बदलाव, रोजगार से ज्यादा बेरोजगार यहां...

S.Khan Aug. 02, 2017 
रोजगार से ज्यादा बेरोजगार। विकास पथ पर अग्रसर अर्थव्यवस्था का दंभ। फिर भी यहां युवा परेशान हैं। आशाएं निराशा की ओर ही बढ़ रहीं। बेरोजगारी दूर होगी। यह कहना भी मुश्किल है। कोशिश तो छोडि़ए, इस विषय पर कोई चर्चा तक नहीं करता। हां, इलेक्शन से पहले इस बारे में जरूर कुछ बातें सुनने को मिलती हैं। पर ये कोई चर्चा नहीं, बल्कि भाषणबाजी (कोरी) होती हैं। जो अक्सर समय बीतने के साथ जुमले में परिवर्तित हो जाती हैं। जुमला शब्द तो आजकल मशहूर भी खूब है। जो अन्य शब्दों पर भारी पड़ रहा है, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए था।


बात बेरोजगारी की हो रही है, तो रोजगार कार्यालय की याद तो जरूर आई ही होगी। कभी आप वहां गए भी होंगे। जहां से वर्तमान में कितनों को नौकरी हासिल हो रही है, यह बता पाना कोई मुश्किल काम नहीं है। हकीकत में रोजगार कार्यालय के पास भी रोजगार न के बराबर हैं। या यूं भी कह सकते हैं कि आज रोजगार कार्यालय ही बेरोजगार है। पंजीयन करना ही शायद इसका मुख्य कार्य रह गया है। वो भी तब जब रोजगार नहीं, बेरोजगारी का भत्ता देने का वादा कोई कर जाता है। हम भी इसी के लिए टूट पड़ते हैं। और कार्यालय को भी कुछ काम (रोजगार) मिल जाता है।

बदलाव के खूब चर्चे हैं। लेकिन बदल कुछ और रहा। जो बदलनी चाहिए थी, उसपर न हमारा ना ही जिम्मेदारों का कोई विशेष ध्यान है। बेरोजगारी के नाम पर कभी-कभी स्वयं पीडि़त ही चाय या पनवाड़ी की दुकानों पर रो-गा लेते हैं। फिर हमेशा की तरह भूल भी जाते हैं। बहरहाल, रोजगार कार्यालयों की हालिया उपलब्धि भी जान ही लीजिए। रोजगार न मिलने से दुखी व हतोत्साहित युवा अब भी थकहार कर रोजगार कार्यालय से उम्मीद लगाते ही हैं। लेकिन, अचरज की बात ये है कि यहां पिछले कुछ वर्षों में हुए पंजीयन की तुलना में 01 प्रतिशत से भी कम बेरोजगार लोगों को रोजगार नसीब हो सका है। 

एक दैनिक अखबार में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में रोजगार कार्यालयों में आए प्रति 500 आवेदनों में से सिर्फ  03 लोगों को ही नौकरी मिल पाई। सरकारी या प्राइवेट ये नहींं दर्शाया गया। वास्तविकता ये है कि रोजगार कार्यालयों से रोजगार मिलने की प्रतिशत महज 0.57 रही। नौकरियां घटती जा रही हैं। और साल दर साल बेरोजगार बढ़ते जा रहे हैं। इसके साथ ही आवेदन भी बढ़ते जा रहे हैं। वर्ष 2012 में एम्प्लॉयमेंट ऑफिस में 4.47 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। 2014 में ये आंकड़े बढ़कर 4.82 करोड़ और 2015 में 5.98 करोड़ तक पहुंच गए।

सिर्फ  रोजगार कार्यालयों में ही 2015 तक 6 करोड़ के करीब बेरोजगारों के पंजीयन हैं। जिन्होंने पंजीयन नहीं कराया उनकी संख्या भी करोड़ों में ही है। इसपर रोजगार मिलने का प्रतिशत 0. (दशमलव) से शुरू होता है। अब कितनों को रोजगार मिला होगा अंदाजा लगा ही सकते हैं। नौकरियां मिलनी बहुत कठिन हो गई हैं। जिसे नौकरियों की संख्या और अवसर कम करके लगातार और मुश्किल ही बनाया जा रहा है। रोजगार कार्यालयों के माध्यम से नौकरी मिलने की दर वर्ष 2012 में 0.95, वर्ष 2013 में 0.74, वर्ष 2014 में 0.70 और वर्ष 2015 में 0.57 प्रतिशत रही। जो लगातार कम होती जा रही है। 

प्रमुख राज्यों की बात करें तो वर्ष 2015 में पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश में कुल 2.71 करोड़ रजिस्ट्रेशन हुए थे। इसकी तुलना में 27 हजार 600 लोगों को ही नौकरी मिल पाई। जो कुल पंजीयन का 0.1 फीसदी ही है। इसमें भी जिस राज्य में पंजीयन कराने वाले युवाओं को सबसे ज्यादा नौकरी मिली वो गुजरात है। गुजरात के रोजगार कार्यालयों में पंजीयन कराने वाले 30 प्रतिशत बेरोजगारों को रोजगार मिला। यानी तीन में से एक को लाभ मिला। इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि बाकी राज्यों की स्थिति क्या रही होगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रति माह 10 लाख तक युवा रोजगार के लिए कतार में जुड़ रहे हैं। बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन रोजगार सृजन इसके ठीक विपरीत है। रोजगार या रोजगार के अवसर इतनी तेजी से नहीं बढ़ रहे। इससे शिक्षित बेरोजगारों की फौज बड़ी होती जा रही है। पिछली जनगणना 2011 में बेरोजगारी की दर 9.6 प्रतिशत थी। जो 2001 की बेरोजगारी दर 6.8 से लगभग 03 फीसदी ज्यादा हैै। अभी वर्ष 2017 चल रहा है। बेरोजगारी दर और बढ़ी ही होगी। क्योंंकि रोजगार संकट अभी भी बना ही हुआ है।

रोजगार कार्यालय को सेवायोजन विभाग या एम्प्लॉयमेंट आफिस या एम्प्लॉयमेंट डिपार्टमेंट के नाम से भी पहचाना जाता है। वर्तमान में रोजगार कार्यालयों को व्यवसायिक मार्गदर्शन और करियर परामर्श के नाम से भी जानते हैं। उत्तरप्रदेश में कुछ वर्ष पूर्व इन कार्यालयों में अचानक बेरोजगारों का सैलाब उमड़ पड़ा था। रोजगार नहीं प्राप्त कर पाने वाले शिक्षित युुवाओं को बेेेरोजगारी भत्ता दिए जाने का एलान हुआ था। ऐसे में हमेशा सुनसान प्रतीत होने वाले रोजगार कार्यालय अचानक जीवंत लगने लगे। तब कुछ महसूस हुआ था कि रोजगार कार्यालय की महत्ता थोड़ी बहुत वर्तमान में भी बची हुई है। 

लेकिन बढ़ती बेरोजगारी के दौर में अब रोजगार कार्यालय का महत्व न के बराबर ही है। शिक्षित नौजवानों की तादाद बढ़ रही है। लेकिन नौकरियां घट रही हैं। और नियोक्ता के लिए ये जरूरी नहीं कि वह रोजगार कार्यालय में पंजीकृत युवक का ही चयन करें। कुछ अपवादों को छोड़कर। ऐसे में ज्यादातर स्थानों पर रोजगार दिला पाने में रोजगार कार्यालय की भूमिका लगभग समाप्त हो चुकी है। मार्गदर्शन और परामर्श ही अब इसका मुख्य कार्य रह गया है। इससे भी कुछ खास लाभ नहीं होता है। स्थिति ये है कि मार्गदर्शन और परामर्श के लिए लगने वाले शिविरों में खाली कुर्सियां युवाओं की प्रतीक्षा ही करती रह जाती हैं। 

रोजगार कार्यालयों से जो नौकरियां मिलती भी हैं, उनमें अधिकतर निजी क्षेत्रों की सेवाएं ही रहती हैं। सरकारी नौकरी के लिए यहां सिर्फ मार्गदर्शन या परामर्श या जानकारी ही मिल पाती है। सरकारी नौकरी जिन रोजगार कार्यालयों से अपवाद स्वरूप मिली भी हैं, उनकी संख्या गिनती की हैं। इसमें भी ज्यादातर अनुकंपा या आश्रित ही शामिल हैं। कहीं-कहीं नौकरियों में रोजगार कार्यालय में पंजीकरण संख्या मांग ली जाती है। बस यही एक बड़ा योगदान सरकारी नौकरियों में रोजगार कार्यालय का शेष रह गया लगता है। ये भी कभी कभार ही होता है।

रोजगार कार्यालयों की ओर से दिलाई जाने वाली नौकरी में भी गार्ड, टेलीफोन ऑपरेटर या अन्य छोटे मोटे जॉब ज्यादा शामिल रहते हैं। धागे लपेटने जैसे भी काम मिलते हैं। जबकि इन्हीं नौकरियों के लिए पीजी की डिग्री रखने वाले तक पहुंचते हैं। इनमें भी कुछ का ही चयन होता है। इसके अलावा ऐसी नौकरियों के ऑफर भी उपलब्ध कराए जाते हैं, जो फील्ड बेस्ड होते हैं। और कुछ तो टारगेट बेस्ड होते हैं। इसमें लक्ष्य पूरा करना पहली प्राथमिकता होती है। वेतन भी इसी पर निर्भर करता है। युवा इस प्रकार के जॉब्स को ज्यादा पसंद नहीं करता। ऐसे में नौकरी देने वाली संस्थाएं भी अक्सर खाली हाथ ही लौट जाती हैं। जो लोग टारगेट बेस्ड नौकरियां स्वीकार कर भी लेते हैं, उनमें से कई युवा एक या दो माह में ही नौकरी छोड़ देते हैं।

रोजगार कार्यालय भी नौकरी के अवसर दिला पाने में असमर्थ हैं। जितने संसाधन व अधिकार उसे उपलब्ध हैं, उसी अनुसार वह जिम्मेदारी निभाता है। इसकी सीमाएं भी तय हैं। हां, कभी कभी रोजगार परक प्रशिक्षण के कार्य में इसकी भूमिका अग्रणी होती है। रोजगार कार्यालयों से अभी तो बेरोजगारों को निराशा ही हाथ लग रही है। ऐसा कबतक चलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। इस स्थिति में परिवर्तन आने की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही है। रोजगार कार्यालय पहुंचने वाले कब तक निराश ही लौटते रहेंगे। सरकारों को ऐसी व्यवस्था करनी ही चाहिए, जिससे निराशा आशा में परिवर्तित हो और रोजगार कार्यालय एक बेहतर उम्मीद की तरह दिखे।

बेरोजगारों की संख्या जिस रफ्तार से बढ़ रही है। आने वाली दशकों में ये बड़ी चुनौती बनकर उभरेगी। इस परिस्थिति से निपटने की तैयारियां और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर है। नौकरियों की संख्या व अवसर बढ़ाने के वादे तो थोक में किए जा रहे। लेकिन इसपर अमल या इसे अमल में लाने के मामले में कोई अबतक खरा नहीं उतर सका है। समय के साथ युवाओं की चुनौतियां बढऩे ही वाली हैं। रोजगार का सूखा अपना अहसास दिलाने लगा है। जो कभी भी जोरदार दस्तक दे सकता है। इसके लिए तैयार रहिए। अच्छा होगा कि रोजगार कार्यालयों को तबतक रोजगार परक बना लिया जाए।

ये भी जानें...
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर विमुक्त सैनिकों को सेवायोजित कराने के मकसद से वर्ष 1945 में केंद्रीय स्तर पर पुनर्वास एवं रोजगार महानिदेशालय की स्थापना हुई। इसके नियंत्रण में देश के विभिन्न भागों में सेवायोजन कार्यालयों की स्थापना की गई। 1952 में गठित प्रशिक्षण एवं सेवायोजन सेवा संगठन समिति की संस्तुतियों के कार्यान्वयन के बाद 1956 से रोजगार कार्यालयों का प्रशासन केंद्र की ओर से प्रदेशों को हस्तांतरित कर दिया गया। इसके बाद इन कार्यालयों को और प्रभावी बनाया गया। मई 1960 से पूरे देश में (जम्मू कश्मीर के अतिरिक्त) इसे प्रभावी किया गया। शुरूआत में इन कार्यालयों की काफी उपयोगतिा एवं महत्ता रही। सबसे बड़े कार्यालयों एवं कर्मचारियों वाले विभाग के रूप में इसकी पहचान थी। जो वक्त के साथ धीरे-धीरे कम होती गई। फिलहाल रोजगार या सेवायोजन कार्यालयों में सन्नाटा ही पसरा रहता है। 

उत्तर प्रदेश देश के बड़े राज्यों में शुमार है। यहां बेरोजगारों की तादाद भी सर्वाधिक है। वर्तमान में यूपी में सेवायोजन सेवा के तहत करीब 90 कार्यालय कार्यरत हैं। इनमें 18 क्षेत्रीय सेवायोजन कार्यालय, 01 व्यावसायिक एवं प्रबंधकीय सेवायोजन कार्यालय, 57 जिला सेवायोजन कार्यालय, 13 विवि सेवायोजन सूचना एवं मंत्रणा केंद्र और 01 नगर सेवायोजन कार्यालय शामिल हैं। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और विकलांग वर्ग के अभ्यार्थियों की सेवायोजकता में वृद्धि करने के मकसद से 52 शिक्षण एवं मार्गदर्शन केंद्र भी विभिन्न जिलों में संचालित की जा रही हैं। जितनी संख्या रोजगार कार्यालयों की है, उस हिसाब से रोजगार मिलता तो बेरोजगारी की समस्या आज इतनी बड़ी नहीं होती। 

रोजगार कार्यालयों की ओर से बेरोजगारों के लिए कुछ योजनाएं या क्रियाकलाप भी चलाई जाती हैं। रोजगार तो मिल नहीं रहा है। कम से कम इसी का ही लाभ उठाएं। इसमें करियर काउंसलिंग भी एक स्कीम है। इसका लाभ उठाकर शिक्षण, प्रशिक्षण एवं रोजगार के अवसरों के अनुरूप विषय चयन किया जा सकता है। इससे उपलब्ध अवसरों के जानकारी भी मिल जाएगी। व्यवसाय मार्गदर्शन के तहत प्रोफेशन चयन करने में मदद मिलती है। मालूम हो कि वर्ष 2006-07 में निदेशालय स्तर पर कॅरियर काउंसलिंग सेल की स्थापना भी हुई थी। वर्ष 2008 में व्यवसाय मार्गदर्शन कार्यक्रम को गति प्रदान करने के लिए अभिनव प्रयास और नूतन दिशाएं कार्यक्रम शुरू किए गए। इन कार्यक्रमों से शायद ही आप अबतक परिचित हों।

बहरहाल, इसके अंतर्गत सघन एवं समंवित कार्यक्रम को आयोजित करने की व्यवस्था तय की गई और इसका नाम कॅरियर काउंसलिंग कर दिया गया है। वर्ष 2008-09 में अवसर नामोदिष्ट कार्यक्रम शुरू हुआ, जिसके तहत क्षेत्रीय एवं जिला सेवायोजन कार्यालयों के अलावा यूनीवर्सिटीज सेवायोजन सूचना एवं मंत्रणा केंद्रों की ओर से लक्ष्यानुरूप कार्यशालाएं आयोजित हुईं। प्रत्येक वर्ष कॅरियर काउंसिलिंग शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। इन शिविरों से युवाओं को कितना लाभ हुआ। बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए अंदाजा लगाया ही जा सकता है। और थोड़े बहुत लाभ से इन्कार भी नहीं किया जा सकता है। 

मेला नाम तो सुना ही होगा। अब रोजगार मेला भी लगता है। जहां रोजगार के अवसर मिलने का दावा किया जाता है। रोजगार कार्यालयों की ओर से निजी क्षेत्र में भी बेरोजगार अभ्यर्थियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास किए जाते हैं। गौर करिए कि सरकारी नौकरी भी रोजगार कार्यालयों से दिलाने की बात कही ही जाती है। जो हकीकत से कोसों दूर है। खैर, रोजगार मेले में सेवायोजन कार्यालयों की ओर से बेरोजगार युवाओं को एवं नियोजकों को एक ही जगह पर बुलाकर इसका आयोजन होता है। इसमें नियोक्ता अपनी जरूरत के मुताबिक अभ्यर्थियों का चयन करते हैं। स्कीम अच्छी है, पढऩे और सुनने में। लेकिन इन मेलों में भी युवाओं को मनमुताबिक नौकरी का मिलना मुश्किल ही साबित होता आया है।

खैर...पंजीयन तो करा ही लीजिए
रोजगार का टोटा है। लेकिन फिर भी पंजीयन कराना बेहतर ही रहता है। बेरोजगार हैं, तो सेवायोजन पोर्टल पर पंजीयन करा सकते हैं। पोर्टल पर इसकी व्यवस्था है। लाभ यह होगा कि कभी रोजगार के कुछ अवसर बनते हैं तो आपको मौका मिल सकता है। आपकी प्रोफाइल मैच करती है तो बकायदा आपको मेल या अन्य संसाधनों से सूचित भी किया जाएगा। पोर्टल पर भी रिक्तियों की सूचना एवं अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां अपलोड होती रहती है। ध्यान रहे यहां, पहले आओ और पहले पाओ के आधार पर निर्धारित संख्या तक ही आवेदन करने को तरजीह दी जाती है। 

महानिदेशक रोजगार एवं प्रशिक्षण के निर्देशों पर कॅरियर काउंसलिंग सेल और जिला सेवायोजन कार्यालय गाजियाबाद को मॉडल करियर सेंटर के रूप में विकसित किए जाने का प्रस्ताव स्वीकार किया जा चुका है। ये मॉडल कॅरियर सेंटर का कार्य पूरे प्रदेश के अध्ययनरत विद्यार्थियों और प्रशिक्षण संस्थानों में अध्ययन करने वाले प्रशिक्षणार्थियों से संबंधित है। इस सेंटर की ओर से मौजूदा समय में और लगातार बदल रहे परिवेश में शिक्षण, प्रशिक्षण एवं रोजगार के नए उभरते व्यवसायों की जानकारी प्रदान की जाती है। इसका भी लाभ उठाइए। 

सरकारी नौकरियां अब धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं। कई सरकारी संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपा ही जा रहा है। रेलवे को ही ले लें। यहां भी शुरूआत हो ही चुकी है। कई रेलवे स्टेशन अब निजी हाथों में हैं। जिनका संचालन अब कोई प्राइवेट कंपनी ही करेंगी। ऐसे में आने वाले दशकों में सरकारी नौकरी मुट्ठी भर ही रहने की उम्मीद है। बात निजी क्षेत्रों की करें तो, वहां भी आने वाले समय में सिर्फ कुशल में से कुशल अभ्यर्थी को ही चयनित किया जाएगा। ऑटोमेशन ने पहले ही नौकरियों के अवसर पर प्रभाव छोड़ दिया है। कई लोगों का कार्य अब एक व्यक्ति ही कर सकता है। फिर ज्यादा अवसर नहीं बचता। वर्तमान में निजी कंपनियों में छटनी का भय हमेशा बना ही रहता है। और अभी भी ऐसा ही चल रहा है...। 

क्या आप जानते थे, नहीं तो जरा इसपर भी गौर करें...
रोजगार कार्यालयों में कुछ दिवस विशेष महत्व के हैं। इन दिवसों पर उपस्थित होकर कुछ नया सीखा या जानकारी प्राप्त की जा सकती है। बेरोजगारी के आलम में कम से कम इन सुविधाओं का ही फायदा ले लेना चाहिए। क्या पता भाग्य बदल जाए। 

अवसर दिवस- प्रत्येक वर्ष 06 जनवरी
समाधान अवसर- 15 अप्रैल से 31 जुलाई के बीच
अपना व्यवसाय चुनिए पखवाड़ा- 15 से 31 अगस्त के बीच
कॅरियर काउंसलिंग सेमीनार, कार्यशाला- सितंबर से दिसंबर तक

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