बेरोजगारी से मुश्किल में इंजीनियर्स

S.Khan July 20, 2017 

देश तरक्की कर रहा। ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन पढ़ाई के बाद भी नौकरी, रोजगार का नहीं मिलना युवाओं के लिए तो कत्तई अच्छी स्थिति नही है। देश बदल रहा, ये बात भी सरकार ही कहती है। और आंकड़े भी सरकार ही जारी करती है। लेकिन इसपर कोई सफाई नहीं देता। दोनों ही बातों में बड़ा विरोधाभास महसूस होता है। फिर सरकार सिर्फ तरक्की और उपलब्धि ही गिनाने लगे तो, वो सरकार सरकार कम और एक राजनीतिक दल ज्यादा प्रतीत होने लगती है। वर्तमान सरकार हो या पूर्व की सरकारें। सभी के कार्यकाल में इसी शैली में ऐसी ही विरोधाभासी बातें ही सुनने को मिली हैं। कोई भी बढ़ती बेरोजगारी, अल्प बेरोजगारी को लेकर निष्ठावान दिखाई नहीं पड़ा। शायद, इनकी जगह कुछ अन्य बेवजह, बेजरूरत और बेकार के मुद्दे ही छा गए हैं। आम लोग भी अब इन्हीं हवा हवाई मुद्दों में उलझते से जा रहे हैं। और असल मुद्दे लगातार कहीं खोते जा रहे हैं।


समय के साथ-साथ जरूरतें बदली। लोगों के ख्यालों में आधुनिकता आई। रहन सहन में भी परिवर्तन हुआ। फलस्वरूप शिक्षा में भी धीरे-धीरे बदलाव होता गया। शिक्षा के कई नए नए रूप विकसित हुए। पारंपरिक कोर्स का क्रेज कम होता गया। फिर भी, विद्यार्थियों की संख्या इन्हीं पारंपरिक संकायों में ही सर्वाधिक है। वर्तमान में अधिकतर घरों में तकनीकी या प्रोफेशनल कोर्स करने पर जोर दिया जाता है। जैसे, इंजीनियर, डॉक्टर्स, सीए, एमबीए वगैरह। लेकिन हर किसी को इन कोर्स में एडमिशन लेने का अवसर नहीं मिलता।

कई तरह की परिस्थितियां विद्यार्थियों के समक्ष रहती हैं। आर्थिक, परिवारिक, जागरुकता की कमी, जानकारी नहीं होना आदि। यद्यपि वर्तमान में तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा देने वाली संस्थानों की भरमार है। आईआईटी, आईआईएम, एम्स तो इस श्रेणी में सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थान हैं। कड़ी मेहनत करने वाले होनहार ही इनमें दाखिला ले पाते हैं। अन्य को दूसरे इंस्टीट्यूट्स का सहारा लेना पड़ता है। किसी के हिस्से शासकीय तो, किसी के हिस्से अशासकीय कॉलेज आते हैंं। जो ज्यादातर मेरिट के आधार पर ही तय होता है।

पढ़ाई के लिए निजी संस्थानों में एडमिशन लेने, फीस की रकम भरने, घर से दूर महंगे शहर में रहने सहित कई अन्य खर्च भी होते हैं। कभी कभी ये खर्च कई लाख रुपए तक के होते हैं। ऐसे में कोई विदेश में शिक्षा लेना चाहता है तो खर्च की राशि कई गुना तक बढ़ जाती है। सभी विद्यार्थियों के लिए बड़ी रकम की व्यवस्था करना आसान कार्य नहीं होता। इन परिस्थितियों में कई छात्र-छात्राएं बैंकों से कर्ज (एजुकेशन लोन) लेकर पढ़ाई करते हैैं। पढ़ाई के आगे बढऩे के साथ-साथ लोन अदायगी की चिंता भी बढ़ती रहती है। जैसे तैसे विद्यार्थी लोन के रूप में मिली राशि की मदद से अपनी शिक्षा पूरी कर लेते हैं।

कुछ वर्षों में डीग्री हाथ में होती है। लेकिन सभी को उस डीग्री के अनुसार या मनमुताबिक रोजगार नहीं मिलता। कई को तो कोई भी रोजगार नहीं मिलता। इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों के साथ तो ये बहुत बड़ी समस्या है। आज के दौर में आईटीआई और डिप्लोमा वाले इनसे पहले सर्विस पा जा रहे। शायद इनकी डिमांड इंजीनियर्स से ज्यादा ही बनी हुई लग रही है। आप भी अपने आसपास देख सकते हैं। आईटीआई और डिप्लोमा वाले ज्यादातर युवा कामयाब ही नजर आते हैं। सर्विस नहीं मिलने पर भी ये स्वयं का रोजगार चला रहे होते हैं। जबकि, डिग्री होने के बाद भी इंजिनियर्स बेरोजगार ही दिखते हैंं।

ऐसा कई अन्य विषयों के विद्यार्थियों के साथ भी हो रहा है। लेकिन इंजिनियर्स के साथ थोड़े ज्यादा। पढ़ाई पूरी होने के बाद भी जॉब नहीं प्राप्त कर पाने वालों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। डिग्री होती है, पर कहीं रोजगार नहीं मिल पाता। इसके पीछे दोष सिर्फ  रोजगार प्रदान करने वाली संस्थानों का ही नहीं है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी का होना भी है। रोज नए निजी संस्थान खुलते हैं, जहां तकनीकी, मेडिकल, व्यवसायिक विषयों की शिक्षा दी जाती है। लेकिन सभी के पास पर्याप्त व मानक के अनुसार संसाधन उपलब्ध नहीं होते।

इससे यहां अध्ययन करने वालों को बेहतर व गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिलनी मुश्किल हो जाती है। नतीजन पढ़ाई पूरी करने के बाद जॉब मिलनी बहुत मुश्किल हो जाती है। सिर्फ निजी ही नहीं बल्कि कई प्रतिष्ठित संस्थानों से पास आउट विद्यार्थियों के साथ भी इस तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं। इन हालात में, लोन लेकर पढ़ाई पूरी करने वालों की परेशानी तो सबसे ज्यादा बढ़ जाती है। हजार से लेकर लाखों रुपए तक का कर्ज होता है। एजुुुकेशन लोन की सुविधा विद्यार्थियों की मदद के लिए होती है। लेकिन बढ़ती बेरोजगारी और घटते रोजगार के अवसर लोन लेकर पढ़ाई पूरी करने वालों के लिए सबसे बड़ी चिंता बन जाती है।

कई विद्यार्थियों की स्थिति तो ऐसी होती है कि वो लोन की राशि चुका पाने में भी असमर्थ होते हैं। ऐसे विद्यार्थियों की संख्या हजारों में है। जो लोन नहीं चुका पाते हैं। छात्रों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। प्रति वर्ष डिग्री लेने वाले छात्रों की भीड़ बढ़ती जा रही है। जिनको मशक्कत के बाद जॉब मिली भी हैं, वे छटनी के दौर से भयभीत हैं। खासकर इंजिनियर्स। पढ़ाई पूरी करने के बाद जॉब नहीं पाने वालों में सबसे अधिक संख्या इन्ही की है। सबसे ज्यादा लोन लेकर पढ़ाई करने वालों में भी इंजीनिर्स शामिल हैं। यानी सबसे ज्यादा परेशान भी यही हैं।

इंजीनियरिंग के छात्र जॉब के अभाव में मुश्किल में है। लोन नहीं चुका पाने वाले छात्रों में इंजीनियर्स की संख्या सर्वाधिक है। यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि एजुकेशन लोन लेने में दक्षिण भारतीय छात्र काफी आगे हैं। लोन लेने वाले आधे से ज्यादा तादाद उन्ही की है। बाकी में अन्य छात्र। ये स्थिति उच्च शिक्षा के प्रति उत्तर भारतीय व देेश के अन्य क्षेत्रों में निवास करने वालेे विद्यार्थियों की रुचि को भी प्रदर्शित करती है। इसमें दक्षिण भारतीय छात्र आगे हैं। लेकिन जॉब या मनमुुताबिक सर्विस की परेशानी उन्हें भी है। या यूं कहें कि नौकरी न मिलने की समस्या हर जगह एक ही जैसी प्रतीत हो रही है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 03 वर्षों में एजुकेशन लोन की एनपीए में 142 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इसी तरह सरकारी बैंकों से ही 90 प्रतिशत एजुकेशन लोन विद्यार्थियों ने लिया है। और एसबीआई लोन देने वाले बैंकों में सबसे आगे है। वर्ष 2016 के दिसंबर महीने तक के आंकड़ों के अनुसार एसबीआई ने 15 हजार 716 करोड़ रुपए लोन के रूप में छात्रों को दिए हैं। ये भी जानें कि एक छात्र को बिना सिक्योरिटी के 7.5 लाख रुपए तक एजुकेशन लोन मिल सकता है। सार्वजनिक या सरकारी बैंकों ने एजुकेशन लोन देने की शुरूआत 17 साल पहले वर्ष 2000-01 में ही कर दी थी। 

सर्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों की ओर से वर्ष 2016 के दिसंबर माह तक कुल 72 हजार 336 करोड़ रुपए बतौर एजुकेशन लोन विद्यार्थियों को दिया गया था। अभी वर्ष 2017 चल रहा है। ये आंकड़े अब और भी बढ़ गए होंगे। पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी नहीं मिलने से बड़ी संख्या में विद्यार्थी लोन नहीं चुका पाए। वर्ष 2016 में 06 हजार 336 करोड़ रुपए का लोन चुकाने में छात्र असफल रहे। तीन वर्षों में लोन के रूप में दिए गए 03 हजार 721 करोड़ रुपए डूब गए। इसी से अनुमान लगा सकते हैैं कि, वर्तमान में बड़ी डिग्री हासिल करने वालों को भी जॉब मिलनी कितनी मुश्किल साबित हो रही है।

बेराजगारी की स्थिथि ये है कि बड़े सपने संजोकर इंजीनिरिंग की पढ़ाई करने वाले कई छात्र चपरासी की नौकरी के लिए भी आवेदन करते हैं। कई सरकारी नौकरियों के लिए किए गए आवेदनों से इसकी जानकारी मिलती है। अक्सर इस तरह की खबरें भी प्रकाशित होती रहती हैं। पांचवी एवं आठवीं उत्तीर्ण आवेदकों के लिए निकाली गईं नौकरियों में भी इंजीनियरिंग की डिग्री रखने वाले आवेदन करते नजर आते हैं। नौकरी मिल भी जाती है, तो अल्प बेरोजगारी की समस्या बनी ही रहती है। ऐसे में इंजीनियर्स नौकरी नहीं मिलने से अपने मुख्य सब्जेक्ट से हटकर अन्य नौकरी करते भी देखे जा सकते हैं।

पिछले वर्ष नोटबंदी हुई थी। ऐसा माना जाता है कि इससे लगभग 15 लाख लोगों की नौकरी छिन गई। और अभी भी कई को रोजगार जाने की चिंता सता ही रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी ने जॉब्स से संबंधित आंकड़ा जारी किया है। सर्वे के अनुसार जनवरी से अप्रैल के बीच जॉब्स की संख्या कम होकर महज 405 मिलियन हो गई थी। जो सितंबर से दिसंबर 2016 तक 406.5 मिलियन थी। सरकारी नौकरियां भी लगातार घट रहीं हैं। पद रिक्त पड़े हैं, पर भर्तियां बंद हैं। भर्ती हो भी रही है तो कई जगह उसे पूरा होने में कई-कई वर्ष लग जा रहे हैं। नुकसान शिक्षित युवाओं का हो रहा है। 

यह भी गोरतलब है कि पिछले तीन वर्षों में अलग-अलग सेक्टर में नौकरी करने वालों के वेतन में उतार चढ़ाव एवं बदलाव देखने को मिला है। अजीब स्थिति ये भी सामने आई है कि इंटरमीडिएट एवं परास्तनातक तक शिक्षा लेने वालों की वेतन में तो वृद्धि हुई है, जबकि स्नातक तक शिक्षित नौकरीपेशा लोगों की सेलरी में लगातार गिरावट दर्ज हुई है। वर्ष 2014 में इंटरमीडिएट तक पढ़े लोगों की सेलरी में 96.9 रु. प्रति घंटा की वृद्धि हुई थी। वर्ष 2015 एवं 2016 में क्रमश: 110.7 एवं 105.9 रु. प्रति घंटा की वृद्धि दर्ज की गई। परास्तनातक तक शिक्षित नौकरीपेशा लोगों की सेलरी में वर्ष 2014, 2015 एवं 2016 में क्रमश: 264.6, 274.2 एवं 277.1 रु. प्रति घंटा की ग्रोथ हुई है। वहीं, इसके विपरीत स्नातक तक पढ़े लिखे लोगों के वेतन में वर्ष 2014, 2015 एवं 2016 में क्रमश: 230.9, 168.9 एवं 143.8 रु. प्रति घंटा की गिरावट दर्ज की गई है, जो तीन वर्षों से लगातार कम होती जा रही है। 

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