था कि, मुझे आप पर पूरा भरोसा है... आप जरूर कामयाब होंगे। रमेश सितंबर के दूसरे सप्ताह में इंटरव्यू देने निकल पड़ा।

रमेश कहीं भी जाता था तो नीलिमा एक बार जरूर उसे देखती थी। फिर कहीं जाने देती थी। इस बार भी नीलिमा ने रमेश को देखने के बाद ही उसे विदाई दी। रमेश पर हल्की उदासी अभी भी छाई हुई थी। फिर वह स्टेशन पहुंचकर ट्रेन से अंजाने से शहर की तरफ रवाना हो गया। रमेश अगली सुबह नए शहर में था। जिसे देखकर रमेश थोड़ा सा विचलित भी था। वह शहर दूर तो था ही और शायद रमेश को उसमें अपनापन भी नजर नहीं आ रहा था। फिर भी रमेश को नौकरी की जरूरत थी, सो उसने शहर में अपना पहला कदम रख दिया। कुछ देर बाद नीलिमा ने हमेशा की तरह रमेश को फोन कर उसका हालचाल पूछा। रमेश भी नीलिमा का फोन आने से खुश था। खैर, रमेश ने इंटरव्यू दिया। रमेश पहले भी कई बार इंटरव्यू का सामना कर चुका था। इसलिए उसे इसका अनुभव था। लेकिन इस बार रमेश को सफलता की जरूरत ज्यादा थी। रमेश इसमें कामयाब भी हुआ और उसे जल्द ही सर्विस ज्वाइन करने को कहा गया।

सर्विंस की समस्या खत्म होते ही रमेश को अब नीलिमा के फोन का इंतजार था कि कैसे नीलिमा को इस बात की खुशखबरी दे दूं। नीलिमा ने शाम को फोन किया तो रमेश ने नीलिमा को यह खुशखबरी भी तुरंत ही दे दी। नीलिमा इस बात को जानकर काफी खुश थी। नीलिमा ने रमेश से लौटने का वक्त पूछा। रमेश ने सुबह तक लौटने की बात बताई। रमेश फिर खुशी-खुशी ट्रेन से घर के लिए रवाना हो गया। रमेश अब आत्मविश्वास से भरा था। सुबह वह ट्रेन से उतरकर सीधे घर की ओर चल पड़ता है, जहां नीलिमा पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। एक बार फिर से रमेश और नीलिमा के चेहरों पर मुस्कुराहट नजर आई। मौका मिलते ही रमेश और नीलिमा ने फोन पर ही बातें की। रमेश ने भी बड़ी उत्सुक्ता से सारी बातें नीलिमा को बताईं।

नीमिला भी खुश थी और रमेश भी खुश था। दोनों ने शादी का निर्णय भी ले ही लिया था। नीलिमा ने भी सबकुछ रमेश के ऊपर ही छोड़ दिया था। इसलिए रमेश भी शादी को लेकर आगे की बातें सोचने लगा था। रमेश को आए सात दिन हो गए थे। अब उसे एक दो दिन में नए शहर के लिए निकला था। सो, रमेश ने नीलिमा से मिलने की इच्छा जताई। अगले दिन दोनों कॉलेज टाइम पर मिलते हैं। इस दौरान दोनों ने शादी की बातें तो कम ही की, लेकिन एक दूसरे को लेकर खूब बातें की। दोनों काफी खुश थे। मुलाकात के बाद नीलिमा और रमेश अपने-अपने घर लौट आए। रमेश ने नीलिमा को बता दिया थी कि वह कल चला जाएगा। रमेश का जाना नीलिमा को अच्छा तो नहीं लग रहा था, पर वह भी इन हालात में रमेश को रोक नहीं रही थी। रमेश नीलिमा को लेकर निश्चिंत था।

अगले दिन सुबह रमेश जल्दी उठ गया। वह नीलिमा को कई बार देखना चाहता था। नीलिमा भी रमेश की तरह ही उसे कई बार देखना चाहती थी। सो, दोनों ने कई बार एक-दूसरे का दीदार किया। सुबह से दोपहर हा गया। अब रमेश को कॉलोनी से निकलना था। ट्रेन आने में करीब तीन घंटे बाकी थे। रमेश भी एक रात पहले ही सारी तैयारी कर चुका था। इसलिए अब वह तैयार होकर बाहर ही खड़ा था। तभी नीलिमा का फोन उसके पास आता है।

...हैलो... रमेश... नीलिमा ने कहा। ...जी बोलिए... रमेश ने कहा। ...आप जा रहे हैं... नीलिमा ने बड़े ही उदास स्वर में बोला...। ...हां... जा रहा हूं... और सिर्फ आपके लिए ही तो जा रहे हैं... ताकि आप हमेशा हमारे साथ रह सकें... रमेश ने नीलिमा की उदासी को समझकर बोला था। रमेश की बातों को सुनकर नीलिमा ने कहा ...रमेश एक बात पूछूं... बताएंगे...। रमेश ने हां में जवाब दिया। ...मान लीजिए मेरी शादी किसी और से कुछ महीनों के बाद होने वाली हो... और ये बात आपको पता हो... तो आप मेरे पास ...मेरी नजरों के सामने नहीं रहेंगे... ...क्या इन आखरी वक्त में आप मुझे अकेला छोड़ देंगे... मैं ये बात बस ऐसे ही पूछ रहीं हूं... नीलिमा ने कहा। 

नीलिमा की बातों को सुनकर रमेश ने कहा ...हां मैं इन आखरी वक्त में जरूर तुम्हारे पास ही रहूंगा, तुम्हारी नजरों के सामने...। ...फिर मुझे छोड़कर मत जाइए... रमेश... नीलिमा ने रोते हुए कहा था। रमेश ने कहा ...क्या... ये क्या कह रही हो... तुम होश में तो हो... तुम्हारे लिए ही तो सबकुछ कर रहा हूं... अब तुम मुझसे ये बात कह रही हो... रमेश ये बात कहते हुए नीलिमा पर थोड़ा नाराज सा हो गया था। रमेश की नाराजगी देख नीलिमा ने कहा... नहीं... मैं... डर गई थी... कोई बात नहीं... मैं आपसे शादी करूंगी... आप जाइए और अपना ख्याल रखिएगा...। लेकिन रमेश ने इस बार नीलिमा को फोन रखने नहीं दिया और काफी देर तक उसे समझाता रहा। जब नीलिमा कुछ सामान्य हुई तो रमेश ने उससे खुश रहने और अब स्टेशन जाने की बात कह फोन रख दिया।






नीलिमा और रमेश ने एक दूसरे को देखा। फिर रमेश ट्रेन पकड़ने निकल गया। रमेश नीलिमा के ही बारे में सोचता रहा। नीलिमा की आवाज में रमेश ने एक कमी महसूस कर ली थी, जिससे वह शंशय में था। नीलिमा ने रमेश को पहली दफा वो बात बोली थी, जिसका सीधा सा अर्थ रमेश ने समझ ही लिया था। रमेश में एक बड़ी कमी ये थी कि वह कभी भी वो काम नहीं करता था, जिससे नीलिमा उदास हो या वह राजी न हो। रमेश ने नए शहर में सर्विस ज्वाइन कर ली। रमेश हर दिन नीलिमा से बात करता था। पर रमेश को अब नीलिमा की बातों में पहले की तरह निश्विचतता और खुशी महसूस नहीं होती थी। रमेश नीलिमा में आए छोटे से बदलाव को भी तुरंत महसूस कर लेता था। रमेश हर रोज ही शादी को लेकर बात करता था। पर नीलिमा का बेरुख और बदलता स्वभाव देखकर रमेश अब शादी को लेकर अनिश्चित सा हो गया था। जो उसे न खुश रहने देती, न ही उसे वापस लौटने देती। इसी तरह दिन महीनों में बदल गए। और सितंबर भी बीत गया।

तबतक नीलिमा के घर में भी शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थी। नीलिमा को भी यकीनन ये तैयारियां अब भाने लगी थी। रमेश ने तो बुहत पहले ही कह दिया था कि ...आगे आने वाले दिनों में जो हालात बनेंगे, ...तुम उससे लड़ नहीं सकोगी। तब नीलिमा ने भी रमेश को ...हमेशा आपकी ही रहूंगी... का जवाब दिया था। शायद नीलिमा इस बात को बहुत जल्दी ही भूल गई थी। अब वह अपनी शादी की तैयारियां में ज्यादा मशगूल सी रहती। रमेश से बातें करते वक्त तो वह इसका आभास नहीं होने देती। पर, हकीकत तो यही था कि नीलिमा का रमेश से लगाव हर पल कम होता जा रहा था। रमेश इन सबके बारे में जानने या सुनने की कोशिश भी नहीं करता था। क्योंकि ये बातें उसे और तकलीफ ही पहुंचाया करती थीं।

बहरहाल, अक्टूबर में रमेश फिर शहर लौटता है। घर पहुंच कर भी रमेश नीलिमा को मनाने या समझाने में ही लगा रहा। लेकिन हर बार निराशा ही रमेश को मिलती थी। शायद नीलिमा रमेश की उस एक खास कमी को जानती थी। इसलिए वह कभी भी शादी को लेकर खुशी से रमेश को जवाब नहीं देती, ना ही इस बारे में खुशी से बात ही करती थी। बाकी बातें वह खुशी-खुशी ही किया करती थी। रमेश इसका अर्थ भी जानता ही था। रमेश नीलिमा से वह, हां सुनना चाहता था, जिसमें खुशी भी हो और विश्वास भी। पर ऐसा नहीं हुआ। रमेश की छुट्टियां खत्म होने वाली थी। लेकिन अब तक उनके बीच कोई स्पष्ट फैसला नहीं हो सका था। अब भी रमेश हर पल नीलिमा को मनाता रहा। मगर, नीलिमा की बेरुखी बढ़ती ही गई। अब नीलिमा कुछ बातें भी स्पष्ट तौर पर बोलने लगी थी। जो इन्कार को ही दर्शाती थीं। रमेश फिर भी उसे मनाने की कोशिश करता रहा।

शायद रमेश ने नीलिमा को मनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की थी। रमेश भी हारकर कर अब मायूस हो चला था। रमेश अपने कमरे में सोने तो गया था, पर वह कमरा अब उसे काटने को दौड़ता हुआ महसूस हो रहा था। इसलिए वह घर के अन्य लोगों के साथ ही सोने चला आया। रात के लगभग 12 बज रहे होंगे कि नीलिमा का फोन आया। नीलिमा शादी को लेकर बेरुखी के बाद भी रमेश से बात किया करती थी। शायद उसकी इच्छा यही थी कि रमेश इन हालात को कबूल करे और जल्द संभल जाए। बहरहाल, रमेश ने नीलिमा को कॉल किया।

...रमेश, कैसे हो... नीलिमा ने पूछा। ...मेरी फिक्र क्यों करती हैं... जब सबसे बड़ी सजा दे ही दी है, तो ये फिक्र क्यों... रमेश ने कहा। ...मैंने कोई सजा नहीं दी है रमेश... हालात कुछ ऐसे हैं, कि मैं मजबूर हूं... नीलिमा ने कहा। ...बात चाहे जो भी हो... हार तो मैं ही रहा हूं... नीलिमा... रमेश बोला। रमेश ने नीलिमा को आखरी बार भी मनाने की कोशिश की, लेकिन नीलिमा के जवाब ने उसे रोक दिया। ...आपसे शादी करके मैं सबकुछ खो दूंगी... आपके पास तो सब कुछ रहेगा... मैं भी... ...लेकिन मेरे पास क्या बचेगा... मैं सब कुछ खो दूंगी... आपको तो कुछ भी नहीं खोना पड़ेगा... नीलिमा ने बेरुखी से कहा। 

नीलिमा के इस जवाब को सुनकर रमेश टूट सा गया और नीलिमा पर बेहद नाराज हो गया। लेकिन रात ज्यादा हो गई थी और वह अपने रूम में नहीं था, इसलिए अपनी नाराजगी का इजहार नहीं कर सका। ...रमेश... आप मुझे अपनी जिंदगी से निकाल दीजिए... मुझे छोड़ दीजिए... मैं आपके लिए सब कुछ नहीं छोड़ सकती... हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा... नीलिमा ने साफ लफ्जों में अपनी बात बोल दी। रमेश दुःख से भर उठा था, उसने नीलिमा से अपनी आखरी बात कही ...मैं अब तुम्हारे जीवन में कभी भी वापस नहीं आऊंगा... हो सकता है, एक दिन मैं तुम्हे माफ कर दूं... पर ये बात हमेशा याद रखना... तुमसे आज मैं इतना नाराज हूं कि... सारी उम्र बीत जाएगी... लेकिन तुम मुझे मना न सकोगी... ...मेरी कातिल...।

रमेश अगली सुबह वहां से चला गया। इस बार न तो नीलिमा उसे देखने आई, ना ही रमेश ने उसके घर की तरफ देखा। डबडबाती आंखों के साथ अब रमेश नीलिमा से हमेशा के लिए दूर जा रहा था। दोनों के बीच न जाने कैसा प्यार अब भी बचा हुआ था। जो उन्हें अभी भी एक दूसरे की तरफ खींच रही थी। और नीलिमा ने चुपके से रमेश को जाते हुए देखा था। लेकिन, इस आखरी वक्त में रमेश उसके पास नहीं था। कैसे उसने रमेश के बिना हालात से लड़ा होगा। और रमेश भी अब पहली बार बगैर नीलिमा के प्यार के सभी से दूर एक अनजाने से शहर में अकेला था। 

रमेश ने कैसे खुद से संघर्ष किया होगा। कल्पना ही कर सकते हैं। साथ रहने की कसमें खाने वाले नीलिमा और रमेश एक दूसरे के बिना अधूरे हो चुके थे। बहरहाल, रमेश बीच-बीच में घर आता जाता रहा। पर अब नीलिमा और रमेश के बीच कोई बातचीत नहीं होती। कभी एक दूसरे को देखे बिना दोनों नहीं रह पाते थे। अब दिखने पर भी दोनों अपने अपने रास्ते बदल लिया करते थे। इस बीच भी कभी-कभी नीलिमा रमेश को फोन किया करती थी, लेकिन उसे वो पहले वाला रमेश कभी नहीं मिला। रमेश तो नीलिमा से ही हार गया था। इसी तरह नवंबर और दिसम्बर भी बीत गया।

@ सेराज खान...
(मार्च 26, 2017) (भाग तीन समाप्त)

नोट- ये कहानी, जिसका शीर्षक 'एक कहानी तेरी और मेरी (शहनाई)' है, काॅपीराइट एक्ट के तहत पूर्णतः सुरक्षित है। इस कहानी के किसी भी भाग का बिना इजाजत किसी भी अखबार, पत्रिका, वेबसाइट या शोशल मीडिया पर प्रकाशन मना है। 

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