पाॅलीटेक्निक से क्यों कम हो रही दिलचश्पी?

कई क्षेत्रों में मंदी जैसा असर है। नौकरियों पर नौकरियां जा रही हैं। लाखों की संख्या में रोजगार वाले लोग बेरोजगार में तब्दील हो रहे हैं। अभी भी नौकरियों पर खतरा पहले जैसा ही बना हुआ है। ये स्थिति तो उद्योग जगत की है। 

अब बात करते हैं यूपी के पाॅलीटेक्टिनक काॅलेजों में एडमिशन की। क्योंकि कुछ समय पहले एडमिशन के मामले में यहां भी महामंदी की स्थिति देखने को मिली। एडमिशन के लिए सूचना पे सूचना दी जा रही थी, लेकिन विद्यार्थी हैं कि प्रवेश को लेकर कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे थे।


पहले प्रवेश परीक्षा हुई। इसके बाद प्रवेश परीक्षा में पास हुए बच्चों को एडमिशन के लिए बुलाया गया। अनुमान से काफी कम बच्चों ने एडमिशन लिया। सीटे खाली रह गईं। अब क्या करें? तय किया गया कि उन बच्चों को भी एडमिशन के लिए बुलाया जाए, जो प्रवेश परीक्षा में क्वालीफाई तो नहीं हुए हैं, लेकिन प्रवेश परीक्षा दी हो। 

लगा कि समस्या हल हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। खबरों के मुताबिक फिर भी सीटें खाली रह गईं। समस्या से निपटने के लिए अब तय किया गया कि अब वे बच्चे भी पाॅलीटेक्निक काॅलेजों में एडमिशन ले सकते हैं, जिन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। न जाने क्यों, प्रवेश को लेकर अब काॅलेजों व कुछ विश्वविद्यालयों की स्थिति ऐसी होती जा रही है।

अक्सर सुना जाता है कि एडमिशन के लिए इतनी मारा मारी है कि कहीं भी दाखिला मिलनी मुश्किल है। सामान्यतः ऐसा होता भी है। लेकिन क्या हुआ हमारे पाॅलीटेक्निक काॅलेजों का, जिनमें एडमिशन के लिए विद्यार्थियों की कमी पड़ने लगी है। 

स्थिति यहां तक रही कि, जिन्होंने परीक्षा दी थी और वे उसमें क्वालीफाई भी नहीं कर पाए थे, उन्हें भी एडमिशन के लिए बुलाना पड़ गया। ताकि खाली पड़ी सीटों को भरा जा सके। फिर भी सीटें खाली रहीं। इसके बाद उन विद्यार्थियों को भी एडमिशन देने का निर्णय लिया गया, जिन्होंने पाॅलीटेक्टिनक काॅलेज में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा भले ही न दी हो, लेकिन इंटीमीडिएट परीक्षा पास कर ली हो। 

कभी पाॅलीटेक्निक काॅलेजों में प्रवेश का काफी क्रेज रहा करता था। आज भी है, लेकिन यूपी में स्थित काॅलेजों में ऐसा क्या हुआ कि युवाओं के बीच एडमिशन को लेकर कोई खास लगाव नहीं दिखा। क्या युवाओं के बीच अब इन कोर्साे से मोह भंग होता जा रहा है। 






कहीं, युवा ये तो नहीं सोचने लगे हैं कि बड़े बड़े इंजीनियरिंग की डिग्री रखने वालों को तो अब नौकरी मुश्किल से मिल रही है। फिर एक या दो साल यहां की बजाए कुछ ऐसे कोर्स कर लें, जिससे नौकरी मिलने में आसानी हो या स्वयं का रोजगार ही कर सकें। 

पाॅलीटेक्निक कोर्स करके कहां भटकेंगे। कुछ हद तक ठीक सोच रहे हैं। क्यों कि बीते कुछ सालों से ये तो सुनने व पढ़ने को मिल ही रहा है कि इंजीनियर्स को नौकरी मिलना अब कोई आसान काम नहीं रह गया है। छटनी, छटनी, छटनी, फिर छटनी। ऐसी खबरें अभी भी छपती हैं, भले ही इन खबरों में तल्खियत न दिखाई जाती हो। 

लेकिन जो हो रहा है, उसे लोगों तक पहुंचाना पड़ता ही है। वहीं, वर्तमान समय में भी जो लोग किसी कंपनी या संस्थान में जाॅब कर रहे हैं। उनकी नौकरी पर छटनी के बादल मंडराते ही रहते हैं। हांलाकि खबरों के मुताबिक अब इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर निकलने वाले युवाओं में लगभग 50 प्रतिशत को जाॅब मिल रहे हैं। 

पाॅलीटेक्निक के अलावा कई प्रोफेशनल कोर्स में दाखिले को लेकर ऐसी स्थिति अब बढ़ रही है। तेजी से नए कोर्स तो शुरू किए जाए रहे हैं। लेकिन कई संस्थानों में बेहतर फेकल्टी की अनुपस्थिति के चलते विद्यार्थियों को स्तरीय शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है। शुरू में तो एडमिशन तेजी से होते हैं, लेकिन स्थिति का खुलासा होते देर नहीं लगती है। कानपुर विवि में भी कई कोर्सों में मौजूद सीटों पर एडमिशन के लिए काफी कवायद करनी पड़ी थी। 

अधिकतर विद्यार्थियों की सोच यही है कि कोई भी प्रोफेशनल या तकनीकि कोर्स करें, तो पढ़ाई पूरी करने के दौरान या पढ़ाई पूरी करने के बाद रोजगार मिल सके। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हो पाता है। ज्यादातर संस्थानों में प्लेस्टमेंट को लेकर कोई खास व्यवस्था नहीं होती है। इसलिए पढ़ाई के बाद विद्यार्थियों को नौकरी की तलाश में भटकना पड़ता है। या फिर सरकारी नौकरी के लिए बेहद ही कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ता है। 






जहां एक सीट के लिए हजारों की संख्या में युवा आवेदन करते हैं। संस्थानों में बेहतर फैक्ल्टी हो और नौकरी के लिए प्लेसमेंट सेल की अच्छी व्यवस्था हो, जो युवाओं को नौकरी दिलाने के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध करा सकें। इन सबके अभाव में विद्यार्थियों के बीच तकनीकी एवं प्रोफेशनल कोर्स करने के प्रति रुचि घटेगी ही। जो अब दिखने भी लगी है।

वर्तमान में कई सेक्टर्स में मंदी की स्थिति है। कई दिनों के बाद आज सुबह ही (23 अगस्त) अखबार पर नजर पड़ी। क्योंकि कई दिनों से हो रही बारिश की वजह से हाॅकर अखबार नहीं ला रहा था। लाता भी तो अखबार भीग जाता। फिर क्या फायदा अखबार बांटने की जहमत उठाने का। हालांकि हर जगह ऐसा नहीं था, कुछ कुछ जगहों पर ही अखबार बांटने वाले नहीं पहुंचे। 

बहरहाल, अखबार के पहले पन्ने पर बाॅटम में एक खबर छपी थी। जिसके मुताबिक अब पारले जी भी अपने कर्मचारियों की छटनी की तैयारी कर रहा है। इससे बिस्किट फैक्ट्री में कार्य करने वाले लगभग दो हजार कर्मचारियों पर छटनी का खतरा बढ़ गया है। क्या, लोग अब बिस्टिक कम खाने लगे हैं। जो इस क्षेत्र में भी स्थिति अब बिगड़ने लगी है। या फिर मंदी का असर इस क्षेत्र में भी पहुंच गया है। खासतौर पर आटो क्षेत्र व कपड़ा क्षेत्र में पहले ही ऐसी स्थिति है।

जिम्मेदारों की ओर से तो ये कहा जा रहा है कि विश्व भर में मंदी की स्थिति है। और विश्व की तुलना में भारत की स्थिति अभी भी काफी बेहतर है। लेकिन लगातार ऐसी स्थितियों से नकारात्मकता का भाव तो उभरता ही है। रेलवे में भी निजीकरण को बढ़ावा मिल रहा है। लेकिन अबतक हुए निजीकरण से रेलवे को या यात्रियों को क्या और कितना लाभ मिला। इसका जिक्र कम ही सुनने को मिला।

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