Story

'एक कहानी तेरी और मेरी'

आज एक कहानी लिखने की कोशिश करता हूं। कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। कहानी के पात्रों के नाम भी काल्पनिक ही हैं। किसी व्यक्ति विशेष से इसका कोई जुड़ाव नहीं है। ऐसा होता है तो, ये महज एक संयोग मात्र ही समझें। कहानी का नाम शहनाई रखा है। क्यों, इसके लिए कहानी पढ़ें।


'शहनाई'
भाग-01

'न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा ज़माना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा ज़माना याद आता है'

'मैं अक्सर देखकर सानो को अपने रोने लगता हूं
मुझे जब प्यार से सर तेरा रखना याद आता है.
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा ज़माना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है'

'कदम गैरों के उठते देखता हूं जब मोहब्बत में
वो नंगे पांव तेरा हस के आना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा ज़माना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है'

'कोई जब मुस्कुराता है तो दिल पर चोट लगती है
वो तेरा प्यार में जब मुस्कुराना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा ज़माना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है'

'न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा ज़माना याद आता है'


कई छोटे नगरों और कस्बों में अभी भी एक खास दिन बाजार लगने की परंपरा वजूद में है। उस दिन भी बाजार में खूब भीड़ थी। इस भीड़ में एक बरात भी निकल रही थी। शायद मार्च का महीना चल रहा था। रमेश भीड़ में खुद को अन्य लोगों से ज्यादा असहज महसूस कर रहा था। बरात भी उसके सामने से गुजर रही थी। रमेश की घबराहट बढ़ रही रही। वह पसीने से तरबतर हुआ जा रहा था। घबराई नजरों से रमेश आस पास कोई जगह ढूंढने लगा। पास के ही एक दूकान पर कुछ जगह नजर आई। रमेश भीड़ से गुजरता हुआ उस तरफ चल पड़ा। तभी उसके कदम लड़खड़ा जाते हैं। रमेश होश खो बैठा था। भीड़ उसके इर्द गिर्द जमा हो गई। तभी भीड़ से गुजरते हुए तेज कदमों से नीलिमा भी उधर आई। 

उसने रमेश को पहचान लिया था। तबतक रमेश को लोगों ने छांव में कर दिया था। नीलिमा ने पास जाकर रमेश को पुकारा। लोगों ने भी रमेश के चेहरे पर पानी छिड़का। कुछ देर बाद रमेश ठीक था। बरात भी गुजर चुकी थी। रमेश खुद के पास भीड़ देख थोड़ा अजीब महसूस कर रहा था। अब रमेश को ठीक देख लोग भी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए। लेकिन नीलिमा वहीं थी। होश सम्भालते ही, रमेश को अहसास हुआ कि ये तो नीलिमा है। आज करीब 7 वर्षों के बाद रमेश ने नीलिमा को देखा था। रमेश अब 30 का हो चुका था। नीलिमा पर साड़ी खूब जंच रही थी। कुछ पल बिना शब्दों के आंखों से ही दोनों ने बातें करने की कोशिश की। कुछ देर की खामोशी को रमेश ने अपने सवाल से तोड़ा।

...नीलिमा तुम! यहां कैसे, कब आई... रमेश ने चारों और देखते हुए नीलिमा से पूछा। नीलिमा ने इसका जवाब नहीं दिया। और रमेश को देखते हुए पूछा ...रमेश तुम ठीक तो हो न, अभी कैसा लग रहा है...। रमेश ने जवाब हां में दिया ...हां, मैं ठीक हूं, तुम्हें बहुत सालों बाद देख रहा हूं, नीलिमा तुम अचानक यहां कब आई...? ...बस ऐसे ही मायके आई थी, बिट्टू की स्कूल की छुट्टियां चल रही थी, कब से नाना नानी के घर जाने की जिद किए बैठा था, सो यहां आ गई...। हालचाल और औपचारिकताओं वाली बातों के बाद अब रमेश और नीलिमा थोड़ा सहज होकर बात करने लगे थे। रमेश के चेहरे पर वर्षों बाद अलग खुशी झलक रही थी। 

नीलिमा भी रमेश को ठीक देख सुकून महसूस कर रही थी। कई वर्षों बाद दोनों एक दूसरे से बात कर रहे थे। ...लेकिन, रमेश, अभी तुम्हे अचानक क्या हुआ था... नीलिमा ने चलते हुए पूछा। रमेश ने उठते हुए जवाब दिया, ...तुम्हें नहीं पता...? ...नहीं, मुझे बिलकुल नहीं पता, रमेश बताओ, प्लीज़... नीलिमा ने रमेश के चेहरे को देखते हुए बोला था। ...आज भी तुम हर बात जानने की जिद करती हो नीलिमा ... रमेश ने कहा। नीलिमा कुछ देर खामोश रही। रमेश आज भी नीलिमा की खामोशी नहीं देख पा रहा था। ...अच्छा बताता हूं, सब ठीक है, तुम जानकर बहुत हंसोगी.., रमेश ने थोड़ा हंसते हुए बोला। नीलिमा ने रमेश को नजरें उठाकर एक पल के लिए देखा। ...रमेश बताओ भी, आज भी तुम कुछ नहीं बताते, सौ बार पूछो तब कुछ बोलते हो, अब तो बदल जाओ...।

नीलिमा के इस स्वर में रमेश ने वही नाराजगी और मिठास महसूस की, जो एक समय में महसूस किया करता था। ...अब बताओ भी रमेश... नीलिमा ने उदास होकर पूछा। रमेश ने फिर कहा, ...नीलिमा तुम सब जानती हो, फिर बार बार क्यों पूछती हो...। दोनों अब साथ ही पैदल चल रहे थे। रस्ते में शोर फिर बढ़ने लगा था। भीड़ में बरात अभी भी आगे बढ़ रही थी। रमेश और नीलिमा भी उसके करीब पहुंच गए थे। लेकिन रमेश अब फिर से परेशान था। उसकी घबराहट बढ़ने लगी थी। शोर और भीड़ में नीलिमा रमेश की इस दशा को पहचान सी गई थी। दोनों के कदम एकदम से रुक चुके थे। नीलिमा चुप थी। भीगी आंखों से नीलिमा ने रमेश से कहा, ...रमेश तुम अभी भी इन चीजों से डरते हो...?

रमेश ने घबराहट से उबरते हुए,  जवाब दिया, ...हां, मुझे आज भी शहनाइयों की धुन डराती हैं, इनकी गूंज नहीं सुन पाता हूं, इस संगीत से घबराता हूं, आज भी इनसे बचता हूं। हां, मुझे आज भी इन चीजों से डर लगता है...। ...ओह! रमेश। तुम ऐसे क्यों हो। अब तक मैं तुम्हारी यादों में हूं, मुझे भूल क्यों नहीं जाते हो, आखिर ऐसा क्यों करते हो... रमेश... क्यों खुद को सजा दे रहे हो..?  नीलिमा केे इस करुण स्वर को सुन रमेश की आंखे भी शायद डबडबाने लगीं थी। ...रमेश तुम आज भी नहीं बदले...। नीलिमा भावुक हो जाती है, और आगे कुछ बोल नहीं पाती है। ...हां, और शायद कभी बदल भी नहीं पाउंगा नीलिमा... रमेश के भी स्वर धीमे हो चुके थे।

शायद वो अपने बीते कल में नहीं जाना चाहता था। जिसकी यादें, अक्सर उसे हरपल उदास ही किया करतीं थी। काफी देर से वे दोनों साथ चल रहे थे। इस बीच उन्होंने कई बातों को छिपाने और कई बातों को बताने का सिलसिला भी पूरा कर लिया था। दोनों बाजार से दूर रिहायशी घरों के करीब पहुंच चुके थे। वक्त कैसे बीता शायद उन्हें पता ही नहीं चला। ...मेरा घर आ गया रमेश... नीलिमा की इस आवाज को सुनकर रमेश ठहर गया। मुस्कुराते हुए नीलिमा ने उसे विदा किया। अपने घर की ओर जाते नीलिमा के कदम धीमे नजर आ रहे थे। दरवाजे पर पहुंचकर व्याकुल नीलिमा के कदम ठहर गए थे। उसने पीछे मुड़कर सड़क की ओर बेसब्र नजरें दौड़ाई। लेकिन, वहां कोई नहीं था। रमेश कहीं नजर नहीं आया। वह वहां नहीं था। रमेश जा चुका था। शायद वो फिर से मोहब्बत की दुनिया में नहीं लौटना चाहता था। नीलिमा रातभर रमेश के बारे में सोचती रही कि ...रमेश आज भी शहनाइयों की धुन से डरता है...। बेशक, नीलिमा रमेश के इस राज को जानती थी। कभी दोनों ने साथ रहने की कसमें जो खाई थीं। जागते हुए ही नीलिमा की पूरी रात गुजर जाती है।

@ सेराज खान...
(मार्च 02, 2017)

'शहनाई'
भाग-02
'और वो एक बरस' 

इतने दिनों के बाद रमेश और नीलिमा की मुलाक़ात हुई थी। रमेश थोड़ा-थोड़ा बदला-बदला सा लग रहा था। उसके मित्र भी इस बदलाव को करीब-करीब भांप रहे थे। पर रमेश ने हमेशा उनकी बातों को अनदेखी कर खुद को हंसी या तफरीह से महफूज रखा। आज सुबह रमेश थोड़ा पहले उठ गया था। बाहर खूब शोर हल्ला हो रहा था। रमेश भी इस शोर को पहचानने के मकसद से खिड़की की तरफ बढ़ा। बाहर सड़क पर लोगों का मजमा लगा था। रमेश को अचानक याद आया कि आज रंगों का पर्व है। लोग बाहर होली खेल रहे थे। इसी दौरान रमेश के मित्र भी उसके घर पहुंच चुके थे। स्वागत सत्कार के बाद रमेश ने भी दोस्तों संग कुछ देर तक होली का आनन्द लिया। फिर दोस्तों को विदा करते हुए रमेश घर लौट आया। 

अब दोपहर हो चली थी। रमेश भी थोड़ा आराम करने के मूड में था। पर नींद और चैन कहीं गायब ही नजर आ रही थी। यकीनन रमेश नीलिमा के बारे में ही सोच रहा था। रमेश जिन बातों को जेहन से निकालना चाहता था। वही बातें उसे खूब याद आ रही थीं। इन्ही बातों में रमेश की शहनाई से डर वाली बातों का राज भी छिपा था। रमेश अपने उस एक वर्ष के बारे में सोच रहा था, जिस दौरान उसने नीलिमा से बिछड़ने सहित, कई गम भी सहे थे। रमेश इन बातों से अब पूरी तरह से उबर चुका था। पर, यादें इतनी आसानी से मिटती थोड़े ही न हैं। तो फिर चलतें हैं उस एक वर्ष में जो रमेश के जीवन में सात साल पहले बीत चुका है। जिसने रमेश को बहुत हद तक बदल डाला था। तो आइए चलें, रमेश के उस एक वर्ष में। जिसकी पहली कड़ी है, ...तेरे बिछडऩे से पहले

'तेरे बिछडऩे से पहले'

'बिखरी-बिखरी जुल्फे तेरी पसीना माथे पर है
सच तो ये है तुम गुस्से में और भी प्यारे लगते हो'
'राहे तकना तारे गिनना सादिक काम हमारा है
आज मगर क्या बात है तुम भी जागे-जागे लगते हो'

वर्ष-2009...

मार्च का महीना चल रहा था। सर्दी भी लगभग खत्म हो चुकी थी। दिन और रात बड़े सुहावने हो रहे थे। रमेश भी खुश था। हर रोज की तरह आज भी रमेश ने नीलिमा के कई बार दीदार किए। दोनों एक-दूसरे को देखे बिना रह नहीं पाते थे। फोन पर भी दिन में जब भी मौका मिलता घण्टों बातें किया करते थे। पर सबकुछ चोरी छिपे ही चला करता था। प्यार के दुश्मन भी तो मौके ढूंढा ही करते हैं। रमेश और नीलिमा के बीच सब कुछ ठीक चल रहा था। एक दिन रमेश की फोन पर रिंग बजता है। रमेश मोबाइल को देखकर चहक उठता है। नीलिमा का ही फोन था। रमेश फोन काटकर और सबसे नजरें चुराकर दोबारा नीलिमा का नम्बर डायल करता है। 

हैलो..! नीलिमा ने फोन उठाकर कहा। रमेश ने नीलिमा की आवाज पहचानकर जवाब दिया ...हां नीलिमा...। फिर नीलिमा ने कहा ...और क्या चल रहा है, दिनभर बस घुमाई ही हो रही है... पढ़ाई लिखाई भूल गए हो क्या...? 

रमेश से इस तरह से नीलिमा ही बात कर सकती थी। वरना रमेश को टोका-टाकी कम ही पसंद थी। और कोई टोकता भी नहीं था। रमेश भी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझता ही था। इसलिए घर वाले भी पढ़ने लिखने को लेकर ज्यादा कुछ नहीं बोला करते थे। पर प्रेम की दुनिया में तो ज्यादातर प्रेमिका की ही चलती है। और बेवजह डरने की एक्टिंग और बहानेबाजी तो प्यार में अक्सर चला ही करती हैं। जो थोड़ा सच में भी होता था और थोड़ा झूठ में भी। 

...नहीं-नहीं मैं तो बस तुम्हे देखने के लिए ही बाहर निकला था... रमेश ने फोन पर नीलिमा को जवाब दिया। ...झूठ तो मत ही बोलिए, ....कब से मैं भी देख ही रही हूं, ...एक घण्टे से बाहर खड़े होकर बातें की जा रही है, ...खूब पढ़ाई चल रही है... नीलिमा ने झूठमूठ की नाराजगी भरे लहजे में जवाब दिया। लेकिन रमेश ने भी हमेशा की तरह अपने एक ख़ास दोस्त को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की।  ...अरे यार वो सिद्धार्थ है न, उसकी वजह से बाहर आना पड़ा... रमेश ने इस जवाब से खुद को पाक साफ साबित करने का प्रयास किया। नीलिमा भी रमेश की इस जवाब को समझती ही थी। और वो भी रमेश के साथ तफरीह ही कर रही थी। ...अच्छा रमेश कल कॉलेज जाउंगी, होली की छुट्टियां खत्म हो गईं हैं, ...थोड़ी देर के लिए तुम जरा रास्ते में मिलना, ...ठीक है न, ...और थोड़ा ध्यान से आना, ...कोई देखे नहीं... नीलिमा ने रमेश से थोड़ी गम्भीरता से कहा। 

इसपर रमेश खुश होते हुए नीलिमा से कहता है, ...ओके! ...इससे अच्छा है कि हम कल मिल ही लेते हैं ना... रमेश ने बड़ी चापलूसी भरे लहजे में कहा था। ...नहीं मिलने की कोई जरूरत नहीं है, ...बस आप आ जाना, ...ठीक है... नीलिमा ने रमेश से कहा। रमेश ने भी जवाब दिया ...ठीक है जी.., ...आपकी जो आज्ञा... मैडम..। ...और हां... अब जाकर पढ़ाई करिए.., शाम को बाहर आइएगा... नीलिमा ने कहा। ...नहीं आऊंगा... रमेश ने कहा। ...क्या? जरा फिर से बोलिए तो... नीलिमा ने पूछा। ...नहीं-नहीं कुछ नहीं, बस मैं कह रहा था कि ...आई लव यू..। जवाब सुनकर नीलिमा ने भी हंसते हुए कहा ... बट आई हेट यू..। रमेश को आई हेट यू का मतलब अच्छे से पता था, जो उसे आई लव यू वाक्य से कहीं प्यारा था। ...ओके-ओके आई लव यू टू... अपना ख्याल रखना... बाय... नीलिमा ने कहा। फिर नीलिमा फोन रख देती है। 

अगले दिन नीलिमा कॉलेज जाती है। उसके साथ उसकी एक सहेली भी होती थी। रमेश भी दोपहर का बेसब्री से इन्तजार करता है। आखिरकार दोपहर के ढाई बजे रमेश भी घर रवाना हो जाता है। रमेश की नजरें रस्ते भर नीलिमा को ढूंढती हुईं आगे बढ़ रही थी। अचानक दूर नीलिमा और उसकी सहेली आती हुईं दिखाई पड़ी। थोड़ी शर्म, थोड़ी हिचकिचाहट बढ़ने लगी थी। जो दोनों ओर एक जैसी ही थी। जैसे-जैसे दोनों के बीच फासला घटता जा रहा था धड़कनें बढ़ती जा रही थी। फिर दोनों काफी करीब आ चुके थे। नीलिमा ने अपने पर्स से एक गिफ्टनुमा डब्बा रमेश के हाथों में थमा दिया, और आगे बढ़ गई। रमेश और नीलिमा के चेहरों पे मुस्कान छाई रही। रमेश भी गिफ्ट जैसी कोई चीज लेकर वहां से ओझल हो गया। गिफ्ट को लेकर जिज्ञासा भी खूब बढ़ गई थी। लेकिन रमेश ने इत्मीनान से घर पहुंचकर ही इसे देखने की सोची। फिर नीलिमा के जाने के कुछ देर बाद रमेश भी घर की ओर लौट गया। रमेश और नीलिमा एक ही कॉलोनी में रहते थे। उनके घर भी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ही थे। 

घर पहुंचकर रमेश ने बड़ी जिज्ञासा के साथ उस डब्बे को खोला। जिसमे कुछ ख़ास चीज तो नहीं थी, लेकिन प्यार खूब भरा था। रमेश भी मुस्कुरा उठा। मन ही मन रमेश सोचता है कि ...नीलिमा उससे बेइंतहां प्यार करती है..। डब्बे में खाने की चीजें थी, जो अक्सर होली जैसे पर्वों पर ज्यादातर घरों में बनते हैं। मेहमानों को भी परोसे जाते हैं। हां, डब्बे में घर में बनी गुजिया, मिठाई, नमकीन और अन्य पारंपरिक व्यंजन थे। जिसे नीलिमा ने रमेश के लिए अलग से बना लिए थे। रमेश को वैसे तो मीठा कुछ ख़ास पसंद नहीं था, लेकिन नीलिमा ने बड़े अरमानों और प्यार से बनाए थे। सो रमेश को इन चीजों का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था। रमेश भी इतनी चीजें अकेले नहीं खा पा रहा था। फिर क्या था सिद्धार्थ किस दिन काम आता। रमेश सिद्धार्थ के यहां पहुंच गया। दोनों पड़ोसी ही थे। रमेश और सिद्धार्थ हंसी मजाक करते हुए। व्यंजनो को चट कर गए। शाम होने को आ गई। रमेश भी नीलिमा की झलक देखने को बेकरार था। 

शाम के पांच बज रहे होंगे। तभी रमेश की इच्छा पूरी हो जाती है। अचानक नीलिमा अपने घर के दरवाजे से एक दो कदम आगे बढ़ती है। इसलिए की रमेश उसे देख सके। रमेश और नीलिमा की नजरें टकराती हैं। दोनों के चेहरे किसी गुलाब की तरह खिल जाते हैं। लबों पर मुस्कान अपने आप बिखर जाती है। फिर नीलिमा घर में चली जाती है। रमेश भी नीलिमा के दीदार के बाद ख़ुशी महसूस कर रहा था। नीलिमा थी भी बेहद खूबसूरत। बला की खूबसूरती के साथ-साथ मासूमियत भी उसमे कूट-कूट कर भरी थी। जिसपर रमेश हर वक्त फ़िदा रहता था। शाम भी धीरे-धीरे ढल गया। रमेश भी अब डिनर के बाद पढ़ाई में मशगूल हो गया। 

रात के करीब 11 बज रहे होंगे। रमेश का ध्यान अब किताबों में कम और मोबाइल पर ज्यादा था। कुछ इतने बजे ही अक्सर नीलिमा का फोन आया करता था। रमेश बीच-बीच में मोबाइल उठाकर भी चेक कर रहा था। रात 12 बजने को हो चला था। रमेश भी अब ये सोच रहा था कि ...शायद कुछ काम होगा या नींद आ गई होगी, ...इसलिए नीलिमा ने फोन नहीं किया होगा...। तभी रमेश का फोन बज उठता है। नीलिमा का ही फोन था। रमेश की मायूसी ख़ुशी में बदल जाती है। चेहरा खिल जाता है। लबों पर मन्द-मन्द मुस्कुराहट सी छा जाती है। रमेश भी किताबों को बन्द कर नीलिमा से बातें करने लगता है। 

...रमेश, कैसा लगा उपहार... नीलिमा ने पूछा। ...उपहार! तो बड़ा प्यारा था, ठीक तुम्हारी ही तरह... रमेश ने जवाब दिया। ...बस भी करो, मुझे घमंड हो जाएगा... नीलिमा ने कहा। ....वेसे कैसा लगा, गिफ्ट, ...कुछ खाया भी कि नहीं, या दोस्तों को ही बांट दिए..., होली थी, ...और जबतक आपको कुछ खिला नहीं लेती, ...मेरी होली तो अधूरी ही रहती है न... नीलिमा ने कहा। ...खाया, और बहुत अच्छा लगा नीलिमा... आई लव यू... रमेश प्यार दर्शाते हुए बोला। ...सब तुमने बनाए थे नीलिमा... रमेश ने पूछा। ...जी जनाब, ...नहीं तो और कौन बनाएगा... और हां, आई लव यू टू... नीलिमा ने खुश होते हुए जवाब दिया। ...इस प्यारे से गिफ्ट के लिए थैंक्स नीलिमा...। ...रहने भी दीजिए... इतना भी प्यारा नहीं था... नीलिमा बोली। ...खैर और बताइए क्या चल रहा था... अबतक... नीलिमा ने रमेश से बात आगे बढ़ाते हुए पूछा। रमेश ने कहा, ...बस कुछ नहीं, ...आपने मेरा टाइम टेबल जो तय कर रखा है... उस हिसाब से तो मैं पढ़ ही रहा था...। 

रमेश नीलिमा की इज्जत करता था और लगभग उसकी हर बात पर अमल भी करता था। नीलिमा भी रमेश की इन बातों और खूबियों से बहुत खुश रहती थी। ...अच्छा नीलिमा, एक बात कहूं...। ... बोलिए जी... नीलिमा ने कहा। ...मुझसे शादी कब करोगी..? रमेश ने ये सवाल किया। ...जब आप चाहें... तब कर लूंगी... नीलिमा ने जवाब दिया। ...पक्का... रमेश बोला। ...हां-हां बिलकुल पक्का... रमेश नीलिमा के इस जवाब से आत्म विश्वास और ख़ुशी से भर उठा। अक्सर रमेश ये बात नीलिमा से पूछता ही रहता था। दोनों ने देर रात तक अपनी बातें जारी रखी। ...अच्छा रमेश, अब फोन रखती हूं, सुबह मुझे जल्दी उठना भी है...। ...ठीक है जी, ...बाय, लव यू... रमेश ने कहा। ...लव यू टू... रमेश... गुड नाईट... बोलकर नीलिमा फोन रख देती है। भोर पहर होने वाला था, सो रमेश भी अब नीलिमा के बारे में सोचते हुए नींद में चला गया।






रमेश और नीलिमा का प्यार यूं ही परवान चढ़ता गया। रोज नीलिमा और रमेश फोन पर मन की बातें किया करते। फुर्सत में सबसे लुक छिपकर किसी पार्क, रेस्टोरेंट या मॉल में मिल भी लिया करते थे। ख़ूब साथ जीने की कसमें खाते। आलम ये था कि दोनों इक दूजे के बिना रह भी नहीं पाते थे। दोनों के बीच हद से ज्यादा मोहब्बत थी। साथ ही दोनों ने कभी भी मर्यादा की दहलीज को नहीं लांघा था। इसी तरह रमेश और नीलिमा के प्यार भरे दिन बीत रहे थे। मार्च भी गुजर चुका था। धीरे-धीरे अप्रैल भी बीतने को आया। हर साल की तरह गर्मी की छुट्टियों के दौरान नीलिमा इस बार भी घर वालों के साथ अपने गांव जाने वाली थी। रमेश भी पहले खूब अपने गांव जाया करता था। लेकिन, जबसे नीलिमा उसके जीवन में आई थी, तबसे रमेश कम ही गांव जाता था। बहरहाल, नीलिमा गांव जाने से एक दिन पहले रमेश को फोन करती है। 

...रमेश, कल शाम को हमारी ट्रेन है..., ट्रेन आने से कुछ देर पहले घर से निकलेंगे... प्लीज़... आप बाहर रहना..., आपको को जाते-जाते देख लूंगी, ...नहीं तो फिर जुलाई में ही लौटेंगे...। नीलिमा की बात सुनकर रमेश ने कहा ...हां, जरूर आ जाऊंगा, .… कितने बजे निकलना है... अभी बता दो..., मैं भी तो तुम्हे देख सकूंगा...। ...वैसे गांव जाना जरूरी था क्या..? रमेश ने हल्का उदास होकर पूछा। ...क्या कर सकते हैं, सभी लोग जा रहे हैं, मैं किस बहाने से यहां रुक सकती हूं... नीलिमा ने रमेश से उदास होते हुए कहा। ...ठीक है... ज्यादा उदास मत होइए, ...गांव से रोज फोन करूंगी... खूब बातें करूंगी... नीलिमा ने रमेश को समझाते हुए कहा। ...ठीक है, मैं इन्तजार करूंगा, और...गांव पहुंचने के बाद मुझे एक बार फोन कर लीजिएगा... रमेश ने ये बातें कहते हुए नीलिमा से घर से निकलने का वक्त दोबारा पूछा। 

नीलिमा ने रमेश को अंदाजन एक वक्त बता दिया। अगले दिन रमेश तय वक्त पर नीलिमा के घर से निकलने का इन्तजार करने लगा। रमेश सिद्धार्थ के पास किसी बहाने से खड़ा हो गया था। सिद्धार्थ का घर सड़क के किनारे ही था। इसी सड़क से नीलिमा गुजरने वाली थी। कुछ देर इन्तजार के बाद नीलिमा घर वालों के साथ रेलवे स्टेशन के लिए निकलती है। स्टेशन भी वहां से बस कुछ ही दूरी पर था। इसलिए कॉलोनी के लोग अक्सर पैदल ही स्टेशन जाया आया करते थे। सड़क से गुजरती नीलिमा और रमेश के बीच चंद कदम की ही दूरी रही होगी। रमेश की निगाहें नीलिमा के चेहरे पर ही टिकी थीं। नीलिमा ने सबसे बचाकर अपनी नजरें उठाईं। रमेश और नीलिमा की बेसब्र नजरें कुछ पल के लिए ही मिलीं। फिर नीलिमा ने नजरें झुका ली। रमेश ने आंखों ही आंखों में नीलिमा को गांव के लिए विदा किया। नीलिमा रमेश के पास से गुजर चुकी थी। रमेश भी नीलिमा को जाते हुए तबतक देखता रहा, जबतक नीलिमा उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती। 

रमेश भी अब अपने काम में व्यस्त हो गया। कुछ समय मित्रों संग तो ज्यादातर वक्त पढ़ने लिखने में ही व्यतीत करता। इस दौरान नीलिमा भी गांव से लगभग रोज ही रमेश से बातें किया करती थी। अब तो दोनों शादी को लेकर भी खूब बातें करते और भविष्य के अनगिनत ख्वाब बुना करते थे। एक दूसरे से दूर हुए अभी कुछ दिन ही गुजरे होंगे कि रमेश और नीलिमा को कभी-कभी खूब याद सताती थी। नीलिमा तो कई बार भावुक भी हो जाती। तब रमेश उसे फोन पर ही समझाया करता था। शायद नीलिमा कभी-कभी भविष्य की अनिश्चत्ताओं से भयभीत हो जाती। रमेश से बिछड़ने की बात जेहन में आते ही वो घबरा सी जाती थी। रमेश का भी हाल कुछ ऐसा ही था। रमेश भी उसे हमेशा दिलासा देता था, कि वह जल्द कोई न कोई सर्विस ढूंढ लेगा। नीलिमा भी हमेशा रमेश से कहती थी कि उसे इस बात का पूरा भरोसा है। लेकिन, वह स्वयं कभी हिम्मत न हार जाए। आखिर नीलिमा के घर वाले भी अब उसके लिए रिश्ता देख रहे थे। 

वक्त यूं ही बीतता चला गया। मई का महीना भी शुरु हो चुका था। नीलिमा और रमेश अब दोनों समझ गए थे कि, उनके पास अब ज्यादा वक्त नहीं है। रमेश भी अब पढ़ाई लिखाई कम करके किसी सर्विस की तलाश में जुट गया था। बिछड़ने की आहट भर से ही दोनों के बीच प्यार और बढ़ गया था। मई का महीना भी अब गुजरने ही वाला था। इसी बीच एक दिन नीलिमा रमेश को गांव से फ़ोन करती है।

...हेलो! रमेश जी कैसे हैं...। ...ठीक हैं, अपना बताइए... बड़ी खुश लग रही हैं... आज तो, ...क्या बात है... रमेश ने कहा। ...बात तो ख़ुशी वाली ही है... आज घर वाले रिश्ता देखने गए थे... मगर, ....किसी को लड़का पसंद ही नहीं आया...। रमेश नीलिमा की इस बात को सुनकर खुश होते हुए बोला ...तुम्हे लड़का पसंद था क्या...। ...जी नहीं... मुझे सिर्फ आप पसंद हो... नीलिमा ने रमेश से बड़े प्यार से कहा। रमेश भी नीलिमा के इन लफ्जों को सुनकर मन ही मन प्रफुल्लित हो चला था। ...थैंक गॉड... सब सही है, ... हमें कुछ मौका और मिल गया... नीलिमा ने रमेश से कहा। ...मौका नहीं भी मिलता तो मैं तुम्हें बिछड़ने नहीं देता... नीलिमा... तुम मेरी जीवन हो... रमेश ने कहा। 

...आप मुझे इतना कीमती न बनाया करिए.., रमेश जी... बाकी कुछ भी कह लीजिए... मैं नहीं रही तो..., फिर...। ...मैं ऐसा नहीं होने दूंगा... आपको बिछड़ने नहीं दूंगा..., हम हमेशा साथ रहेंगे... समझीं न... रमेश ने गम्भीरता से जवाब दिया। ...अब बताओ तुम मेरी जीवन हो... न... रमेश ने फिर से पूछा। ...ठीक है... पर मुझे अच्छा नहीं लगता... आपसे ज्यादा कीमती मैं नहीं हूं... बस इतना ही जानती हूं... नीलिमा ने बड़े ही करुण स्वर में ये बात रमेश से कही। काफी देर बात करने के बाद नीलिमा ने कहा ...अच्छा रमेश जी, ... अब मुझे जाने दीजिए... नहीं तो सब शक करेंगे कि इतनी देर किस्से गुफ़्तुगू की जा रही है... वो भी छत पर जाकर...। ... ओके, नीलिमा, ...अपना ख्याल रखना, ...फिर फोन करना... रमेश ने कहा। इसके बाद दोनों ने थोड़ी सी औपचारिकताओं से भरी बातें करने के बाद फोन रख दिए।

रमेश और नीलिमा दूर होकर भी हमेशा करीब ही रहते थे। कभी भी दोनों ने एक दूसरे को दूर होने का अहसास नहीं होने दिया। नीलिमा भी रोज रमेश के लिए कुछ वक्त निकाल ही लेती थी। पर रमेश बीते कुछ दिनों में जो भी हुआ था, उसे लेकर थोड़ा सतर्क और नर्वस रहने लगा था। वह जल्द से जल्द अब कोई नौकरी ढूंढने को ही तवज्जो देने लगा था। इसी बीच मई का महीना भी निकल चुका था। जून की झुलसा देने वाली गर्मी भी शुरू हो चुकी थी। सबके लिए ये थोड़ी परेशानी वाली बात थी, पर रमेश और नीलिमा के लिए ये किसी ख़ास मौके की तरह ही थे। जो उन्हें कुछ पल एक दूसरे से बात करने के अवसर प्रदान किया करते थे, जब जेठ के लंबे दिन काटने के लिए लोग अक्सर दोपहर होते-होते कुछ देर के लिए सो जाया करते थे। गांव देहात में अक्सर ऐसा होता भी है। रमेश और नीलिमा के बीच सबकुछ ठीक चल रहा था। रमेश को तो जून बीतने का इन्तजार था। लंबे दिन नीलिमा की यादों में ही गुजर रहे थे। फिर जुलाई भी आ ही गया। अब रमेश को नीलिमा के गांव से जल्द लौटने की बेसब्री थी। नीलिमा ने भी रमेश को आने की खुश खबर दे दी थी।

जुलाई के पहले सप्ताह का अंतिम दिन था। रमेश आज बहुत खुश था। नीलिमा आज गांव से लौटने वाली थी। रमेश ख़ुशी के मारे पिछली रात ठीक से सो भी नहीं पाया था। सुबह से ही उसकी नजरें नीलिमा के दीदार के लिए बेसब्र थीं। दोपहर होने वाला था। रमेश भी सिद्धार्थ के साथ किसी बहाने से घर से बाहर सड़क की तरफ ही निकल आया था। रमेश की नजरें बार-बार सड़क को तकती थीं। नीलिमा के आने का वक्त जैसे-जैसे करीब आता, रमेश की व्याकुलता बढ़ती ही जाती। फिर एकदम से रमेश ने सिद्धार्थ से बातें करनी बन्द कर दी। नीलिमा को देखकर रमेश अक्सर ही ऐसा किया करता था। सिद्धार्थ भी समझ गया था। नीलिमा सड़क पर दूर से अब काफी करीब आ चुकी थी। नीलिमा और रमेश की नजरों ने कई दिनों बाद एक-दूसरे को देखकर ठंडक महसूस की थी। दोनों के चेहरों पर खुशी साफ झलक रही थी। 

गांव से लौटकर नीलिमा अपने घर के काम में व्यस्त हो जाती है। धीरे-धीरे शाम भी ढल जाती है और रात हो जाती है। रात लगभग 8 बजे होंगे कि निलिमा रमेश को फोन करती है। रमेश भी जैसे फोन का इन्तजार ही कर रहा था। लेकिन रमेश ने फोन काट दिया। क्योंकि वह अपने घर पर ही था। फिर किसी बहाने से रमेश अपने घर से बाहर निकल आया। और बड़ी उत्सुकता से उसने नीलिमा को दुबारा फोन किया। 

...हैलो... नीलिमा की इस आवाज को पहचानकर रमेश ने कहा ... जी निलिमा जी... आज तो आप बड़ी खूबसूरत लग रहीं थीं...। ...बस शुरू हो गए... ये छोड़िए.. बताइए कैसे हैं... ठीक हैं न... निलिमा ने ये बात रमेश से किसी काम में व्यस्त होते हुए कहा। शायद वह डिनर बना रही थी। रमेश को भी इसका अंदाजा था। ...मेरी बातें तो तुम्हारी तारीफ़ से ही शुरू होती हैं, ...मेरी निलिमा... सिर्फ मेरी नीलिमा... तुम सिर्फ मेरी हो... आई लव यू... नीलिमा... रमेश ने कहा। ..अच्छी तरह से जानती हूं... और मैं सिर्फ आपकी हूं... ...अब खुश... मेरे रमेश बाबू... ...और आई लव यू टू... आप खुश हैं तो मैं भी खुश हूं... ...रमेश...। 

....अच्छा बात करने के लिए वक्त कैसे मिल गया... अभी तो सभी लोग घर पर ही होंगे... जग भी रहे होंगे... रमेश ने पूछा...। ...अरे अपनी सहेली के बहाने से आपसे बात कर रही हूं... और किचेन में हूं, यहां पर कोई भी नहीं है... समझे...। ...अच्छा जी... समझ गए..., ये बताइए गांव में हमारी याद भी आती थी कि नहीं... रमेश ने थोड़ा हंसते हुए नीलिमा से कहा। ...याद नहीं आती तो, जनाब से सुबह और शाम फोन पर बात कौन करती थी... आपको बहुत मिस करती थी... नीलिमा ने रमेश से कहा। ...जानता हूं, ...और सुबह और शाम के अलावा... दोपहर और रात ...तो भूल ही गईं... रमेश ने कहा। ...आपको याद है न, बस ठीक है... और अभी ज्यादा बात नहीं कर सकती, ...रात में टाइम मिलेगा तो फोन करूंगी... ठीक है..., और जरा सड़क की तरफ आइए... एक बार आपको देख लूं... नीलिमा बोली।  ...ठीक है, नीलिमा ... लव यू... बाय...। ...लव यू टू... रमेश... बाय। 

रमेश भी थोड़ी दूर से नीलिमा के घर से बाहर आने का इन्तजार करता है। नीलिमा की झलक मिलते ही उस तरफ बढ़ चलता है। दोनों जब भी करीब होते उनकी धड़कनें अपने आप ही तेज हो जाती। दोनों के लबों पर न चाहते हुए भी चाहत और हया से भरी एक मीठी मुस्कान छा जाती थी। बहरहाल, नीलिमा अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी। रमेश अपनी प्यारी सी नीलिमा को देखते हुए उसके सामने से कुछ फासले से ही गुजरा। जब भी रमेश नीलिमा को देखता मानो सारी दुनिया को ही भूल जाता। जैसे नीलिमा ही उसकी पूरी दुनिया हो। रमेश  को नीलिमा की हर बात बहुत पसंद थी। तभी तो अब रमेश नीलिमा को अपने जीवन साथी के रूप में देखने लगा था। 

रमेश ने अनगिनत सपने और ख्वाहिशें बुन लिए थे। जिसे वह नीलिमा को कभी कभी बताता भी था। नीलिमा भी रमेश की इन बातों को सुनकर यही कहती थी कि ...आपके सारे सपने पूरे हों मेरे रमेश...। रात को भी नीलिमा ने रमेश को फोन किया। दोनों ने ढेर सारी बातें की। इसी तरह रोज नीलिमा और रमेश की बातें होती। कॉलेज भी खुल चुके थे। रमेश और नीलिमा कभी-कभी कॉलेज टाइम पे किसी रेस्टोरेंट में मिल भी लेते थे। ज्यादातर दोनों एक ख़ास रेस्टोरेंट में ही मिलते थे। जहां उन्हें कोई देख न सके। अक्सर रमेश ही मिलने के लिए नीलिमा को मनाता था। पर जब वे मिलते तो दोनों की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता था। वे एक-दूसरे में इतने खो से जाते कि घण्टों का वक्त मिनटों की तरह बीत जाते। रमेश हमेशा कुछ देर ठहरने के लिए कहता, नीलिमा भी रमेश को मायूस नहीं करती थी। हमेशा कुछ देर और रुक जाती थी। इसी तरह जुलाई और फिर अगस्त भी बीत गया। 

रमेश और नीलिमा की प्यार की कहानी भी वक्त के साथ आगे बढ़ती रही। फिर सितम्बर का वो महीना भी शुरू हो गया था। जिसमे वक्त अब रमेश का इम्तहान लेने वाला था। वो भी ऐसा जिसका रमेश ने कभी कल्पना भी न की थी। जल्द ही सब कुछ बदलने वाला था। रमेश का विश्वास, आत्मविश्वास और वक्त सब कुछ तिनके की तरह बिखरने के कगार पर पहुंचने वाले थे। यही नहीं खुद रमेश की नीलिमा भी बदलने वाली थी। जिसका ख्याल रमेश ने कभी अपने जेहन में भी नहीं लाया था। सारे वादे, कसमें, सपने सब टूटने वाले थे। इसकी शुरुआत कुछ इस तरह से होती है। 

रात के लगभग सवा 11 बज रहे होंगे। रमेश अपने रूम में अन्य दिनों की तरह किताबों में ध्यानमग्न था। उस रात को भी रमेश नीलिमा के फोन का इन्तजार कर रहा था। आखिरकार नीलिमा ने हमेशा की तरह ही रमेश को फोन किया। आज उनके बीच जो बातें होने वाली थी अनजाने रमेश को बेचैन करने वाली थीं। रमेश हमेशा से ही नीलिमा का फोन काटकर दुबारा उसे फोन किया करता था। इस बार भी रमेश ने ऐसा ही किया। 

...हैलो... रमेश..., मैं आपके बिना नहीं रह सकती... आई लव यू... टू मच... रमेश मुझे खुद से कभी अलग मत होने देना... मैं किसी और के साथ नहीं रह पाऊंगी... कौन समझेगा मुझे... कौन मुझे इतनी इज्जत देगा... कौन मुझे आप जितना प्यार करेगा... नीलिमा रमेश से ये बात कहते हुए भावुक सी हो जाती है। 

उसकी आवाज वेदना से भरा हुआ था। अक्सर जब कभी भी नीलिमा भावुक होती या परेशान होती तो रमेश ही उसे समझाया करता था। रमेश नीलिमा को कभी भी परेशान हाल नहीं छोड़ता था। जबतक नीलिमा सभी बातें भूलकर हंसने नहीं लग जाती तबतक रमेश उसे मनाता या समझाता रहता था। और इस बार रमेश नीलिमा को समझाने के बजाय खुद ही भावुक होने लगा था। नीलिमा की बातों को सुनकर रमेश ने इतनी कल्पना तो कर ही ली थी कि मामला नीलिमा की शादी की बातों से ही जुड़ा हुआ है। रमेश के जीवन में अब बहुत कुछ घटने वाला था। कुछ अकल्पनीय होने वाला था...

@ सेराज खान...
( मार्च 21, 2017)

'शहनाई' 
भाग 03

'तेरा यूं दूर चले जाना'
'तेरा ऐसे मुकर जाना'


...नीलिमा... क्या हुआ... क्यों रो रही हो... क्या बात है, मैं हूं न, ...फिर... चलो मुझे बताओ क्या हुआ, क्या बात है... रमेश ने नीलिमा को चुप कराते हुए कहा। नीलिमा रोए जा रही थी। जिसे रमेश ने फिर से समजाया और रोने की वजह पूछी। ...नीलिमा अब बताओ... ऐसी कौन सी बात है, ....जो एक प्यारी सी लड़की को रुला रही है...। नीलिमा ने सिसकते हुए कहा ...कुछ नहीं, बस घबरा गई थी...। ...किस बात से घबरा गई थी मेरी स्वीट सी नीलिमा... जरा मैं भी तो सुनू ...अब बताइए... मैं यहीं पर हूं, फिर इतना क्यों घबरा गईं थीं आप... रमेश ने नीलिमा को आखिरकार चुप करा ही लिया था। ...आप मुझे हमेशा मना लेते हो ...बस इसी बात से डरती हूं... रमेश ...आपसे दूर होकर मैं कैसे रह पाऊंगी... कौन मुझे समझेगा...। ...ओह, नीलिमा मन में ऐसे ख्याल क्यों लाती हो... हम हमेशा साथ रहेंगे... अब जरा हंस दो तो... और क्या बात थी जिससे तुम्हारी आंखों में आंसू आ गए... रमेश ने बड़ा प्यार दर्शाते हुए नीलिमा से बोला था। 

नीलिमा ने कहा... रमेश... आप मुझे कभी बिछड़ने तो नहीं दोगे न...। ...नहीं नीलिमा... कभी भी आपको मुझसे बिछड़ने नहीं दूंगा। नीलिमा ने कहा ...इसीलिए तो आपसे प्यार करती हूं... रमेश... और रमेश कल घर वाले मेरे लिए, लड़का देखने जाएंगे... और मुझे भी साथ जाना होगा... ये बात मुझे बस अभी-अभी पता चली थी... इसलिए आपकी नीलिमा घबरा गई थी, ...लेकिन, मैं जानती थी कि आपसे बात करूंगी तो सब ठीक हो जाएगा... रमेश। ...नीलिमा... अगर रिश्ता तय हुआ तो तुम क्या करोगी... रमेश ने सीधे और साफ़ लहजे में पूछा। ...मुझे इससे कोई मतलब नहीं... मैं सिर्फ आपके साथ रहना चाहती हूं... मुझे सिर्फ आप पसन्द हो... और मुझे उम्र भर आपके संग ही रहना है। जवाब सुनकर रमेश ने कहा ...पक्का...। ...हां-हां, ...बिलकुल पक्का... नीलिमा बोली। ...तो फिर सब ठीक है ...आय लव यू...। ...आय लव यू टू रमेश...। ...अच्छा कब जाना है, और कहां जाना है... रमेश ने पूछा। नीलिमा ने बताया कि ...कल रात में निकलेंगे, ...ट्रेन से जाना है...। नीलिमा ने रमेश को उस शहर का नाम भी बता दिया, जहां पर जाना था। 

बात करते-करते दोनों अब थोड़े सामान्य हो गए थे। ...अच्छा नीलिमा, लड़के का नाम क्या है, ...मुझे पता है तुम नहीं बताओगी ...फिर भी पूछ रहा हूं... रमेश ने थोड़ा चिढ़ाते हुए ये बात पूछी। ...हां... नहीं बता पाऊंगी, क्योंकि... मुझे पता भी नहीं है... नीलिमा ने हल्की नाराजगी भरे लहजे में जवाब दिया था। हालांकि, नीलिमा ने एक-दो नाम अंदाजे से रमेश को बता दिए थे। ...ठीक है, ...वहां पर क्या हुआ... फोन पर बताइएगा... रमेश ने कहा। ...हां, मौका मिलेगा तो जरूर आपको फोन करूंगी... और आप भी निश्चिन्त रहिएगा... मैं सिर्फ आपकी हूं...। ...ठीक है... रमेश ने कहा। रमेश और नीलिमा ने सुबह होने तक बात की। ...अच्छा रमेश... अब सबके जगने का वक्त होने वाला है... मैं भी कुछ देर आराम कर लूं ...नहीं तो दिनभर इधर से उधर गिरती फिरूंगी...। ...ठीक है, नीलिमा... लव यू...। ...लव यू टू... रमेश...। ...अरे एक बार जरा ...आय हेट यू... तो बोल दीजिए... रमेश ने हंसते हुए कहा। ...अच्छा... आय हेट यू... सॉरी-सॉरी, ...आय लव यू टू मच... रमेश... नीलिमा ने ये बात कहते हुए रमेश को ...बाय... बोला और फोन रख दिया।

'तुमको शोहरत हो मुबारक, हमको रुस्वा न करो
खुद भी बिक जाओगे इक रोज, ये सौदा न करो' 

'शौक से पर्दा करो, पर्दा है वाजिब लेकिन
मेरे किस्मत के अंधेरों में और इजाफा न करो'

देर से सोने की वजह से की वजह से रमेश आज देर से उठा था। वैसे भी जगते हुए रमेश नीलिमा की शादी की बातों को लेकर लेकर चिंतित ही रहता। नीलिमा ने दोपहर के समय फोन किया और कुछ देर तक हमेशा की तरह बात की। लेकिन, रमेश के चेहरे से ख़ुशी थोड़ी गायब हो चुकी थी। क्योंकि नीलिमा रमेश नहीं थी और रमेश नीलिमा नहीं था। रमेश भावुक किस्म का था लेकिन, अपने फैसलों पर दृढ़ ही रहता था। और नीलिमा भी थोड़ी भावुक शैली की ही थी लेकिन, उसमे रमेश वाली दृढ़ता न थी।

खैर, शाम को रमेश और नीलिमा ने एक दूसरे का दीदार किया। फिर रात भी हो ही गई, जो रमेश के लिए न बीतने वाली थी। रमेश का मन किताबों में नहीं लग रहा था। नींद भी कहीं उड़ सी गई थी। रात करीब डेढ़ बजे रहे होंगे। शांत रात में बाहर सड़क पर किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी। हां, नीलिमा अपने घर वालों के साथ स्टेशन की तरफ जा रही थी। रमेश ने नीलिमा की आवाज पहचान ली थी। नीलिमा ने भी रमेश को घर से निकलने का वक्त दोपहर में ही बता दिया था। पर, नीलिमा को कहीं जाते हुए पहली बार रमेश नहीं देख पा रहा था। जो, रमेश को कुछ व्यथित भी कर रहा था।

नीलिमा के सड़क से गुजरने के बाद रमेश ने सोने की कई बार कोशिश की लेकिन, उस रात नींद नहीं आई। जागते हुए रमेश नीलिमा के बारे में ही सोचता रहा। उसी के ख्यालों में खोया रहा और अपनी कल्पनाओं में ही डूबा रहा। शादी की बातों को लेकर रमेश थोड़ा तनाव में भी था। ऐसे में सुबह की पहली किरण के साथ ही रमेश ये सोचकर जॉगिंग के लिए निकल पड़ा कि तनाव भरी बातों से कुछ तो निजात मिलेगी। पर, ऐसा नहीं हुआ। रमेश भी काफी देर तक स्टेडियम में ही बैठा रहा। शायद वह कॉलोनी नहीं लौटना चाहता था, क्योंकि उसकी नीलिमा आज वहां पर नहीं थी। लेकिन, घर तो लौटना ही था। सो, रमेश कुछ देर बाद ही स्टेडियम से घर के लिए रवाना हो गया।

घर पहुंचकर रमेश ने फिर सोने की कोशिश की, पर नींद नहीं आई। रमेश न जाने क्यों परेशान था। सब ठीक होने पर भी रमेश को अचानक डर लगने लगा था। रमेश भी नीलिमा को लेकर बढ़ रही व्याकुलता से छुटकारा पाना चाहता था। इसलिए वह सिद्धार्थ के साथ कहीं घूमने फिरने चला गया। नींद के अलावा भूख भी मर सी गई थी। दिन भर रमेश सिद्धार्थ के साथ व्यस्त रहने की कोशशि करता रहा। रमेश के लिए अकेले में रहना तो अब मुश्किल सा हो गया था। दो दिन किसी तरह बीत गए। इस दरम्यान रमेश नीलिमा का फोन का इंतजार भी करता रहा, बार बार अपने फोन को चेक करता, लेकिन नीलिमा का कोई कॉल नहीं आया। रमेश इसका मतलब समझ चुका था।

बहरहाल, तीसरे दिन नीलिमा भी अपने घर वालों के साथ लौट आई। उसके लौटते हुए शाम हो चुकी थी। रमेश को भी नीलिमा के लौट आने की बात मालूम थी, सो वह अब नीलिमा को देखने के लिए बैचैन था। उसके फोन का भी रमेश बेसब्री से इंतजार कर रहा था। नीलिमा ने घर लौटने के एक डेढ़ घंटे के अंदर ही रमेश को फोन किया। तबतक अंधेरा भी घिर चुका था। रमेश ने बड़ी व्याकुलता से नीलिमा को दोबारा फोन किया और सीधे लफ्जों में कहा।

...नीलिमा तुमने एक बार भी फोन नहीं किया... क्या तुम्हें वक्त नहीं मिला...। रमेश की बात को सुनकर नीलिमा बोली ...अरे, कई बार फोन करने की कोशिश की, लेकिन सभी लोग पास में ही थे... इसलिए फोन नहीं कर सकी... आप कैसे हैं...। नीमिला ने शादी की बात को लेकर कोई भी जिक्र नहीं किया। शायद वह रमेश को परेशान नहीं करना चाहती थी। रमेश ने भी नीलिमा से शादी की बात पूछने के बजाए सीधे कहा ...अब तुम्हें क्या बताएं... क्या कहें... कि कैसे हैं... तुम्हारी शादी तय हो गई है न... नीलिमा...। रमेश की बातों को सुनकर नीलिमा कुछ देर तक खामोश रही। रमेश ने फिर से पूछा ...जवाब दो नीलिमा ...हां या ना...। रमेश ने अब भी उम्मीद लगाई थी कि शायद जवाब ना में मिले लेकिन, ऐसा नहीं होने वाला था। नीमिला ने जवाब दिया ...हां... रमेश मेरी शादी तय हो गई है...। 






रमेश जवाब सुनकर थोड़ा भावुक हो जाता है। रमेश के चेहरे के भाव बदल गए थे। इस वक्त रमेश न जाने किससे नाराज था, अपने आप से या नीलिमा से या किसी और से उसे स्वयं भी अहसास नहीं था। पर, उसकी बातों में नाराजगी झलक रही थी। ...नीलिमा अब तुम उसी से शादी कर लो... तुम्हारी शादी तय हो चुकी है... मुझे भूल जाओ... और क्या कहें...। रमेश की इन बातों को सुनकर नीलिमा ने कहा ... क्यों भूल जाऊं... रमेश... इसमें मेरी क्या गलती है... मेरी शादी तय हो गई तो इसमें मेरा क्या कसूर है... मुझे तो सिर्फ आपसे शादी करनी है न... फिर इन बातों से मुझे क्या लेना देना है... रमेश... खुद को संभालिए... मैं सिर्फ आपकी ही हूं... ऐसी बातें नहीं करिए... मैं सिर्फ आपकी हूं... और हमेशा रहूंगी...। 

नीलिमा की इन बातों को सुनकर रमेश ने कहा ...नीलिमा... अबतक तुम्हारी शादी नहीं लगी थी... अब लग चुकी है... आगे जो हालात बनेंगे उससे तुम नहीं जूझ सकोगी... बहुत कुछ सहना पड़ेगा... तुम नहीं कर पाओगी नीलिमा...। ...नहीं रमेश, मैं हर बात सह लूंगी... मैं सिर्फ आपसे प्यार करती हूं... और मैं अभी भी आपकी ही हूं... ...ऐसा मत सोचिए... ...क्या आपको मुझपर यकीन नहीं है...रमेश...। नीलिमा की बातों को सुनकर रमेश थोड़ा सामान्य हुआ। उसकी परेशानी और तनाव थोड़ा कम सा हो गया था। 

रमेश ने कहा ...ठीक है नीलिमा, ...लेकिन, अब तुम भी मुझसे शादी से इन्कार करोगी तो, मैं नहीं मानूंगा... हर हाल में तुम्हे शादी करनी होगी... चाहे तुम राजी हो या नहीं...। ...बस इतनी सी ही बात... हां... मैं मना करूं तब भी आप मुझसे शादी कर लीजिएगा... कुछ मत सुनिएगे... मुझे अपने साथ अपनी दुल्हन बनाकर ले जाइएगा... नीलिमा ने कहा। ...ठीक है, अब मैं तुम्हे नहीं छोड़ सकता... ना ही तुम्हारे बिना रह सकता हूं... नीलिमा... रमेश ने कहा। इतनी बातों के बाद रमेश कुछ संभल चुका था। ...नीलिमा... एक बात ध्यान रखना कि वहां पर क्या हुआ... भूलकर भी मुझे कभी बताना नहीं... मैं नहीं सुन सकता...। ...मैं बता भी नहीं सकती रमेश... जानती हूं आपको तकलीफ होगी... नीलिमा ने कहा। इसी तरह कुछ और बातें भी दोनों ने की।

रमेश नीलिमा की शादी की बात को लेकर अब भी परेशान था। नीलिमा ने रमेश से रात में भी फोन पर ढेर सारी बातें की। नीलिमा ने रमेश को करीब-करीब संभाल ही लिया था। लेकिन रमेश के जेहन में शादी की बात जैसे बैठ गई थी। शायद वह नीलिमा के जीवन में किसी दूसरे शख्स को सहन नहीं कर पा रहा था। रमेश भी अब जल्द से जल्द कोई सर्विस ढूंढ नीलिमा से शादी करने पर ध्यान देने लगा। रमेश का किताबों से मोह भंग हो चुका था। अब वह सर्विस ढूंढने लग गया था। रमेश को ज्यादा भागादौड़ी नहीं करनी पड़ी। कुछ दिनों में ही रमेश  को इंटरव्यू का मौका मिल गया। रमेश ने नीलिमा को यह बात बताई थी, जिसपर नीलिमा भी बहुत खुश हुई थी और कहा था कि, मुझे आप पर पूरा भरोसा है... आप जरूर कामयाब होंगे। रमेश सितंबर के दूसरे सप्ताह में इंटरव्यू देने निकल पड़ा। 

रमेश कहीं भी जाता था तो नीलिमा एक बार जरूर उसे देखती थी। फिर कहीं जाने देती थी। इस बार भी नीलिमा ने रमेश को देखने के बाद ही उसे विदाई दी। रमेश पर हल्की उदासी अभी भी छाई हुई थी। फिर वह स्टेशन पहुंचकर ट्रेन से अंजाने से शहर की तरफ रवाना हो गया। रमेश अगली सुबह नए शहर में था। जिसे देखकर रमेश थोड़ा सा विचलित भी था। वह शहर दूर तो था ही और शायद रमेश को उसमें अपनापन भी नजर नहीं आ रहा था। फिर भी रमेश को नौकरी की जरूरत थी, सो उसने शहर में अपना पहला कदम रख दिया। कुछ देर बाद नीलिमा ने हमेशा की तरह रमेश को फोन कर उसका हालचाल पूछा। रमेश भी नीलिमा का फोन आने से खुश था। खैर, रमेश ने इंटरव्यू दिया। रमेश पहले भी कई बार इंटरव्यू का सामना कर चुका था। इसलिए उसे इसका अनुभव था। लेकिन इस बार रमेश को सफलता की जरूरत ज्यादा थी। रमेश इसमें कामयाब भी हुआ और उसे जल्द ही सर्विस ज्वाइन करने को कहा गया। 

सर्विंस की समस्या खत्म होते ही रमेश को अब नीलिमा के फोन का इंतजार था कि कैसे नीलिमा को इस बात की खुशखबरी दे दूं। नीलिमा ने शाम को फोन किया तो रमेश ने नीलिमा को यह खुशखबरी भी तुरंत ही दे दी। नीलिमा इस बात को जानकर काफी खुश थी। नीलिमा ने रमेश से लौटने का वक्त पूछा। रमेश ने सुबह तक लौटने की बात बताई। रमेश फिर खुशी-खुशी ट्रेन से घर के लिए रवाना हो गया। रमेश अब आत्मविश्वास से भरा था। सुबह वह ट्रेन से उतरकर सीधे घर की ओर चल पड़ता है, जहां नीलिमा पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। एक बार फिर से रमेश और नीलिमा के चेहरों पर मुस्कुराहट नजर आई। मौका मिलते ही रमेश और नीलिमा ने फोन पर ही बातें की। रमेश ने भी बड़ी उत्सुक्ता से सारी बातें नीलिमा को बताईं। 

नीमिला भी खुश थी और रमेश भी खुश था। दोनों ने शादी का निर्णय भी ले ही लिया था। नीलिमा ने भी सबकुछ रमेश के ऊपर ही छोड़ दिया था। इसलिए रमेश भी शादी को लेकर आगे की बातें सोचने लगा था। रमेश को आए सात दिन हो गए थे। अब उसे एक दो दिन में नए शहर के लिए निकला था। सो, रमेश ने नीलिमा से मिलने की इच्छा जताई। अगले दिन दोनों कॉलेज टाइम पर मिलते हैं। इस दौरान दोनों ने शादी की बातें तो कम ही की, लेकिन एक दूसरे को लेकर खूब बातें की। दोनों काफी खुश थे। मुलाकात के बाद नीलिमा और रमेश अपने-अपने घर लौट आए। रमेश ने नीलिमा को बता दिया थी कि वह कल चला जाएगा। रमेश का जाना नीलिमा को अच्छा तो नहीं लग रहा था, पर वह भी इन हालात में रमेश को रोक नहीं रही थी। रमेश नीलिमा को लेकर निश्चिंत था।

अगले दिन सुबह रमेश जल्दी उठ गया। वह नीलिमा को कई बार देखना चाहता था। नीलिमा भी रमेश की तरह ही उसे कई बार देखना चाहती थी। सो, दोनों ने कई बार एक-दूसरे का दीदार किया। सुबह से दोपहर हा गया। अब रमेश को कॉलोनी से निकलना था। ट्रेन आने में करीब तीन घंटे बाकी थे। रमेश भी एक रात पहले ही सारी तैयारी कर चुका था। इसलिए अब वह तैयार होकर बाहर ही खड़ा था। तभी नीलिमा का फोन उसके पास आता है।

...हैलो... रमेश... नीलिमा ने कहा। ...जी बोलिए... रमेश ने कहा। ...आप जा रहे हैं... नीलिमा ने बड़े ही उदास स्वर में बोला...। ...हां... जा रहा हूं... और सिर्फ आपके लिए ही तो जा रहे हैं... ताकि आप हमेशा हमारे साथ रह सकें... रमेश ने नीलिमा की उदासी को समझकर बोला था। रमेश की बातों को सुनकर नीलिमा ने कहा ...रमेश एक बात पूछूं... बताएंगे...। रमेश ने हां में जवाब दिया। ...मान लीजिए मेरी शादी किसी और से कुछ महीनों के बाद होने वाली हो... और ये बात आपको पता हो... तो आप मेरे पास ...मेरी नजरों के सामने नहीं रहेंगे... ...क्या इन आखरी वक्त में आप मुझे अकेला छोड़ देंगे... मैं ये बात बस ऐसे ही पूछ रहीं हूं... नीलिमा ने कहा। 

नीलिमा की बातों को सुनकर रमेश ने कहा ...हां मैं इन आखरी वक्त में जरूर तुम्हारे पास ही रहूंगा, तुम्हारी नजरों के सामने...। ...फिर मुझे छोड़कर मत जाइए... रमेश... नीलिमा ने रोते हुए कहा था। रमेश ने कहा ...क्या... ये क्या कह रही हो... तुम होश में तो हो... तुम्हारे लिए ही तो सबकुछ कर रहा हूं... अब तुम मुझसे ये बात कह रही हो... रमेश ये बात कहते हुए नीलिमा पर थोड़ा नाराज सा हो गया था। रमेश की नाराजगी देख नीलिमा ने कहा... नहीं... मैं... डर गई थी... कोई बात नहीं... मैं आपसे शादी करूंगी... आप जाइए और अपना ख्याल रखिएगा...। लेकिन रमेश ने इस बार नीलिमा को फोन रखने नहीं दिया और काफी देर तक उसे समझाता रहा। जब नीलिमा कुछ सामान्य हुई तो रमेश ने उससे खुश रहने और अब स्टेशन जाने की बात कह फोन रख दिया। 

नीलिमा और रमेश ने एक दूसरे को देखा। फिर रमेश ट्रेन पकड़ने निकल गया। रमेश नीलिमा के ही बारे में सोचता रहा। नीलिमा की आवाज में रमेश ने एक कमी महसूस कर ली थी, जिससे वह शंशय में था। नीलिमा ने रमेश को पहली दफा वो बात बोली थी, जिसका सीधा सा अर्थ रमेश ने समझ ही लिया था। रमेश में एक बड़ी कमी ये थी कि वह कभी भी वो काम नहीं करता था, जिससे नीलिमा उदास हो या वह राजी न हो। रमेश ने नए शहर में सर्विस ज्वाइन कर ली। रमेश हर दिन नीलिमा से बात करता था। पर रमेश को अब नीलिमा की बातों में पहले की तरह निश्विचतता और खुशी महसूस नहीं होती थी। रमेश नीलिमा में आए छोटे से बदलाव को भी तुरंत महसूस कर लेता था। रमेश हर रोज ही शादी को लेकर बात करता था। पर नीलिमा का बेरुख और बदलता स्वभाव देखकर रमेश अब शादी को लेकर अनिश्चित सा हो गया था। जो उसे न खुश रहने देती, न ही उसे वापस लौटने देती। इसी तरह दिन महीनों में बदल गए। और सितंबर भी बीत गया।

तबतक नीलिमा के घर में भी शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थी। नीलिमा को भी यकीनन ये तैयारियां अब भाने लगी थी। रमेश ने तो बुहत पहले ही कह दिया था कि ...आगे आने वाले दिनों में जो हालात बनेंगे, ...तुम उससे लड़ नहीं सकोगी। तब नीलिमा ने भी रमेश को ...हमेशा आपकी ही रहूंगी... का जवाब दिया था। शायद नीलिमा इस बात को बहुत जल्दी ही भूल गई थी। अब वह अपनी शादी की तैयारियां में ज्यादा मशगूल सी रहती। रमेश से बातें करते वक्त तो वह इसका आभास नहीं होने देती। पर, हकीकत तो यही था कि नीलिमा का रमेश से लगाव हर पल कम होता जा रहा था। रमेश इन सबके बारे में जानने या सुनने की कोशिश भी नहीं करता था। क्योंकि ये बातें उसे और तकलीफ ही पहुंचाया करती थीं।

बहरहाल, अक्टूबर में रमेश फिर शहर लौटता है। घर पहुंच कर भी रमेश नीलिमा को मनाने या समझाने में ही लगा रहा। लेकिन हर बार निराशा ही रमेश को मिलती थी। शायद नीलिमा रमेश की उस एक खास कमी को जानती थी। इसलिए वह कभी भी शादी को लेकर खुशी से रमेश को जवाब नहीं देती, ना ही इस बारे में खुशी से बात ही करती थी। बाकी बातें वह खुशी-खुशी ही किया करती थी। रमेश इसका अर्थ भी जानता ही था। रमेश नीलिमा से वह, हां सुनना चाहता था, जिसमें खुशी भी हो और विश्वास भी। पर ऐसा नहीं हुआ। रमेश की छुट्टियां खत्म होने वाली थी। लेकिन अब तक उनके बीच कोई स्पष्ट फैसला नहीं हो सका था। अब भी रमेश हर पल नीलिमा को मनाता रहा। मगर, नीलिमा की बेरुखी बढ़ती ही गई। अब नीलिमा कुछ बातें भी स्पष्ट तौर पर बोलने लगी थी। जो इन्कार को ही दर्शाती थीं। रमेश फिर भी उसे मनाने की कोशिश करता रहा। 

शायद रमेश ने नीलिमा को मनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की थी। रमेश भी हारकर कर अब मायूस हो चला था। रमेश अपने कमरे में सोने तो गया था, पर वह कमरा अब उसे काटने को दौड़ता हुआ महसूस हो रहा था। इसलिए वह घर के अन्य लोगों के साथ ही सोने चला आया। रात के लगभग 12 बज रहे होंगे कि नीलिमा का फोन आया। नीलिमा शादी को लेकर बेरुखी के बाद भी रमेश से बात किया करती थी। शायद उसकी इच्छा यही थी कि रमेश इन हालात को कबूल करे और जल्द संभल जाए। बहरहाल, रमेश ने नीलिमा को कॉल किया।

...रमेश, कैसे हो... नीलिमा ने पूछा। ...मेरी फ़िक्र क्यों करती हैं... जब सबसे बड़ी सजा दे ही दी है, तो ये फ़िक्र क्यों... रमेश ने कहा। ...मैंने कोई सजा नहीं दी है रमेश... हालात कुछ ऐसे हैं, कि मैं मजबूर हूं... नीलिमा ने कहा। ...बात चाहे जो भी हो... हार तो मैं ही रहा हूं... नीलिमा... रमेश बोला। रमेश ने नीलिमा को आखरी बार भी मनाने की कोशिश की, लेकिन नीलिमा के जवाब ने उसे रोक दिया। ...आपसे शादी करके मैं सबकुछ खो दूंगी... आपके पास तो सब कुछ रहेगा... मैं भी... ...लेकिन मेरे पास क्या बचेगा... मैं सब कुछ खो दूंगी... आपको तो कुछ भी नहीं खोना पड़ेगा... नीलिमा ने बेरुखी से कहा। नीलिमा के इस जवाब को सुनकर रमेश टूट सा गया और नीलिमा पर बेहद नाराज हो गया। लेकिन रात ज्यादा हो गई थी और वह अपने रूम में नहीं था, इसलिए अपनी नाराजगी का इजहार नहीं कर सका। ...रमेश... आप मुझे अपनी जिंदगी से निकाल दीजिए... मुझे छोड़ दीजिए... मैं आपके लिए सब कुछ नहीं छोड़ सकती... हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा... नीलिमा ने साफ लफ्जों में अपनी बात बोल दी। रमेश दुःख से भर उठा था, उसने नीलिमा से अपनी आखरी बात कही ...मैं अब तुम्हारे जीवन में कभी भी वापस नहीं आऊंगा... हो सकता है, एक दिन मैं तुम्हे माफ़ कर दूं... पर ये बात हमेशा याद रखना... तुमसे आज मैं इतना नाराज हूं कि... सारी उम्र बीत जाएगी... लेकिन तुम मुझे मना न सकोगी... ...मेरी कातिल...।

रमेश अगली सुबह वहां से चला गया। इस बार न तो नीलिमा उसे देखने आई, ना ही रमेश ने उसके घर की तरफ देखा। डबडबाती आंखों के साथ अब रमेश नीलिमा से हमेशा के लिए दूर जा रहा था। दोनों के बीच न जाने कैसा प्यार अब भी बचा हुआ था। जो उन्हें अभी भी एक दूसरे की तरफ खींच रही थी। और नीलिमा ने चुपके से रमेश को जाते हुए देखा था। लेकिन, इस आखरी वक्त में रमेश उसके पास नहीं था। कैसे उसने रमेश के बिना हालात से लड़ा होगा। और रमेश भी अब पहली बार बगैर नीलिमा के प्यार के सभी से दूर एक अनजाने से शहर में अकेला था। रमेश ने कैसे खुद से संघर्ष किया होगा। कल्पना ही कर सकते हैं। साथ रहने की कसमें खाने वाले नीलिमा और रमेश एक दूसरे के बिना अधूरे हो चुके थे। बहरहाल, रमेश बीच-बीच में घर आता जाता रहा। पर अब नीलिमा और रमेश के बीच कोई बातचीत नहीं होती। कभी एक दूसरे को देखे बिना दोनों नहीं रह पाते थे। अब दिखने पर भी दोनों अपने अपने रास्ते बदल लिया करते थे। इस बीच भी कभी-कभी नीलिमा रमेश को फोन किया करती थी, लेकिन उसे वो पहले वाला रमेश कभी नहीं मिला। रमेश तो नीलिमा से ही हार गया था। इसी तरह नवंबर और दिसम्बर भी बीत गया।

@ सेराज खान...
(मार्च 26, 2017)

'शहनाई' 
भाग-04
'फिर तेरा बिछड़ जाना'

रमेश जनवरी में वापस घर लौटता है। अब नीलिमा की शादी भी कुछ दिनों या महीनों बाद होनी तय थी। रमेश को इसका अंदाजा था। रमेश ने कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की थी। उसने अपने जानने वालों से भी इस बारे में कोई जिक्र न करने की हिदायत भी पहले ही दे दी थी। और उसने नीलिमा को भी पहले ही ये बात कह दी थी कि कभी भी अपनी शादी या इससे जुड़ी कोई बात मुझे मालूम मत पड़ने देना। निलिमा भी न जाने क्यों रमेश को ठुकराने के बाद भी उसकी हर बात सुनती थी। कुछ दिन रहने के बाद रमेश वापस लौट गया। जाते-जाते नीलिमा को बस इतना याद दिला गया था अपनी शादी का जिक्र कभी भी मत करना। शादी होने वाली भी हो तो कब, कहां, किस्से या कोई और बात कभी मुझे पता नहीं चलना चाहिए। रमेश ने नीलिमा जनवरी में आखरी बार देखा था। 

'अशकों के ले के धारे
बे आस बे शहरे लो कूच कर रहे हैं
हम शहर से तुम्हारे
ये तेरा जुल्म है या, तकदीर का सितम है
कैसे तुम्हें बताएं, कितने उदास हम हैं
तूफा में घिरे हैं, मिलते नहीं किनारे
अशकों के ले के धारे
बे आस बे शहरे लो कूच कर रहे हैं
हम शहर से तुम्हारे'

रमेश के जाने के बाद न नीलिमा ने कभी रमेश को फोन किया, ना ही रमेश ने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश की। शायद रमेश जानना भी चाहता तो उसे यही बात पता चलती कि नीलिमा अब किसी और की हो चुकी है। जो रमेश के लिए दुखदायी ही साबित होता। न रमेश को पता था कि क्या हो रहा है, न ही नीलिमा रमेश के बारे में कुछ जान पा रही थी। इस दरम्यान रमेश नीलिमा को याद तो करता था, पर वह अब उससे दूर हो चुकी थी। हमेशा के लिए बिछड़ चुकी थी। रमेश नीलिमा की याद में सुधबुध खो सा बैठा था। स्वयं से ही वह रोज संघर्ष करता। सारी यादें भुलाने की कोशिश करता। साथ ही नीलिमा से जुड़ी जो भी चीज उसके पास थी उसे समेटने की कोशिश करता।

नीलिमा उसके जीवन से हमेशा के लिए जा चुकी थी, फिर भी नीलिमा के प्रति रमेश के दिल के किसी कोने में मोहब्बत छिपी ही थी। खैर, पहली बार रमेश और नीलिमा के बीच बात चीत लगभग खत्म सी हो गई थी। जहां वे हर रोज घंटों एक दूसरे से बातें किया करते थे। रमेश भी उसे एक पल के लिए भी नहीं भूलता था। अब दिन महीने बनते जा रहे थे, लेकिन दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। जनवरी बीता, फिर मार्च, अप्रैल और मई भी दुखभरी यादों के बीच बीत गए। रमेश पहली बार इतने दिनों तक घर नहीं लौटा था। शायद जानबूझकर वह नहीं लौटना चाहता था। लौटता भी तो कहां, जहां उसकी और नीलिमा की यादें भरी हुईं हैं। रमेश भी नीलिमा के बगैर जीवन की कल्पना नहीं करता था। 

पर हकीकत उसके सामने थी। सो, जनवरी के बाद रमेश सीधे मई बीतने पर लौटा, लेकिन शहर नहीं, बल्कि अपने गांव। रमेश आज भी नहीं जानता कि नीलिमा की शादी कब हुई। पर इसकी कल्पना तो वह कर ही सकता था। जो उसने नहीं देखा था। उसकी कल्पना भी उसके जेहन में हरदम घूमा करती थी। रमेश सोचता करता था कि, शादी के दिन नीलिमा दुल्हन बनी होगी, बरात और बराती सब उसके घर के करीब होंगे। सब ढोल, ताशे और शहनाइयों के बीच। काश कि रमेश ने यह देखा होता, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया था। इसलिए रमेश ने शादी के जो दृश्य खुद से अपने जेहन में बनाए थे। उसके अंदर घर कर गए थे। जो उसे खूब डराती थीं। शायद यही वजह है कि रमेश शहनाइयों की धुन से घबरा उठता है।  

(by... S.Khan March 26, 2017)

नोट- ये कहानी, जिसका शीर्षक 'एक कहानी तेरी और मेरी (शहनाई)' है, काॅपीराइट एक्ट के तहत पूर्णतः सुरक्षित है। इस कहानी के किसी भी भाग का बिना इजाजत किसी भी अखबार, पत्रिका, वेबसाइट या शोशल मीडिया पर प्रकाशन मना है।

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