हिन्दी दिवस 2019: हिन्दी का नामकरण, भोजपुरी भाषा है या बोली

...अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पर निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन...

हिन्दी दिवस (Hindi Diwas) हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हर साल 14 सिंतबर को हम हिंदी दिवस मनाते हैं। क्योंकि स्वतंत्रता मिलने के बाद इसी दिन 14 September 1949 को संविधान सभा में हिंदी को राज भाषा (Hindi Rajbhasha) बनाने का निर्णय लिया गया था। इस दिन स्कूल और काॅलेजों सहित शासकीय कार्यालयों में भी हिन्दी के विकास को लेकर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन होते हैं। इस दौरान हिन्दी भाषा की प्रगति पर बल दिया जाता है। हिन्दी भाषा में कविताएं, निंबध लेखन आदि प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। साथ ही हिन्दी भाषा में भाषण भी दिए जाते हैं। विद्यार्थी इन कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर प्रतिभाग करते हैं। हिन्दी दिवस मनाने की शुरूआत 1953 में हुई थी।

हिन्दी का नामकरण 
हिंन्दी व्याकरण की पुस्तक सामान्य हिन्दी के लेखक पंडित पृथ्वीनाथ पांडेय अपनी किताब में लिखते हैं कि हिन्दी शब्द फारसी भाषा का शब्द है। जहां तक हिन्दी शब्द के भारत के साहित्य में प्रयोग की बात है, 13वीं सदी की शुरूआत में भारत के फारसी कवि औफी ने सबसे पहले 'हिन्दवी' शब्द का प्रयोग किया था। 16वीं सदी में जायसी ने भी 'हिन्दवी' शब्द का प्रयोग किया। इसी प्रकार 17वीं सदी में मुसलमान कवियों की ओर से 'हिन्दवी' और 'हिन्दी' दोनों ही शब्दों का प्रयोग किया गया। 18वीं सदी में जब अंग्रेजों का आगमन हुआ, तब हिन्दी को 'हिन्दुस्तानी' संज्ञा दी गई। लेकिन हिन्दी नाम को ही भारतीय जनमानस ने स्वीकार किया। व्यापक राष्ट्रहित, राष्ट्रीय एकता और जनसंपर्क को ध्यान में रखते हुए स्वाधीन भारत के संविधान में हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किया गया है। यह देश की सांस्कृतिक एकता, लोक चेतना एवं सामाजिक संपर्क की भाषा है। ओर इसकी लिपी देवनागरी लिपि है।


देवनागरी लिपि
अलग-अलग देशों की भाषा भिन्न भिन्न होती है। कभी कभी एक ही देश में कई भाषाएं और लिपियां उपयोग में लाईं जाती हैं। हिन्दुस्तान में बंगला, मराठी, हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, इत्यादि कई भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें हिन्दी हमारी कागजी राज भाषा है और इसकी लिपि देवनागरी लिपि कहलाती है। अर्थात हिन्दी भाषा की वर्णमाला जिस लिपि में लिखी जाती है, उसका नाम देवनागरी लिपि है। 
राज भाषा
संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। लेकिन संघ की ओर से आधिकारिक रूप से प्रयोग की जाने वाली संख्याओं का रूप अंतरराष्ट्रीय होगा। आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं वर्णित हैं। इनमें 1-असमिया, 2-बंगाली, 3-गुजराती, 4-हिंदी, 5-कन्नड, 6-कश्मीरी, 7-कोंकणी, 8-मलयालम, 9-मैथिली, 10-मराठी, 11-उड़िया, 12-मणिपुरी, 13-नेपाली, 14-पंजाबी, 15-संस्कृत, 16-सिंधी, 17-संथाली, 18-तमिल, 19-तेलगू, 20-उर्दू, 21-डोगरी (डोंगरी), और 22-बोडो शामिल हैं।

  • 1967 में संविधान के 21वें संशोधन के द्वारा सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया।
  • 1992 में संविधान के 71वें संशोधन के द्वारा मणिपुरी, कोंकणी एवं नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची से जोड़ा गया।
  • 2003 में संविधान के 92वें संशोधन के द्वारा मैथिली, संथाली, डोगरी, एवं बोडो भाषा को जोड़ा गया। 

राज्य की भाषा 
संविधान के अनुच्छेद 345 के अनुसार प्रत्येक राज्य के विधान मंडलों को यह अधिकार दिया गया है कि वह आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं में से किसी एक या अधिक को सरकारी कार्याें के लिए राज्य की सरकारी भाषा के रूप में अंगीकार कर सकते हैं। लेकिन राज्यों के परस्पर संबंधों में और संघ व राज्यों के परस्पर संबंधों में संघ की राजभाषा को ही प्राधीकृत माना जाएगा। 

ये भी जानें...
बोलियां, परिनिष्ठित भाषा एवं राजभाषा

बोलियां: भाषा के जिन रूपों का प्रयोग साधारण जनता द्वारा अपने समुह या घरों में किया जाता है, उसे बोली कहते हैं। भारत में लगभग 650 बोलियां हैं। जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित है। भोजपुरी भी एक बोली है। 

परिनिष्ठित भाषा: किसी बोली को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है। वर्तमान की खड़ी बोली हिन्दी लगभग दो सौ साल पहले एक बोली ही थी। आज हिन्दी परिनिष्ठित भाषा है। 

राष्ट्रभाषा: किसी देश की परिनिष्ठित भाषा जब व्यापक रूप से बहुसंख्यक लोगों द्वारा व्यवहार में ग्रहण कर ली जाती है तो आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राष्ट्र भाषा का स्थान पा लेती हैं। 






भारत की शास्त्रीय भाषाएं
वर्ष 2004 में भारत सरकार ने एक नए भाषा वर्ग शास्त्रीय भाषाएं  (Classical Language) को बनाने का निर्णय लिया। इसी क्रम में साल 2006 में शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के मानदंड तय किए गए। साल 2016 तक देश की 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का का दर्जा मिल चुका है। इनमें 1-तमिल 2004, 2-संस्कृत 2005, 3-तेलगू 2008, 4-कन्नड 2008, 5-मलयालम 2013, और 6-उड़िया 2014 शामिल हैं।

इससे क्या लाभ होता है
शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने पर विभिन्न लाभ मिलते हैं। कोई भाषा एक बार शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त कर लेती है तो उसे एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए वित्तीय मदद मिलती है। जहां उस भाषा की पढ़ाई होती है। इसके अलावा गणमान्य विद्वानों को दो बड़े पुरस्कार दिए जाने का प्रावधान होता है। इसी तरह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से यह अनुरोध किया जा सकता है कि वह कम से कम शुरूआत में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए एक निश्चित संख्या में पेशेवर पीठ स्थापित करे, जिनमें संबंधित भाषा के विद्वान नियुक्त हों। 

इसके लिए क्या हैं मानदंड
किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिए मानदंड तय हैं। इसके लिए संबंधित भाषा के 1500 से 2000 साल पुराने इसके प्रारंभिक ग्रंथों में दर्ज इतिहास की पौराणिकता हो। प्राचीन साहित्य ग्रंथ राशि जिसे वक्ताओं की पीढ़ी दर पीढ़ी बेशकीमती माने जाने और एक साहित्यिक परंपरा हो। यह दूसरे भाषी समुदाय से उधार न ली गई हो। 

हम सभी को हिन्दी दिवस 2019 (Hindi Diwas 2019) के अवसर पर हिन्दी भाषा को बढ़ावा देना चाहिए। अपने काम काज में इसे ज्यादा से ज्यादा अपनाना चाहिए। हालांकि अब अंग्रेजी का चलन बढ़ रहा है। लेकिन हमें हिन्दी को भी उतना ही महत्व देना चाहिए। अब तो विदेशी भी हिन्दी भाषा सीखने पर जोर दे रहे हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में हमारी प्यारी हिन्दी अंग्रेजी भाषा से महत्वपूर्ण होगी।  

...हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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