कहानी तेरी और मेरी (शहनाई-भाग-एक )

'एक कहानी तेरी और मेरी'

एक कहानी लिखने की कोशिश करता हूं। कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। कहानी के पात्रों के नाम भी काल्पनिक ही हैं। किसी व्यक्ति विशेष से इसका कोई जुड़ाव नहीं है। ऐसा होता है तो, ये महज एक संयोग मात्र ही समझें। कहानी का नाम 'शहनाई' रखा है। क्यों, इसके लिए कहानी पढ़ें।

'शहनाई'
भाग-एक

'न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा जमाना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा जमाना याद आता है'

'मैं अक्सर देखकर सानो को अपने रोने लगता हूं
मुझे जब प्यार से सर तेरा रखना याद आता है.
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा जमाना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है'

'कदम गैरों के उठते देखता हूं जब मोहब्बत में
वो नंगे पांव तेरा हस के आना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा जमाना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है'

'कोई जब मुस्कुराता है तो दिल पर चोट लगती है
वो तेरा प्यार में जब मुस्कुराना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा जमाना याद आता है
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है'

'न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूं जब गुजरा जमाना याद आता है'


कई छोटे नगरों और कस्बों में अभी भी एक खास दिन बाजार लगने की परंपरा वजूद में है। उस दिन भी बाजार में खूब भीड़ थी। इस भीड़ में एक बरात भी निकल रही थी। शायद मार्च का महीना चल रहा था। रमेश भीड़ में खुद को अन्य लोगों से ज्यादा असहज महसूस कर रहा था। बरात भी उसके सामने से गुजर रही थी। रमेश की घबराहट बढ़ रही रही। वह पसीने से तरबतर हुआ जा रहा था। घबराई नजरों से रमेश आस पास कोई जगह ढूंढने लगा। पास के ही एक दूकान पर कुछ जगह नजर आई। रमेश भीड़ से गुजरता हुआ उस तरफ चल पड़ा। तभी उसके कदम लड़खड़ा जाते हैं। रमेश होश खो बैठा था। भीड़ उसके इर्द गिर्द जमा हो गई। तभी भीड़ से गुजरते हुए तेज कदमों से नीलिमा भी उधर आई। 

उसने रमेश को पहचान लिया था। तबतक रमेश को लोगों ने छांव में कर दिया था। नीलिमा ने पास जाकर रमेश को पुकारा। लोगों ने भी रमेश के चेहरे पर पानी छिड़का। कुछ देर बाद रमेश ठीक था। बरात भी गुजर चुकी थी। रमेश खुद के पास भीड़ देख थोड़ा अजीब महसूस कर रहा था। अब रमेश को ठीक देख लोग भी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए। लेकिन नीलिमा वहीं थी। होश सम्भालते ही, रमेश को अहसास हुआ कि ये तो नीलिमा है। आज करीब 7 वर्षों के बाद रमेश ने नीलिमा को देखा था। रमेश अब 30 का हो चुका था। नीलिमा पर साड़ी खूब जंच रही थी। कुछ पल बिना शब्दों के आंखों से ही दोनों ने बातें करने की कोशिश की। कुछ देर की खामोशी को रमेश ने अपने सवाल से तोड़ा।

...नीलिमा तुम! यहां कैसे, कब आई... रमेश ने चारों और देखते हुए नीलिमा से पूछा। नीलिमा ने इसका जवाब नहीं दिया। और रमेश को देखते हुए पूछा ...रमेश तुम ठीक तो हो न, अभी कैसा लग रहा है...। रमेश ने जवाब हां में दिया ...हां, मैं ठीक हूं, तुम्हें बहुत सालों बाद देख रहा हूं, नीलिमा तुम अचानक यहां कब आई...? ...बस ऐसे ही मायके आई थी, बिट्टू की स्कूल की छुट्टियां चल रही थी, कब से नाना नानी के घर जाने की जिद किए बैठा था, सो यहां आ गई...। हालचाल और औपचारिकताओं वाली बातों के बाद अब रमेश और नीलिमा थोड़ा सहज होकर बात करने लगे थे। रमेश के चेहरे पर वर्षों बाद अलग खुशी झलक रही थी। नीलिमा भी रमेश को ठीक देख सुकून महसूस कर रही थी। 

कई वर्षों बाद दोनों एक दूसरे से बात कर रहे थे। ...लेकिन, रमेश, अभी तुम्हे अचानक क्या हुआ था... नीलिमा ने चलते हुए पूछा। रमेश ने उठते हुए जवाब दिया, ...तुम्हें नहीं पता...? ...नहीं, मुझे बिलकुल नहीं पता, रमेश बताओ, प्लीज... नीलिमा ने रमेश के चेहरे को देखते हुए बोला था। ...आज भी तुम हर बात जानने की जिद करती हो नीलिमा ... रमेश ने कहा। नीलिमा कुछ देर खामोश रही। रमेश आज भी नीलिमा की खामोशी नहीं देख पा रहा था। ...अच्छा बताता हूं, सब ठीक है, तुम जानकर बहुत हंसोगी.., रमेश ने थोड़ा हंसते हुए बोला। नीलिमा ने रमेश को नजरें उठाकर एक पल के लिए देखा। ...रमेश बताओ भी, आज भी तुम कुछ नहीं बताते, सौ बार पूछो तब कुछ बोलते हो, अब तो बदल जाओ...।






नीलिमा के इस स्वर में रमेश ने वही नाराजगी और मिठास महसूस की, जो एक समय में महसूस किया करता था। ...अब बताओ भी रमेश... नीलिमा ने उदास होकर पूछा। रमेश ने फिर कहा, ...नीलिमा तुम सब जानती हो, फिर बार बार क्यों पूछती हो...। दोनों अब साथ ही पैदल चल रहे थे। रस्ते में शोर फिर बढ़ने लगा था। भीड़ में बरात अभी भी आगे बढ़ रही थी। रमेश और नीलिमा भी उसके करीब पहुंच गए थे। लेकिन रमेश अब फिर से परेशान था। उसकी घबराहट बढ़ने लगी थी। शोर और भीड़ में नीलिमा रमेश की इस दशा को पहचान सी गई थी। दोनों के कदम एकदम से रुक चुके थे। नीलिमा चुप थी। भीगी आंखों से नीलिमा ने रमेश से कहा, ...रमेश तुम अभी भी इन चीजों से डरते हो...?

रमेश ने घबराहट से उबरते हुए, जवाब दिया, ...हां, मुझे आज भी शहनाइयों की धुन डराती हैं, इनकी गूंज नहीं सुन पाता हूं, इस संगीत से घबराता हूं, आज भी इनसे बचता हूं। हां, मुझे आज भी इन चीजों से डर लगता है...। ...ओह! रमेश। तुम ऐसे क्यों हो। अब तक मैं तुम्हारी यादों में हूं, मुझे भूल क्यों नहीं जाते हो, आखिर ऐसा क्यों करते हो... रमेश... क्यों खुद को सजा दे रहे हो..? नीलिमा केे इस करुण स्वर को सुन रमेश की आंखे भी शायद डबडबाने लगीं थी। ...रमेश तुम आज भी नहीं बदले...। नीलिमा भावुक हो जाती है, और आगे कुछ बोल नहीं पाती है। ...हां, और शायद कभी बदल भी नहीं पाउंगा नीलिमा... रमेश के भी स्वर धीमे हो चुके थे।

शायद वो अपने बीते कल में नहीं जाना चाहता था। जिसकी यादें, अक्सर उसे हरपल उदास ही किया करतीं थी। काफी देर से वे दोनों साथ चल रहे थे। इस बीच उन्होंने कई बातों को छिपाने और कई बातों को बताने का सिलसिला भी पूरा कर लिया था। दोनों बाजार से दूर रिहायशी घरों के करीब पहुंच चुके थे। वक्त कैसे बीता शायद उन्हें पता ही नहीं चला। ...मेरा घर आ गया रमेश... नीलिमा की इस आवाज को सुनकर रमेश ठहर गया। मुस्कुराते हुए नीलिमा ने उसे विदा किया। 

अपने घर की ओर जाते नीलिमा के कदम धीमे नजर आ रहे थे। दरवाजे पर पहुंचकर व्याकुल नीलिमा के कदम ठहर गए थे। उसने पीछे मुड़कर सड़क की ओर बेसब्र नजरें दौड़ाई। लेकिन, वहां कोई नहीं था। रमेश कहीं नजर नहीं आया। वह वहां नहीं था। रमेश जा चुका था। शायद वो फिर से मोहब्बत की दुनिया में नहीं लौटना चाहता था। नीलिमा रातभर रमेश के बारे में सोचती रही कि ...रमेश आज भी शहनाइयों की धुन से डरता है...। बेशक, नीलिमा रमेश के इस राज को जानती थी। कभी दोनों ने साथ रहने की कसमें जो खाई थीं। जागते हुए ही नीलिमा की पूरी रात गुजर जाती है।

@ सेराज खान...
(मार्च 02, 2017) (भाग एक समाप्त)

नोट- ये कहानी, जिसका शीर्षक 'एक कहानी तेरी और मेरी (शहनाई)' है, काॅपीराइट एक्ट के तहत पूर्णतः सुरक्षित है। इस कहानी के किसी भी भाग का बिना इजाजत किसी भी अखबार, पत्रिका, वेबसाइट या शोशल मीडिया पर प्रकाशन मना है।

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